भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला द्वारा 17–18 जून को आयोजित “भारत–पश्चिम के साझा वित्त–संदर्भ: गांधी, कुमारस्वामी और टैगोर” विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में भारतीय और पश्चिमी विचारधाराओं के अंतःसंबंधों पर गहन विमर्श हुआ।
प्रो. आर.के. मिश्र (राजनीति विज्ञान, लखनऊ विश्वविद्यालय) ने उद्घाटन सत्र में भारत–पश्चिम के युवा विमर्शों को पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता पर बल देते हुए भारतीय लोक–संस्कृति और परंपरागत रचनात्मकता की सराहना की। संस्थान की अध्यक्ष प्रो. शशिप्रभा कुमार ने भारतीय ज्ञान परंपरा के पुनर्प्रयोग को वर्तमान समय की आवश्यकता बताया।
प्रो. अभय कुमार दुबे (पूर्व, सी.एस.डी.एस.) ने अपने वक्तव्य में भारतीय ज्ञान परंपरा को भाषा के माध्यम से समृद्ध करने वाले तत्वों की पहचान को भारत–पश्चिम संवाद का मूल बताया।
संगोष्ठी में विभिन्न विद्वानों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए:
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डॉ. नीलय उपाध्याय: परंपरा और आधुनिकता के बीच संबंध
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डॉ. नीरज कुमार फ्लैग: कुमारस्वामी की कला-दृष्टि
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डॉ. सुमेल सिंह सिद्धू: जातीय संस्कृति का योगदान
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डॉ. जी.बी. हरिश: युवा के सांस्कृतिक पहलू
समापन सत्र में प्रो. अंबिका दत्त शर्मा (सागर विश्वविद्यालय) ने भारत–पश्चिम के विमर्श को भारतीय भू–संस्कृतिक अवधारणाओं और वैदिक सूत्रों के आलोक में समझने का आग्रह किया।
संगोष्ठी के संयोजक प्रो. बृजेश पांडे ने आभार ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन किया।