देव ऋषि पराशर का यह मंदिर मंडी जिला की दरंग विधान सभा के इलाका स्नोर के पड़ासर नामक स्थल में (हरी भरी चारागाहों के मध्य समुद्र तल से लगभग 3000 मीटर की ऊंचाई पर) स्थित है। मंडी से इस मंदिर की दूरी लगभग 50 किलोमीटर के करीब बनती है।यहां पहुंचने के लिए दो प्रमुख मार्ग मंडी से कटौला बागी हो कर तथा मंडी पनारसा से ज्वालापुर प्यून होकर भी पहुँचा जा सकता है।
ज्वाला पुर तक तो बस द्वारा पहुँचा जा सकता है। आगे प्यून से नाले के साथ साथ चल कर आध पोंन घण्टे में पराशर मंदिर पहुंच जाते हैं। पैगोडा शैली के इस मंदिर का निमार्ण मंडी के सेन शासक राजा बाण सेन (13-14वीं शताब्दी) ने करवाया था। मंदिर के निर्माण के सम्बंद में कुछ एक किवदंतियां भी प्रचलित हैं अर्थात मंदिर के निर्माण में केवल एक ही देवदार पेड़ की लकड़ी का प्रयोग किया गया है तथा मंदिर का निमार्ण एक 12 वर्ष के बालक कारीगर द्वारा किया गया।
ऐसा भी बताया जाता है कि बालक को रात को स्वपन में एक मकड़ी दिखाई देती थी जो (अपनी लार निकाल कर) जाल में मंदिर का डिज़ाइन बना देती थी और फिर अगले दिन उसी आकार को वह बालक लकड़ी में रूप दे कर उतार देता था। इसी वृतांत को कहीं ऐसा भी बताया जाता है कि बालक के स्वपन में ऋषि पराशर आ कर उसे मंदिर निर्माण का आकार बता कर चले जाते थे व अगले दिन उसी ऋषि के आदेशानुसार बालक मंदिर का निर्माण कर देता था।
कुछ भी हो पराशर ऋषि का यह पैगोडा शैली का मंदिर अपनी लकड़ी की करागरी के लिए विशेष पहचान रखता है। मंदिर की कुल मिला कर तीन छत्ते हैं। सबसे नीचे की छत आकार में सबसे बड़ी फिर ऊपर वाली इससे कुछ छोटी तथा तीसरी सबसे ऊपर वाली घेरे में सबसे छोटी है।नीचे वाली दोनों छत्ते पिरामिडाकार व स्लेट टाईलों से छत्ती हैं जब कि तीसरी सबसे ऊपर वाली शंकुकार की तरह लोहे की टीन से छत्ती गई है।
मंदिर प्रवेश द्वार: सुन्दर लकड़ी की नकाशी का कार्य यहीं से शुरू हो जाता है और फिर जिधर भी नज़रे जाती हैं वहीं यह सुंदर कारीगरी किसी न किसी रूप में देखने को मिल ही जाती है। प्रवेश द्वार के ऊपर पड़े सरदल पर एक लम्बी पंक्ति में लोक वादकों को अपने वाद्य यंत्रों के साथ दिखाया गया है,इन्हीं के नीचे की ओर कुछ अन्य अस्पष्ठ आकृतियां भी देखीं जा सकती हैं,जो कि मौसम व समय की मार के फलस्वरूप अत्याधिक घिसी पिटी प्रतीत होत्ती हैं।द्वार के आगेअंधेरा लिए खुला बरामदा बना है।बरामदे के अंधेरे का मुख्य कारण पैगोडा रूपी मंदिर की सबसे नीचे वाली (बड़ी) छत है।
मंदिर के प्रवेश द्वार व चारों ओर सुंदर (लकड़ी पर की नकाशी )कार्य को देख कर हर कोई चकित रह जाता है। प्रवेश द्वार की चौखट के के बायीं ओर के प्रथम खड़े थाम के आधार पर एक 10″गुणा 10″ की चतुर्भुजा देव आकृति दिखाई गई है,जिसके ऊपर की ओर जालीदार नकाशी व बेल बूटों की सजावट देखते ही बनती है। इसी तरह का कार्य दूसरी ओर अर्थात दायीं तरफ़ के पहले खड़े थाम पर देखा जा सकता है,लेकिन इस थाम की मध्य वाली आकृति स्पष्ठ नहीं दिखती। चौखट के बायीं ओर के दूसरे खड़े थाम के आधार की ओर एक 10″गुणा 10″की नरसिंह अवतार की भगवान की आकृति देखी जा सकती है।
जब कि बायीं ओर के दूसरे खड़े थाम के आधार में 10″गुणा 10″ की आकृति में देवी महिषासुरमर्दनी को दिखाया गया है। दोनों ओर के थामों के मध्य अर्थात नीचे वाली आकृतियों के ऊपर की ओर जालीदार नकाशी व फूलदान को दिखाया गया है, किसके पत्ते नीचे की ओर लटक रहे हैं।शीर्ष की ओर थामों पर एक एक देवी की आकृति उकेरी देखी जा सकती है।आखिर में दोनों ओर 10″गुणा10 “की दायीं ओर वाहन वाली देव आकृति व बायीं ओर भगवान विष्णु को दिखाया गया है।
थामों के ऊपर वाले सरदल पर ,ऊपर वाली दोनों आकृतियों के मध्य में 7 लोक वाद्य यंत्र वादकों को वआगे नंदी के साथ भगवान शिव व देवी पार्वती के साथ दिखाया गया है।इन्हीं के आगे 5 योद्धाओं को भी बायीं ओर दिखाया गया है।शायद यह सारा प्रसंग भगवान शिव के विवाह का दिखाया गया होगा। अगले अर्थात दोनों ओर के तीसरे खड़े थाम के आधार की आकृति स्पष्ठ नहीं है, लेकिन ऊपर की ओर की देवी की छवि दोनों तरफ स्पष्ठ है।
थामों के शीर्ष में सुंदर नकाशी का कार्य दोनों तरफ देखने को मिल जाता है तथा मध्य भाग में 3-3 देव आकृतियां दोनों ओर देखने को मिल जाती हैं,जिनके नीचे की तरफ फिर देवी महिषासुरमर्दनी को दोनों ओर देखा जा सकता है।एक अन्य थाम के मध्य में एकान्तर ढंग दे तीन तीन ऋषियों को दोनों तरफ ऊपर नीचे के क्रम में दिखाया गया है।ऐसे ही ऊपर वाले एक पड़े सरदल के मध्य में देवी महिषासुरमर्दनी को अपनी सेविका के साथ ,जिसके दोनों तरफ ऋषियों को दिखाया गया है।
मंदिर प्रवेश द्वार के दोनों ओर एक एक सुंदर नकाशीदार झरोख भी देखा जा सकता है ,जिनका अलंकरण भी देखने योग्य है।दाई ओर के झरोखे में ऊपर की तरफ देव आकृतियों को मंथन की मुद्रा में दिखया गया है,जिन में दो ऊपर की ओर तथा छह उससे नीचे दिखाए गए हैं और फिर नीचे देवी महिषासुरमर्दनी को देखा जा सकता है। दायीं ओर के झरोखे में ऊपर षष्ठ भुज देवी को अपने वाहन पर दिखाया है तथा नीचे की ओर देवी की सेविकाओं को दिखाया गया है।नीचे भगवान विष्णु को बैठी मुद्रा में दिखाया है।
मंदिर का गर्भ गृह द्वार :
मंदिर के प्रवेश द्वार से लगभग 3-4 फुट आगे गर्भ गृह द्वार आ जाता है,जो कि आकार में 3.5 फुट गुणा 2.5 फुट देखा गया है। इधर भी चौखट पर भी भारी भरकम लकड़ी की करागरी देखी जा सकती है।द्वार के दायीं व बायीं तरफ की चौखट के खड़े थामों के आधार पर चतुर्भुज पशु स्वार देव आकृति दिखाई गई है।प्रथम से आगे के दूसरे खड़े थाम पर दोनों तरफ एक एक चंवर धारी सेवक को चंवर लिए दिखाया गया है।इसी तरह से आगे के तीसरे थाम में दोनों ओर एक एक वीणा वादक को दिखाया गया है। चौथे थाम पर देवी महिषासुरमर्दनी तथा पांचवें थाम में दायीं ओर ऊपर से नीचे दो योद्धाओं को खड़ी मुद्रा में दिखाया गया है,दूसरी पंक्ति में दो अन्य आकृतियों के साथ साथ एक धनुष धारी को दिखाया गया है।
चौथी पंक्ति में दो आकृतियों को नमन मुद्रा में हाथों को जोड़े दिखाया गया है। इसी क्रम से चौखट के बायीं ओर के खड़े थाम पर भी ऊपर से नीचे क्रमश इन आकृतियों को देखा जा सकता है,अर्थात दो देव आकृतियां (एक पक्षी वाहन पर),एक धनुष व फरसा धारी(देव परशु राम),एक धनुष व फूल लिए,दो पशु (बंदर) व एक पशु सवार देव आकृति जिसके नीचे सर्प भी दिखया गया है।चौखट के ऊपर पड़ी सरदल में पांच नृत्य मुद्रा में मानव आकृतियों के साथ ही साथ कुछ लोक वादक भी दिखाए गए हैं,कुछ एक ने देव पालकी को भी उठा रखा है,इन सब के अतिरिक्त दोनों तरफ जालीदार नकाशी देखी जा सकती है।
गर्भ गृह: 6फुट गुणा 6 फुट आकार के छोटे से गर्भ गृह में बायीं ओर से कुछ प्रतिमाएं रखीं देखी जा सकती हैं,जो कि इस प्रकार से हैं:एक पत्थर की पिंडी ,एक पत्थर की प्रतिमा(दोनों देव पराशर जी की), एक पत्थर की प्रतिमा भगवान विष्णु जी की शेष नाग के साथ,एक प्रतिमा लक्ष्मी नारायण जी की, एक प्रतिमा भगवान शिव की व एक संगमरमर की देव गणेश की प्रतिमा।इसी गर्भ गृह के चारों ओर तीन फुट चौड़ा प्रदक्षिणा पथ भी बना है, जिसमें भी गर्भ गृह ही की तरहअंधेरा (सबसे नीचे वाली छत के बड़ा व नीची होने के कारण) रहता है। बाहर प्रदक्षिणा पथ के बायीं ओर कुछ अन्य प्रतिमाएं भी पड़ी देखी जा सकती हैं, जो इस प्रकार से हैं:प्रतिमा देव गणेश,दो बरसेले प्रतिमाएं,भगवान राम जी की एक प्रतिमा,एक शिव वाहन नंदी व कुछ अन्य ऋषि पराशर जी की।
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