July 1, 2025

क्या होती है ये, कृष्ण पिंगला संकष्टी चतुर्थी? – डॉ. कमल के. प्यासा

Date:

Share post:

डॉ. कमल के. प्यासा – मण्डी

कृष्ण पिंगला संकष्टी चतुर्थी को उस (गहर गंभीर, भोले भाले एक दंत,) देव गणेश जी की चतुर्थी को ही कहा जाता है। वैसे तो गणेश चतुर्थी हर महीने दो बार आती है, एक शुक्ल पक्ष की व दूसरी कृष्ण पक्ष की, कुल मिलकर वर्ष भर में 24 चतुर्थथियां बन जाती हैं। इनमें से कृष्ण पक्ष वाली चतुर्थी ही कृष्ण पिंगला संकष्टी चतुर्थी कहलाती है। इस चतुर्थी में कृष्ण का अर्थ अंधेरे से व पिंगला का अर्थ पीले+लाल (नारंगी) से लिया जाता है, व संकृष्टि का अर्थ सभी तरह के कष्टों के लिए जाना जाता है। चतुर्थी का अर्थ चौथे दिन से लिया जाता है। अर्थात ये सभी देव गणेश की पूजा अर्चना से संबंध रखते हैं। फिर जब गहरे अंधेरे व नारंगी रंग का मिलन होता है तो भूरा सा रंग बनता है जो कि देव गणेश की महानता और शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। तभी तो इस दिन देव गणेश की विशेष पूजा अर्चना की जाती है, क्योंकि इसी दिन भगवान शिव द्वारा गणेश को प्रथम पूज्य बताया गया था। देव गणेश भी इस दिन पृथ्वी पर ही वास करते हैं। इस बार आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी 14 जून शनिवार के दिन है। जो कि 14 जून को दोपहर 3.46 से शुरू हो कर अगले दिन 3.51 तक रहेगी।

14 जून को ही चंद्रमा 9.36 पर उदय होगा, तभी जल अर्पित किया जाएगा।

कृष्ण पिंगला संकष्टी चतुर्थी के दिन रखे जाने वाले व्रत के अनेकों महत्व बताए जाते हैं, अर्थात इससे संतान प्राप्ति व संतान का सुख मिलता है, सुख समृद्धि, मनवांछित वर व इच्छाओं की पूर्ति होती है। मनोबल, ज्ञान, धर्म, कर्म, संपति व सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है और अशुभ ग्रहों का नाश होता है। इसलिए इस दिन किए जाने वाले पूजा पाठ व व्रत को बड़ी ही सावधानी व नियमानुसार ही करने को कहा जाता है, और पूर्व तैयारी के लिए, लाल वस्त्र, तांबें का कलश, गंगा जल, घी, दिया, हल्दी, कुमकुम, अक्षत, लाल, चंदन, मौली, जनेऊ, तिल, तिल गुड़ के लड्डू या मोदक, लाल रंग के फूल, दूर्वा, फूलों का हार, धूप, कपूर, फल व नारियल आदि को पहले से ही लेकर तैयार रहने के लिए कहा जाता है। इसी तरह से रात्रि के समय चंद्रमा के पूजन के लिए भी तांबे का कलश, दूध, जल, पूजा के लिए थाली, हल्दी, कुमकुम, अक्षत, भोग, दिया, फूल, धूप ब फल आदि का प्रबंधन करके तैयार रहने के लिए कहा जाता है।

कृष्ण पिंगला संकष्टी चतुर्थी के व्रत व पूजा पाठ के मध्य कुछ एक बातों का ध्यान रखने को भी कहा जाता है, अर्थात इस पर्व के अवसर पर तुलसी व केतकी के फूलों का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं करना चाहिए। इस दिन किसी भी शुभकार्य की शुरुआत नहीं करनी चाहिए। कभी भी किसी के प्रति अशुभ विचार, व्यवहार, गली गलौज व निंदा से बचना चाहिए और तामसिक भोजन का तो बिल्कुल भी सेवन इस दिन वर्जित किया गया है, यहां तक कि लहसुन, प्याज व मसर की दाल की भी मनाही है। व्रत व पूजा पाठ के लिए सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्रों के धारण के पश्चात सूर्य देव को जल अर्पित करना चाहिए। घर की साफ सफाई के पश्चात सभी ओर गंगा जल का छिड़काव करके शुद्धि कर लेनी चाहिए। इसके पश्चात पूजा स्थल व लकड़ी के पटड़े को भी गंगा जल के छिड़काव से शुद्ध करके उस पर लाल कपड़ा बिछा कर देव गणेश की प्रतिमा या चित्र रख कर तब विधिवत पूजा के लिए बैठना चाहिए।

इस पर्व के व्रत की महत्ता संबंधी कई एक पौराणिक कथाएं सुनने को मिलती हैं, जिनमें से एक कथा द्वापर युग के माहिष्यति नगरी के प्रतापी, कुशल प्रजा पालक राजा महिजीत की बताई जाती है। राजा महिजीत बड़ा ही धार्मिक व कुशल प्रशासक था, उसके राज्य में सभी लोग सुख चैन से रह रहे थे, लेकिन विधाता द्वारा राजा के यहां संतान न होने का दुख किसी से नहीं देखा जा रहा था। राजा बढ़ती उम्र के कारण हर समय अपने उतराधिकारी व संतान के बारे में सोचता रहता था और इसके लिए उसने कई तरह के उपाय व यज्ञ आदि भी कर लिए थे, लेकिन कुछ नहीं बना। अंत में उसने अपने सभी दरबारियों, विद्वानों, पंडितों व आम जनप्रतिनिधियों को दरबार में बुला कर , सबके सामने समस्या को रख कर उनकी राय मांगी। विद्वानों पंडितों व जनप्रतिनिधियों ने राजा को महा ऋषि लोमश से मिलने को कहा।

राजा ने वैसा ही किया और महा ऋषि लोमश के पास पहुंच गए। ऋषि लोमश ने राजा की समस्या पर विचार करते हुए ,उन्हें कृष्ण पिंगला संकोष्ठी चतुर्थी का व्रत करने को कह दिया। राजा ने महा ऋषि लोमश के विचारों व सुझावों के अनुसार वैसा ही किया, जिससे रानी सुदक्षिणा के यहां शीघ्र ही सुन्दर पुत्र ने जन्म लिया। तभी से इस व्रत की महिमा व चर्चा आगे से आगे बढ़ती चली गई। क्योंकि इस व्रत से सभी तरह के दुखों से छुटकारा मिल जाता है। व्रत के मध्य देव गणेश के इस मंत्र का जाप 101 या 1001 बार करने पर सभी तरह के दुखों से छुटकारा मिल जाता है। देव गणेश का वह मंत्र है:”ॐ ग़ गणपतये नमः”।

अंत में आप सभी को कृष्ण पिंगला संकष्टी चतुर्थी की हार्दिक बधाई व एक दंत देव गणेश की कृपा दृष्टि सभी पर बराबर बनी रहे।

 

संत कबीर प्रकट दिवस – डॉ.कमल के. प्यासा

Daily News Bulletin

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Related articles

मानसून में आमजन की सुरक्षा के लिए जरूरी एडवाइजरी जारी

दक्षिण-पश्चिम मानसून सीजन 2025 की शुरुआत हो चुकी है और भारतीय मौसम विभाग ने भारी बारिश तथा लंबे...

CM Launches Rs. 36 Crore Projects in Nagrota Bagwan

CM Sukhu, during his visit to Kangra district on Monday, inaugurated and laid foundation stones for eight key...

जयराम ठाकुर ने भारी बारिश में सतर्कता की अपील की

नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने प्रदेश में जारी भारी बारिश और रेड अलर्ट को देखते हुए जनता से...

Govt Plans MSP Hike for Wool: CM Sukhu

CM Sukhu, while receiving a warm welcome by Himachal Pradesh State Wool Federation Chairman Manoj Kumar and supporters...