जड़ों का दर्द – रणजोध सिंह
महकते हुए हसीं गुल ने अपनी जड़ों से पूछातुम्हारा वजूद क्या है?जवां बेटे ने अपने बुड़े बाप से पूछाआपने मेरे लिए किया क्या है|?दरिया...
बू : डॉo कमल केo प्यासा
बू गंदगी की गलने की सड़ने की चाहे हो दूषित खाद्यानों की या ऋणात्मक सोच विचारों की !बू आ ही जाती है, अंतर...
भावनाओं का सफर — कविताएँ
डॉ कमल के प्यासाहिलोरेजीवन चक्र केझूले में,झूल हर कोई हिलोरे लेता है।कोई कमकोई अधिक,बस अपने कर्मों काफल वसूल लेता है !रिश्तेरिश्तों के जंगल...
पिता : डॉक्टर जय महलवाल द्वारा रचित एक कविता
मां अगर घर की ईंट है,तो पिता समझो पूरा मकान है।मां अगर संस्कार देने वाली है,तो पिता गुणों की खान है।मां अगर अगर करती...