हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग जूनियर ऑफिस असिस्टेंट (जेओओ) पद के लिए दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को सामान्य कंप्यूटर पर टाइप टेस्ट देने पर मजबूर कर रहा है। जबकि उन्हें टॉकिंग सॉफ्टवेयर वाले कंप्यूटर उपलब्ध कराए जाने चाहिए। उन्हें एवं श्रवण बाधित उम्मीदवारों को आयोग टाइप टेस्ट से छूट भी नहीं दे रहा। राज्य विकलांगता सलाहकार बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्य और उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने मुख्य सचिव को इस बारे में शिकायत भेज कर तुरंत जरूरी कदम उठाने को कहा है।
उनका कहना है कि दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को बिना टॉकिंग सॉफ्टवेयर वाले कंप्यूटरों पर टाइप टेस्ट देने के लिए मजबूर करना गलत है। यह विकलांगजन अधिकार कानून, 2016 के प्रावधानों का खुला उल्लंघन और गंभीर किस्म का भेदभाव है। प्रो. अजय श्रीवास्तव ने कहा कि इस भेदभाव की जड़ में कार्मिक विभाग द्वारा 28 मई 2020 को प्रदेश लोक सेवा आयोग से परामर्श कर जारी वह अधिसूचना है जिससे जेओओ एवं अन्य लिपिकीय वर्गो के भर्ती एवं पदोन्नति नियम में संशोधन कर नए नियम बनाए गए हैं। इनमें प्रावधान है कि दृष्टिबाधित और श्रवण बाधित उम्मीदवारों को टाइप टेस्ट से छूट भी नहीं मिलेगी। यह रियायत सिर्फ उन्हें मिलेगी जो शारीरिक विकलांगता के कारण टाइप नहीं कर सकते। आयोग ने जेओओ के पद सामान्य वर्ग के लिए निकाले थे।
इनमें एससी, एसटी एवं दिव्यांगजन भी आवेदन कर सकते हैं और मेरिट के आधार पर उनका चयन संभव है। प्रो. श्रीवास्तव ने कहा कि यदि कोई दृष्टिबाधित लिखित परीक्षा पास कर लेता है तो उसे साधारण कंप्यूटर पर टाइप टेस्ट देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। वर्ष 2016 के कानून में बिल्कुल स्पष्ट है कि दिव्यांगता के आधार पर भेदभाव गैर कानूनी है। उन्होंने कहा की इस कानून में यह भी कहा गया है कि दिव्यांग परीक्षार्थी जिस माध्यम से परीक्षा दे सकता है वह साधन उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व है। जबकि आयोग टॉकिंग सॉफ्टवेयर वाले कंप्यूटर भी नहीं दे रहा और दृष्टिबाधित वर्ग को टाइप टेस्ट से छूट भी नहीं देगा। प्रो. श्रीवास्तव ने मुख्य सचिव से तुरंत इस संबंध में आवश्यक कदम उठाने का अनुरोध किया क्योंकि आजकल आयोग टाइप टेस्ट के लिए उम्मीदवारों को बुला रहा है।