हिमाचल प्रदेश के ऐतिहासिक बैंटनी कैसल में ‘पहाड़ी आंगन’ नामक एक अनूठी प्रदर्शनी का आयोजन किया गया है, जो राज्य की सांस्कृतिक धरोहर, पारंपरिक व्यंजन, हस्तशिल्प और महिला सशक्तिकरण का जीवंत प्रतीक बनकर उभरी है। यह पहल न केवल हिमाचल की लोकसंस्कृति को देश-दुनिया तक पहुंचाने का माध्यम है, बल्कि ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी एक ठोस कदम है।
प्रदर्शनी में शिमला जिले के 12 स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं ने पारंपरिक भोजन, हैंडीक्राफ्ट, परिधान और स्थानीय उत्पादों के स्टॉल लगाए हैं। यहां हिम-ईरा ब्रांड के तहत तैयार वस्तुओं की भी बिक्री हो रही है। पर्यटकों और स्थानीय नागरिकों की भारी भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि यह मंच महिलाओं को सामाजिक पहचान और आर्थिक संबल दोनों प्रदान कर रहा है।
यह पहल ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत चलाई जा रही है। वर्तमान में हिमाचल प्रदेश के 88 विकास खंडों में 42,502 स्वयं सहायता समूह सक्रिय हैं, जिनसे 3.48 लाख महिलाएं जुड़ी हैं। इनमें से 29,035 समूहों को 58 करोड़ रुपये से अधिक की वित्तीय सहायता दी जा चुकी है। इसके अलावा 3,374 ग्राम संगठन और 117 क्लस्टर स्तर संघों का गठन भी हो चुका है, जो इस नेटवर्क को और मजबूत कर रहे हैं।
अतिरिक्त उपायुक्त अभिषेक वर्मा ने कहा कि ‘पहाड़ी आंगन’ जैसे आयोजन न केवल महिलाओं को सशक्त बना रहे हैं, बल्कि हिमाचल के पर्यटन को भी नई पहचान दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह मंच महिला उत्पादकों को उपभोक्ताओं से सीधे जोड़ने का काम कर रहा है।
हिमाचल राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के उप मुख्य कार्यकारी अधिकारी हितेंद्र शर्मा ने बताया कि भविष्य में यह मंच अन्य जिलों की महिलाओं को भी मिलेगा। अगला चरण किन्नौर जिले की महिलाओं के लिए होगा, जिसके बाद क्रमशः सभी जिलों को इसमें शामिल किया जाएगा।
कांता देवी, सुमन और पूनम जैसी महिलाएं, जो पहले सिर्फ घर तक सीमित थीं, अब ‘पहाड़ी आंगन’ के माध्यम से व्यवसायी और प्रेरणा स्रोत बन गई हैं। इनका कहना है कि यह मंच उन्हें आत्मविश्वास, पहचान और आर्थिक मजबूती दे रहा है।
जिला सोलन की 65 वर्षीय शीला देवी ने कहा, “यहां का खाना और कपड़े शानदार हैं। महिलाएं जिस आत्मविश्वास के साथ स्टॉल चला रही हैं, वह सचमुच सराहनीय है।” उन्होंने सभी को ‘पहाड़ी आंगन’ में आने और इन महिलाओं का उत्साहवर्धन करने की अपील की।
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