पाण्डेय शिवशंकर शास्त्री – सोनभद्र उत्तर प्रदेश
आंधी पानी धूप सहन कर ,
खेतों में ढहनाता है।
फटे पुराने कपड़े पहने,
खेत से अन्न उगाता है।
हड्डी पसली नस नस दिखती,
फिर भी नहीं थकान है।
देखो यह किसान है।
बादल छाए हैं अंबर में,
बिजली चमचम चमक रही है।
हवा चल रही है जोरों से,
जनु किसान को घुड़क रही है।
बरस रहा है जमकर बादल,
खेतों में डटा किसान है।
देखो यह किसान है।
शीतलहर चल रही गजब,
सब अस्त व्यस्त बेहाल है।
ठिठुर रहा है जो जाड़ों से,
तन पर फटी रूमाल है।
अन्न उगाकर भूखा रहना,
यहीं तो इसकी शान है।
देखो यह किसान है।
आग उगलती चली दुपहरी,
सूरज हुआ जवान है।
हैं खेत में पके हुए गेहूं,
काट रहा ये किसान है।
तपती धूप में बोझा बांधे,
पहुंचाता खलिहान है।
देखो यह किसान है।
रूपयों पैसों से विहीन है,
तन पर कपड़ा ना आंटे।
जीवन जिसका सदा दुःखी है ,
सारा जीवन दुःख काटे।
मेरे जीवन का रक्षक है,
यह प्रत्यक्ष भगवान है।
देखो यह किसान है।




