कल्पना गंगटा, शिमला
मानव जन्म है जब लिया इस धरा पर,
याद रखे जमाना कुछ ऐसा नया करना सीखो,
शुद्ध धरा के इस आँगन में, तिमिर को हटाकर,
उजाला नया भरना सीखो ।
परिस्थितियों से लड़ना तम से भी न डरना,
सबको राह दिखते हुए, तिल-तिल कर जलना सीखो,
जीना है तो दीपक बनकर जीना सीखो ।
पग-पग पर प्रकाश फैलाना,
समय की डगर पर डटे रहना,
भेदभाव अपने पराए का भुलाकर,
हर पावन अवसर पर, ज्योति बिखेरना सीखो,
सब-कुछ भुलाकर दीपक बनकर जीना सीखो ।
खुद पर गुमान न करना,
हर हाल में तिमिर को हरना,
आँधी तूफान में भी अस्तित्व बनाए रखना,
नकारात्मकता तज कर, आगे बढ़ना सीखो,
स्वार्थ छोड़ कर गैरों के लिए भी जलना सीखो,
जीना है तो दीपक बनकर जीना सीखो ।