
रणजोध सिंह – बूढ़े रामचरण ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया बाबुओं की भवें तन गयी और एक क्षण पहले जहाँ हंसीं के फुहारों छूट रहे थे वहां मरघट की सी उदासी छा गई | रामचरण ने क्रम से कमरे के अन्दर बैठे हुए सारे बाबुओं का नतमस्तक होकर अभिनन्दन किया | और फिर एक बाबू की मेज़ के पास जाकर चुपचाप खड़ा हो गया | वह किसी तरह लाठी के सहारे खड़ा था |
उसकी सफेद दाढ़ी, चेहरे की अनगिनत झुरियां व कांपते हुए हाथ इस बात की साफ़ गवाही दे रहे थे कि वह जीवन के उस हिस्से में पहुँच चुका था जहां इंसान में जीने की इच्छा लगभग समाप्त हो जाती है | आज से कुछ कुछ माह पूर्व उसका इकलोता बेटा सुखपाल इसी कार्यालय में सफाई कर्मचारी के रूप में नियुक्त था |
रामचरण की पत्नी तो पहले ही ईश्वर को प्यारी हो चुकी थी| मगर घर में पुत्र-वधू थी, एक पोता भी था | उतर प्रदेश के बिजनौर जिले के एक गाँव में उसका छोटा सा घर था | रामचरण इसी मकान में अपनी पुत्र-वधू व पोते के साथ रहता था | उसका बेटा सुखपाल शिमला में सरकारी नौकरी के कारण अकेला ही रहता था | एक रात उसने देखा उसके कार्यालय का भवन धू-धू करके जल रहा है |
कार्यालय में चौकीदार जो शराब के नशे में धुत एक कमरे में पड़ा था, के अलावा और कोई नहीं था | सुखपाल की खोली कार्यालय के पास ही थी | सर्वप्रथम उसी ने आग के शोलों को कार्यालय की चिमनियों से उठते देखा था | चौकीदार की चीख पुकार सुनकर अपनी जान की परवाह न करते हुए वह आग की लपटों में कूद गया | उसने चौकीदार को तो बचा लिया परन्तु स्वयं बुरी तरह जल गया, अस्पताल जाते – जाते उसके प्राण-पखेरू उड़ चुके थे |
रामचरण जो विजनौर में बैठा हुआ बेटे के मनी – ऑर्डर का इंतजार कर रहा था, को एक तार मिली, जिसमें उसके बेटे के आकस्मात निधन का जिक्र था | उस पर तो जैसे बिजली ही गिर गई थी | वह एकदम जड़बत हो गया | पुत्र-वधू जो अब तक माथे पर मोटी सी लाल बिंदिया लगाती थी, सफेद कफन सा ओढ़े खड़ी थी | रामचरण कर्ज लेकर किसी तरह शिमला पहुँचा ताकि बेटे का अंतिम संस्कार कर सके | परन्तु कर्ज समय पर न मिलने के कारण वह आने में लेट हो गया, उसके बेटे का अंतिम संस्कार उसके कार्यालय के लोगों द्वारा कर दिया गया था | कार्यालय के सभी लोगों ने उसे सांत्वना दी, उसके बेटे की भूरि–भूरि प्रशंसा की |
सबने बारी-बारी उसकी बहादुरी की कहानी उसे सुनाई कि किस तरह उसने अपनी जान जोखिम में डाल कर चौकीदार की जान बचाई | सभी ने उसे आश्वासन दिया कि उससे कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है, उसके बेटे की जान सरकारी कार्यालय में गई है इसीलिए उसके परिवार को इसका मुआवजा भी मिलेगा तथा सुखपाल की पत्नी को सरकारी नौकरी भी |” बड़े साहब ने भी उसे कुछ इसी तरह के मीठे संवाद कहे और कुछ दिन बाद आने को कहा | इधर रामचरण सोच रहा था कि वह कितना अभागा है, अपने बेटे को आख़िरी बार एक नज़र देख भी न सका | यही कसक लेकर वह विजनौर वापिस चला गया | घर में कमाने बाला व्यक्ति काल का गल बन चुका था परन्तु, जिन्दा रहने के लिए दो वक्त कि रोटी तो चाहिए ही, ये एक ऐसा प्रश्न था जिसने उसकी रही-सही जिन्दगी को भी दीमक की भांति चाटना शुरू कर दिया था | अचानक उसे बड़े साहब की मुआवजे वाली बात याद आई |
उसने विरादरी के लोगों से कर्ज लिया और शिमला के लिए रवाना हो गया | रास्ता काफी लम्बा था | रास्ते भर सोचता रहा कि उसका बेटा कितना बहादुर था, आज के जमाने में अपनी जान पर खेल कर दूसरों की जान कौन बचाता है | उसके कार्यालय के लोग उसकी कितनी तारीफ़ कर रहे थे | उसका सीना गर्व से फूल उठा | शिमला पहुँच कर वह सीधे सुखपाल के कार्यालय पहुंचा | कार्यालय यथावत लगा हुआ था | कुछ लोग फाइलों को उलट-पलट रहे थे तथा कुछ लोग लोहे पर खट-खट करते हुए सफेद कागजों को काले कर रहे थे | अभी उसके बेटे के निधन को एक महीना भी नहीं हुआ था उसने सोचा उसे तो एक ही नज़र में पहचान लिया जायेगा |
एक बार फिर उसके बेटे की बहादुरी के चर्चे किये जायेंगे | एक बार फिर उसे सहानूभूति की घुटी पिलाई जायेगी, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ | सभी लोग यंत्रवत अपना-अपना कार्य करते रहे | किसी ने नज़र उठा कर भी नहीं देखा | रामचरण हैरान सा होता हुआ बड़े बाबू के पास आ खड़ा हुआ, बड़े बाबू ने आँख के चश्मे को ऊपर उठाते हुए उसकी तरफ देखा और अनमने से पूछा, “कहिये क्या काम है?” रामचरण को यह सुनकर एक धक्का सा लगा क्योंकि ये वही बड़े बाबू थे जो पिछली बार उसके बेटे की सबसे अधिक प्रशंसा कर रहे थे | उसे हर संभव सहायता प्रदान करने का वचन दे रहे थे |
लेकिन फिर भी उसने सहजता से उतर दिया, “साहिब आपने मुझे पहचाना नहीं मैं सुखपाल का पिता हूँ |” बड़े बाबू ने अपने दिमाग पर जोर डालते हुये कहा, “अच्छा- अच्छा ….. सुखपाल के पिता ….. सफाई कर्मचारी…. भई मुझे बड़ा अफ़सोस हुआ था उसकी मौत पर, कहीये मैं आपके लिए क्या काम कर सकता हूँ?” रामचरण नें अपनी गरीबी व दुर्दशा का रोना रोते हुए अपने बेटे के लिए मुआवजे को तलब किया |
बड़े बाबु ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, ”अरे वह तुम्हारा जायज हक़ है, वह तो तुम्हें मिलना ही है |” यह कहकर बड़े बाबू ने साहब से रामचरण से बारे में फ़ोन पर ही बात की | साहब किसी मीटिंग में जा रहे थे अतः उन्होंनें यह केस बड़े बाबू को ही सौप दिया | बड़े बाबू ने प्रसन्न होते हुये कहा लगता है तुम्हारा काम जल्दी हो जायेगा | ऐसा करो तुम अपनी पुत्र-वधू की तरफ मुआवजे के लिए एक प्रार्थना पत्र, अपने बेटे का डेथ सर्टिफिकेट तथा कानूनी वारिस का प्रमाण पत्र दे दो और फिर तुम तीन-चार दिन बाद आना |
इस बीच मैं तुम्हारा काम करवाने की कोशिश करूंगा |” रामचरण हैरान सा होकर बड़े बाबू की ओर देखने लगा | बड़े बाबू जी को उसके बेटे के बारे में सब कुछ मालूम था फिर वे ये सब कुछ क्योँ मांग रहे थे ? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और क्या ना करे ? वह विस्मय से बड़े बाबू की ओर देख रहा था | बड़े बाबू शायद उसका आशय समझ गये थे, वे कुछ लाचारी के स्वर में बोले, “देखो रामचरण ये सच है कि तुम्हारे बेटे की जान कार्यालय के प्रांगण में गई है, ये भी सच है कि बेटे की मौत का मुआवजा तुम्हें मिलना है, परन्तु फिर भी सरकार का काम करने का अपना एक तरीका है | कई औपचारिकतायें निभानी पड़ती हैं तभी कोई बात बनती है |
मैंने तुमसे ये जो डाक्यूमेंट्स, मेरा मतलब जो कागज मंगवाए हैं वे तुम्हें लाने ही होंगे | तुम जितनी जल्दी ये कागज लाओगे, उतनी ही जल्दी तुम्हें तुम्हारे बेटे का प्रोविडेंट फण्ड व अन्य भुगतान मिल जायेंगे तथा थोड़ी सी औपचारिकताओं बाद तुम्हारी बहु को मुआवजा व नौकरी भी मिल जायेगी | रामचरण अभी तक भी उलझन में ही था उसने थोड़ी हिम्मत करके पूछ ही लिया, “लेकिन साहिब ये कागज मिलेंगे कहाँ से ? मैं तो एक अनपढ़ गरीब आदमी हूं |” “अरे ये ज़रा टेढ़ा काम है परन्तु मुश्किल नहीं, तुम्हारा बेटा ऑफिस में काम करते हुये मारा गया है, इस बात का प्रमाण पत्र हम यहां से जारी कर देंगे | उसके बाद तुम सीधे किसी वकील को पकड़ लेना, उसे कार्यालय का कागज दिखा देना उसे कहना कि तुम्हें अपने बेटे की मृत्यु का प्रमाण पत्र चाहिए | वह तुम्हारा प्रार्थना पत्र भी लिख देगा तथा तुम्हें डेथ सर्टिफिकेट भी दिला देगा |
तुम्हें ज्यादा चक्कर में फंसने की जरूरत नहीं है, वकील को हज़ार-दो हज़ार रूपये पकड़ा देना, वह सारे काम स्वयं ही कर देगा और तुम बेकार की परेशानी से भी बच जाओगे | इस कार्यालय से तो मैं तुम्हारा काम आज ही करवा देता परन्तु फिलहाल आज तो बॉस किसी मीटिंग में जा रहा है | ऐसा करो तुम कल इसी वक्त आ जाना |” इतना कह कर बड़े बाबू उठ कर चाय पीने चले गये, परन्तु राम चरण वहीं खड़ा रह गया | वह तो सोच रहा था कि उसे जाते ही पैसे मिल जायेंगे मगर बड़े बाबू ने तो उसे बड़ी उलझन में डाल दिया था ये कैसा दस्तूर है कि अपने सगे बेटे की मृत्यु का प्रमाण पत्र किसी दूसरे व्यक्ति से लेना पड़ेगा और वह भी हज़ार-दो हज़ार रूपये देकर | इतने रूपये आयेंगे कहाँ से ? वह तो पहले ही उधार लेकर आया था ….. उसका सिर चकराने लगा …. उसे सब कुछ घूमता हुआ नज़र आ रहा था |
वह धम्म से वहीं जमीन पर ही बैठ गया बहुत देर तक सोचता रहा और अन्त में इसी निष्कर्ष पर पहुंचा कि विजनौर जाया जाये तथा कुछ पैसों का इंतजाम किया जाये | दूसरे दिन वह पहली गाड़ी से विजनौर निकल गया | उसकी पुत्र-वधू व पोता उसकी राह ऐसे निहार रहे थे जैसे चकोर स्वाती नक्षत्र की बूंद का इंतजार करता है | रामचरण की बुझी हुई आँखों से ही उन दोनों ने भांप लिया कि काम नहीं बना | रामचरण ने बिना भूमिका के सजल नेत्रों से आप बीती सुना डाली | पुत्र-वधू ने चुपचाप अपना मंगल सूत्र निकाल कर रामचरण के कांपते हाथों में रख दिया | रामचरण का हृदय चीर-चीर हो गया | पुत्र-वधू के पास गहनों के नाम पर मात्र यहीं एक मंगल सूत्र था जिसे वह हर समय अपने गले से चिपटाए रखती थी |
रामचरण ने उसे प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा | पुत्र-वधू ने विनम्र जबाब दिया, “ बाबू जी जब सुहाग ही नहीं रहा तो उसकी निशानी कैसी ? अब तो किसी तरह घर की गाड़ी चल पड़े, मुझे और कुछ नहीं चाहिए |” अगले रोज रामचरण जेब में कागज के चंद टुकड़े डालकर शिमला की ओर चल पड़ा | इस बार वह बहुत उदास था, उसका सब कुछ लुट चुका था लेकिन केवल उसके उदास होने से तो जीवन की गाड़ी नहीं चलती, जिन्दा रहना है तो कर्म करना ही होगा | शिमला पहुंच कर सबसे पहले वह अपने बेटे के कार्यालय गया ताकि बेटे का मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए कार्यालय की टिप्पणी ली जा सके | बड़े बाबू उसको देखते ही क्रोधित मुद्रा में बोले, “ अरे रामचरण तुम बहुत लापरवाह हो, मैंने अगले ही रोज तुम्हारा काम कर दिया था |
एक तुम हो आज पांच दिन बाद आ रहे हो, क्या तुम्हें पैसों की जरूरत नहीं है ?” नहीं साहिब ये बात नहीं है आपने वकील को कुछ रूपये देने को कहा था, मेरे पास इतने पैसे नहीं थे| उन्हीं का इंतजाम करने मैं गांव गया था | अब मैं पैसे ले आया हूं आप बताये कि मुझे क्या करना है |” रामचरण ने सरलता से कहा | बड़े बाबू ने उसे एक कागज थमाते हुये कहा, “ तुम सीधे किसी वकील के पास चले जाओ और जैसे मैंने कहा था वैसे ही करो |” रामचरण ने वैसे ही किया | वकील ने कुछ सवाल पूछे, कई कागजों पर अंगूठा लगवाया, कई बार उसकी कहानी सुनी और अंत में मोहर लगा हुआ एक छोटा सा कागज का टुकड़ा उसके हाथों में थमा दिया |
रामचरण को लगा मानो अलादीन का चिराग मिल गया हो | कागज के उस छोटे टुकड़े को पा कर इतना प्रसन्न हो गया था कि वह अपने बेटे की मृत्यु का गम भी भूल गया जब वह उस कागज को लेकर बड़े बाबू के पास पहुंचा तो उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि अब सब ठीक हो जाएगा | उसके सारे जरूरी कागज आ चुके हैं, लेकिन उसे पैसे तब तक नहीं मिल सकेंगे जब तक सारी औपचारिकतायें पूर्ण नहीं हो जाती | इसीलिये वह पांच सात दिन बाद कार्यालय आये | रामचरण को लगा उसके साथ धोखा हुआ है |
वह गिड़गिड़या, “ साहिब पांच सात दिन तक तो मेरा बुरा हाल हो जायेगा हम गरीब लोग हैं बार बार शिमला आना मेरे बस की बात नहीं, अब आप को क्या बताऊँ कि ये बूड़ी हड्डियों का पिंजर, क्या-क्या करके शिमला आता है |” “रामचरण तुम चिंता मत करो, केवल अपने गांव का पता दे दो, अब तुम्हें शिमला आने की आवश्यकता नहीं है, हम तुम्हारे पैसे तुम्हारे गांव के पते पर भेज देंगे | तुम्हारे बेटे के कुछ पैसे प्रोविडेंट ऑफिस से मिलने हैं जिसके आने में कुछ समय तो लग ही जाएगा | रामचरण क्या करता, हार कर घर वापिस चला गया और बेसव्री से पैसों का इंतजार करने लगा | दस दिन बीते, पंद्रह दिन बीते, बीस दिन बीते, महीना बीता और देखते ही देखते दो महीनें बीत गये पर पैसे नहीं आये |
परन्तु जब तीसरा महीना भी बीतने को आ गया तो उसके सब्र का बांध टूट गया | रामचरण सरकार तथा अपने भाग्य को कोसता हुआ एक बार फिर शिमला पहुँच गया, जहां उसे पता चला कि उसके बिलों पर ऑब्जेक्शन लग चुका था | अफसरों ने उसके भुगतान के लिए काफी वहस की और अन्त में निष्कर्ष पर पहुंचे कि रामचरण के पैसों का भुगतान मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गये मृत्यु प्रमाण पत्र पर नहीं हो सकता | चूँकि सुखपाल उतर प्रदेश जिला विजनौर का रहने वाला था | अतः डेथ सर्टिफिकेट भी उसके गांव के पटवारी की सिफारिश पर तहसीलदार द्वारा ही दिया जाना चाहिए |
बड़े बाबू ने अपनी पूर्ण सहानुभूति जताते हुये कहा, “रामचरण घबराने की आवश्यकता नहीं मुझे अफ़सोस है कि तुम्हें इस बार भी पेमेंट नहीं हो सकी, परन्तु जब तुम अगली बार आओगे तो अपनी पेमेंट हाथों हाथ ले जाना | बस इस बार जब तुम गांव जाओगे तो अपने गांव के तहसीलदार से एक छोटा सा प्रमाण पत्र लेते आना कि सुखपाल विजनौर का रहने वाला था तथा अब उसकी मृत्यु हो चुकी है, तुम्हारा काम हो जायेगा |” रामचरण का मन कर रहा था कि वह अपना सिर जोर से किसी दीवार में दे मारे, सोचने लगा यहां की कैसी रीत है मेरे बेटे ने इन लोगों के सामने ही तड़फ तड़फ कर दम तोड़ा है, फिर ये बार-बार, तरह तरह के लोगों से ये क्यों लिखवाते हैं कि मेरा बेटा मर गया है |” वह चुपचाप बिना किसी प्रतिक्रिया किये खड़ा रहा | आखिर बड़े बाबू को ही बोलना पड़ा, “ मैं जानता हूं कि तुम्हारे पास पैसे बिलकुल खत्म हो गये हैं |
परन्तु इन बड़े अफसरों को क्या मालूम एक गरीब कैसे जीता है, जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई| मैं तुम्हें इस कार्यालय से चार पांच हजार रूपये अग्रिम तौर पर दिलवा देता हूं तुम्हारा कुछ समय तो निकल ही जायेगा |” रामचरण की आखें सजल हो गईं | उसे बड़े बाबू किसी ईश्वर से कम नहीं लग रहे थे | वह अपने रोम रोम से उन्हें धन्यवाद देने लगा | बड़े बाबू ने लेखाशाखा के नाम नोटिंग लिखी तथा किसी तरह साहब के हस्ताक्षर करवा कर रामचरण को पांच हजार रूपये की अग्रिम राशि देने का प्रबन्ध कर दिया | रामचरण इस राशि को लेने के लिए लेखाशाखा की ओर चल पड़ा | परन्तु उसे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उसे सचमुच पैसे मिल जायेंगे और हुआ भी वही |
लेखापाल ने पांच हजार रूपये के बदले उसे चेक दे दिया था जो उसके लिए मात्र एक छोटा सा कागज का टुकड़ा था | रामचरण चेक का अर्थ नहीं समझ पाया था इसलिए उसने भोलेपन से लेखापाल से पैसे मांगे | लेखापाल ने हंसते हुये जबाब दिया , “हे भगवान इस देश का क्या बनेगा ….. अरे भाई तुम्हें चेक दे दिया है अब तुम्हें और क्या चाहिए ? तुम सीधे बैंक चले जाओ, वहां इसे अपने खाते में जमा करवा दो तुम्हें पैसे मिल जायेंगे “ रामचरण चुपचाप खड़ा रहा | लेखापाल ने तनिक खिन्नता से पूछा , “क्या बैंक में तुम्हारा खाता नहीं है ?” रामचरण अब भी चुप था| “अरे भाई क्या तुम बैंक में पैसे-वैसे जमा नहीं करवाते ?” “नहीं साहिब” रामचरण ने किसी तरह हिम्मत बटोर कर कहा |
“तो बैंक में एक खाता खुलवा लो फिर बैंक में चेक जमा करवा देना, दो-तीन दिन में पेमेंट हो जायेगी|” मगर साहिब बड़े साहिब ने तो कहा था कि मुझे आज ही पैसे मिल जायेगे|” रामचरण ने बड़े धीमे स्वर में विनम्रता से आग्रह किया | इस बार लेखापाल ने क्रोध से आँखें चमकाते हुये ऊँचे स्वर में बोला, “अरे उनका तो दिमाग ही खराब है, कल को ऑडिट मैंने करवाना हैं या उन्होंने ? क्या उनको इतना भी नहीं मालूम कि सरकारी भुगतान कैश में नहीं किये जाते ?” लेखापाल बड़ी देर तक बड़बड़ाता रहा लेकिन अब तक रामचरण उस कागज़ के टुकड़े को जेब में डाल कर कमरे से बाहर आ चुका था एक नई उलझन के साथ | अब उसे एक बैंक की खोज करनी थी, खाता खुलवाने के लिए बहुत से फॉर्म भरने थे | एक फोटो खिचवानी थी | एक ऐसे व्यक्ति की खोज करनी थी जो उसे अच्छी तरह जानता हो तथा खाता खुलवाने के लिए उसकी गवाही दे सके |
कार्यालय के बाहर नीले आसमान पर सात घोड़ों पर सवार दिव्य नक्षत्र अपने पूरे यौवन पर था पर रामचरण को हर तरफ अँधेरा ही अँधेरा नजर आ रहा था|बूढ़े रामचरण ने जैसे ही कमरे में प्रवेश किया बाबुओं की भवें तन गयी और एक क्षण पहले जहाँ हंसीं के फुहारों छूट रहे थे वहां मरघट की सी उदासी छा गई | रामचरण ने क्रम से कमरे के अन्दर बैठे हुए सारे बाबुओं का नतमस्तक होकर अभिनन्दन किया | और फिर एक बाबू की मेज़ के पास जाकर चुपचाप खड़ा हो गया | वह किसी तरह लाठी के सहारे खड़ा था | उसकी सफेद दाढ़ी, चेहरे की अनगिनत झुरियां व कांपते हुए हाथ इस बात की साफ़ गवाही दे रहे थे कि वह जीवन के उस हिस्से में पहुँच चुका था जहां इंसान में जीने की इच्छा लगभग समाप्त हो जाती है | आज से कुछ कुछ माह पूर्व उसका इकलोता बेटा सुखपाल इसी कार्यालय में सफाई कर्मचारी के रूप में नियुक्त था |
रामचरण की पत्नी तो पहले ही ईश्वर को प्यारी हो चुकी थी| मगर घर में पुत्र-वधू थी, एक पोता भी था | उतर प्रदेश के बिजनौर जिले के एक गाँव में उसका छोटा सा घर था | रामचरण इसी मकान में अपनी पुत्र-वधू व पोते के साथ रहता था | उसका बेटा सुखपाल शिमला में सरकारी नौकरी के कारण अकेला ही रहता था | एक रात उसने देखा उसके कार्यालय का भवन धू-धू करके जल रहा है | कार्यालय में चौकीदार जो शराब के नशे में धुत एक कमरे में पड़ा था, के अलावा और कोई नहीं था | सुखपाल की खोली कार्यालय के पास ही थी | सर्वप्रथम उसी ने आग के शोलों को कार्यालय की चिमनियों से उठते देखा था | चौकीदार की चीख पुकार सुनकर अपनी जान की परवाह न करते हुए वह आग की लपटों में कूद गया |
उसने चौकीदार को तो बचा लिया परन्तु स्वयं बुरी तरह जल गया, अस्पताल जाते – जाते उसके प्राण-पखेरू उड़ चुके थे | रामचरण जो विजनौर में बैठा हुआ बेटे के मनी – ऑर्डर का इंतजार कर रहा था, को एक तार मिली, जिसमें उसके बेटे के आकस्मात निधन का जिक्र था | उस पर तो जैसे बिजली ही गिर गई थी | वह एकदम जड़बत हो गया | पुत्र-वधू जो अब तक माथे पर मोटी सी लाल बिंदिया लगाती थी, सफेद कफन सा ओढ़े खड़ी थी | रामचरण कर्ज लेकर किसी तरह शिमला पहुँचा ताकि बेटे का अंतिम संस्कार कर सके | परन्तु कर्ज समय पर न मिलने के कारण वह आने में लेट हो गया, उसके बेटे का अंतिम संस्कार उसके कार्यालय के लोगों द्वारा कर दिया गया था |
कार्यालय के सभी लोगों ने उसे सांत्वना दी, उसके बेटे की भूरि–भूरि प्रशंसा की | सबने बारी-बारी उसकी बहादुरी की कहानी उसे सुनाई कि किस तरह उसने अपनी जान जोखिम में डाल कर चौकीदार की जान बचाई | सभी ने उसे आश्वासन दिया कि उससे कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है, उसके बेटे की जान सरकारी कार्यालय में गई है इसीलिए उसके परिवार को इसका मुआवजा भी मिलेगा तथा सुखपाल की पत्नी को सरकारी नौकरी भी |” बड़े साहब ने भी उसे कुछ इसी तरह के मीठे संवाद कहे और कुछ दिन बाद आने को कहा | इधर रामचरण सोच रहा था कि वह कितना अभागा है, अपने बेटे को आख़िरी बार एक नज़र देख भी न सका |
यही कसक लेकर वह विजनौर वापिस चला गया | घर में कमाने बाला व्यक्ति काल का गल बन चुका था परन्तु, जिन्दा रहने के लिए दो वक्त कि रोटी तो चाहिए ही, ये एक ऐसा प्रश्न था जिसने उसकी रही-सही जिन्दगी को भी दीमक की भांति चाटना शुरू कर दिया था | अचानक उसे बड़े साहब की मुआवजे वाली बात याद आई | उसने विरादरी के लोगों से कर्ज लिया और शिमला के लिए रवाना हो गया | रास्ता काफी लम्बा था | रास्ते भर सोचता रहा कि उसका बेटा कितना बहादुर था, आज के जमाने में अपनी जान पर खेल कर दूसरों की जान कौन बचाता है | उसके कार्यालय के लोग उसकी कितनी तारीफ़ कर रहे थे | उसका सीना गर्व से फूल उठा | शिमला पहुँच कर वह सीधे सुखपाल के कार्यालय पहुंचा | कार्यालय यथावत लगा हुआ था | कुछ लोग फाइलों को उलट-पलट रहे थे तथा कुछ लोग लोहे पर खट-खट करते हुए सफेद कागजों को काले कर रहे थे |
अभी उसके बेटे के निधन को एक महीना भी नहीं हुआ था उसने सोचा उसे तो एक ही नज़र में पहचान लिया जायेगा | एक बार फिर उसके बेटे की बहादुरी के चर्चे किये जायेंगे | एक बार फिर उसे सहानूभूति की घुटी पिलाई जायेगी, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ | सभी लोग यंत्रवत अपना-अपना कार्य करते रहे | किसी ने नज़र उठा कर भी नहीं देखा | रामचरण हैरान सा होता हुआ बड़े बाबू के पास आ खड़ा हुआ, बड़े बाबू ने आँख के चश्मे को ऊपर उठाते हुए उसकी तरफ देखा और अनमने से पूछा, “कहिये क्या काम है?” रामचरण को यह सुनकर एक धक्का सा लगा क्योंकि ये वही बड़े बाबू थे जो पिछली बार उसके बेटे की सबसे अधिक प्रशंसा कर रहे थे |
उसे हर संभव सहायता प्रदान करने का वचन दे रहे थे | लेकिन फिर भी उसने सहजता से उतर दिया, “साहिब आपने मुझे पहचाना नहीं मैं सुखपाल का पिता हूँ |” बड़े बाबू ने अपने दिमाग पर जोर डालते हुये कहा, “अच्छा- अच्छा ….. सुखपाल के पिता ….. सफाई कर्मचारी…. भई मुझे बड़ा अफ़सोस हुआ था उसकी मौत पर, कहीये मैं आपके लिए क्या काम कर सकता हूँ?” रामचरण नें अपनी गरीबी व दुर्दशा का रोना रोते हुए अपने बेटे के लिए मुआवजे को तलब किया | बड़े बाबु ने उसे आश्वासन देते हुए कहा, ”अरे वह तुम्हारा जायज हक़ है, वह तो तुम्हें मिलना ही है |” यह कहकर बड़े बाबू ने साहब से रामचरण से बारे में फ़ोन पर ही बात की | साहब किसी मीटिंग में जा रहे थे अतः उन्होंनें यह केस बड़े बाबू को ही सौप दिया | बड़े बाबू ने प्रसन्न होते हुये कहा लगता है तुम्हारा काम जल्दी हो जायेगा |
ऐसा करो तुम अपनी पुत्र-वधू की तरफ मुआवजे के लिए एक प्रार्थना पत्र, अपने बेटे का डेथ सर्टिफिकेट तथा कानूनी वारिस का प्रमाण पत्र दे दो और फिर तुम तीन-चार दिन बाद आना | इस बीच मैं तुम्हारा काम करवाने की कोशिश करूंगा |” रामचरण हैरान सा होकर बड़े बाबू की ओर देखने लगा | बड़े बाबू जी को उसके बेटे के बारे में सब कुछ मालूम था फिर वे ये सब कुछ क्योँ मांग रहे थे ? उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और क्या ना करे ? वह विस्मय से बड़े बाबू की ओर देख रहा था | बड़े बाबू शायद उसका आशय समझ गये थे, वे कुछ लाचारी के स्वर में बोले, “देखो रामचरण ये सच है कि तुम्हारे बेटे की जान कार्यालय के प्रांगण में गई है, ये भी सच है कि बेटे की मौत का मुआवजा तुम्हें मिलना है, परन्तु फिर भी सरकार का काम करने का अपना एक तरीका है | कई औपचारिकतायें निभानी पड़ती हैं तभी कोई बात बनती है |
मैंने तुमसे ये जो डाक्यूमेंट्स, मेरा मतलब जो कागज मंगवाए हैं वे तुम्हें लाने ही होंगे | तुम जितनी जल्दी ये कागज लाओगे, उतनी ही जल्दी तुम्हें तुम्हारे बेटे का प्रोविडेंट फण्ड व अन्य भुगतान मिल जायेंगे तथा थोड़ी सी औपचारिकताओं बाद तुम्हारी बहु को मुआवजा व नौकरी भी मिल जायेगी | रामचरण अभी तक भी उलझन में ही था उसने थोड़ी हिम्मत करके पूछ ही लिया, “लेकिन साहिब ये कागज मिलेंगे कहाँ से ? मैं तो एक अनपढ़ गरीब आदमी हूं |” “अरे ये ज़रा टेढ़ा काम है परन्तु मुश्किल नहीं, तुम्हारा बेटा ऑफिस में काम करते हुये मारा गया है, इस बात का प्रमाण पत्र हम यहां से जारी कर देंगे | उसके बाद तुम सीधे किसी वकील को पकड़ लेना, उसे कार्यालय का कागज दिखा देना उसे कहना कि तुम्हें अपने बेटे की मृत्यु का प्रमाण पत्र चाहिए | वह तुम्हारा प्रार्थना पत्र भी लिख देगा तथा तुम्हें डेथ सर्टिफिकेट भी दिला देगा |
तुम्हें ज्यादा चक्कर में फंसने की जरूरत नहीं है, वकील को हज़ार-दो हज़ार रूपये पकड़ा देना, वह सारे काम स्वयं ही कर देगा और तुम बेकार की परेशानी से भी बच जाओगे | इस कार्यालय से तो मैं तुम्हारा काम आज ही करवा देता परन्तु फिलहाल आज तो बॉस किसी मीटिंग में जा रहा है | ऐसा करो तुम कल इसी वक्त आ जाना |” इतना कह कर बड़े बाबू उठ कर चाय पीने चले गये, परन्तु राम चरण वहीं खड़ा रह गया | वह तो सोच रहा था कि उसे जाते ही पैसे मिल जायेंगे मगर बड़े बाबू ने तो उसे बड़ी उलझन में डाल दिया था ये कैसा दस्तूर है कि अपने सगे बेटे की मृत्यु का प्रमाण पत्र किसी दूसरे व्यक्ति से लेना पड़ेगा और वह भी हज़ार-दो हज़ार रूपये देकर | इतने रूपये आयेंगे कहाँ से ? वह तो पहले ही उधार लेकर आया था ….. उसका सिर चकराने लगा …. उसे सब कुछ घूमता हुआ नज़र आ रहा था |
वह धम्म से वहीं जमीन पर ही बैठ गया बहुत देर तक सोचता रहा और अन्त में इसी निष्कर्ष पर पहुंचा कि विजनौर जाया जाये तथा कुछ पैसों का इंतजाम किया जाये | दूसरे दिन वह पहली गाड़ी से विजनौर निकल गया | उसकी पुत्र-वधू व पोता उसकी राह ऐसे निहार रहे थे जैसे चकोर स्वाती नक्षत्र की बूंद का इंतजार करता है | रामचरण की बुझी हुई आँखों से ही उन दोनों ने भांप लिया कि काम नहीं बना | रामचरण ने बिना भूमिका के सजल नेत्रों से आप बीती सुना डाली | पुत्र-वधू ने चुपचाप अपना मंगल सूत्र निकाल कर रामचरण के कांपते हाथों में रख दिया | रामचरण का हृदय चीर-चीर हो गया |
पुत्र-वधू के पास गहनों के नाम पर मात्र यहीं एक मंगल सूत्र था जिसे वह हर समय अपने गले से चिपटाए रखती थी | रामचरण ने उसे प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा | पुत्र-वधू ने विनम्र जबाब दिया, “ बाबू जी जब सुहाग ही नहीं रहा तो उसकी निशानी कैसी ? अब तो किसी तरह घर की गाड़ी चल पड़े, मुझे और कुछ नहीं चाहिए |” अगले रोज रामचरण जेब में कागज के चंद टुकड़े डालकर शिमला की ओर चल पड़ा | इस बार वह बहुत उदास था, उसका सब कुछ लुट चुका था लेकिन केवल उसके उदास होने से तो जीवन की गाड़ी नहीं चलती, जिन्दा रहना है तो कर्म करना ही होगा | शिमला पहुंच कर सबसे पहले वह अपने बेटे के कार्यालय गया ताकि बेटे का मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए कार्यालय की टिप्पणी ली जा सके |
बड़े बाबू उसको देखते ही क्रोधित मुद्रा में बोले, “ अरे रामचरण तुम बहुत लापरवाह हो, मैंने अगले ही रोज तुम्हारा काम कर दिया था | एक तुम हो आज पांच दिन बाद आ रहे हो, क्या तुम्हें पैसों की जरूरत नहीं है ?” नहीं साहिब ये बात नहीं है आपने वकील को कुछ रूपये देने को कहा था, मेरे पास इतने पैसे नहीं थे| उन्हीं का इंतजाम करने मैं गांव गया था | अब मैं पैसे ले आया हूं आप बताये कि मुझे क्या करना है |” रामचरण ने सरलता से कहा | बड़े बाबू ने उसे एक कागज थमाते हुये कहा, “ तुम सीधे किसी वकील के पास चले जाओ और जैसे मैंने कहा था वैसे ही करो |” रामचरण ने वैसे ही किया |
वकील ने कुछ सवाल पूछे, कई कागजों पर अंगूठा लगवाया, कई बार उसकी कहानी सुनी और अंत में मोहर लगा हुआ एक छोटा सा कागज का टुकड़ा उसके हाथों में थमा दिया | रामचरण को लगा मानो अलादीन का चिराग मिल गया हो | कागज के उस छोटे टुकड़े को पा कर इतना प्रसन्न हो गया था कि वह अपने बेटे की मृत्यु का गम भी भूल गया जब वह उस कागज को लेकर बड़े बाबू के पास पहुंचा तो उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि अब सब ठीक हो जाएगा | उसके सारे जरूरी कागज आ चुके हैं, लेकिन उसे पैसे तब तक नहीं मिल सकेंगे जब तक सारी औपचारिकतायें पूर्ण नहीं हो जाती | इसीलिये वह पांच सात दिन बाद कार्यालय आये |
रामचरण को लगा उसके साथ धोखा हुआ है | वह गिड़गिड़या, “ साहिब पांच सात दिन तक तो मेरा बुरा हाल हो जायेगा हम गरीब लोग हैं बार बार शिमला आना मेरे बस की बात नहीं, अब आप को क्या बताऊँ कि ये बूड़ी हड्डियों का पिंजर, क्या-क्या करके शिमला आता है |” “रामचरण तुम चिंता मत करो, केवल अपने गांव का पता दे दो, अब तुम्हें शिमला आने की आवश्यकता नहीं है, हम तुम्हारे पैसे तुम्हारे गांव के पते पर भेज देंगे | तुम्हारे बेटे के कुछ पैसे प्रोविडेंट ऑफिस से मिलने हैं जिसके आने में कुछ समय तो लग ही जाएगा | रामचरण क्या करता, हार कर घर वापिस चला गया और बेसव्री से पैसों का इंतजार करने लगा | दस दिन बीते, पंद्रह दिन बीते, बीस दिन बीते, महीना बीता और देखते ही देखते दो महीनें बीत गये पर पैसे नहीं आये | परन्तु जब तीसरा महीना भी बीतने को आ गया तो उसके सब्र का बांध टूट गया |
रामचरण सरकार तथा अपने भाग्य को कोसता हुआ एक बार फिर शिमला पहुँच गया, जहां उसे पता चला कि उसके बिलों पर ऑब्जेक्शन लग चुका था | अफसरों ने उसके भुगतान के लिए काफी वहस की और अन्त में निष्कर्ष पर पहुंचे कि रामचरण के पैसों का भुगतान मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गये मृत्यु प्रमाण पत्र पर नहीं हो सकता | चूँकि सुखपाल उतर प्रदेश जिला विजनौर का रहने वाला था | अतः डेथ सर्टिफिकेट भी उसके गांव के पटवारी की सिफारिश पर तहसीलदार द्वारा ही दिया जाना चाहिए | बड़े बाबू ने अपनी पूर्ण सहानुभूति जताते हुये कहा, “रामचरण घबराने की आवश्यकता नहीं मुझे अफ़सोस है कि तुम्हें इस बार भी पेमेंट नहीं हो सकी, परन्तु जब तुम अगली बार आओगे तो अपनी पेमेंट हाथों हाथ ले जाना |
बस इस बार जब तुम गांव जाओगे तो अपने गांव के तहसीलदार से एक छोटा सा प्रमाण पत्र लेते आना कि सुखपाल विजनौर का रहने वाला था तथा अब उसकी मृत्यु हो चुकी है, तुम्हारा काम हो जायेगा |” रामचरण का मन कर रहा था कि वह अपना सिर जोर से किसी दीवार में दे मारे, सोचने लगा यहां की कैसी रीत है मेरे बेटे ने इन लोगों के सामने ही तड़फ तड़फ कर दम तोड़ा है, फिर ये बार-बार, तरह तरह के लोगों से ये क्यों लिखवाते हैं कि मेरा बेटा मर गया है |” वह चुपचाप बिना किसी प्रतिक्रिया किये खड़ा रहा | आखिर बड़े बाबू को ही बोलना पड़ा, “ मैं जानता हूं कि तुम्हारे पास पैसे बिलकुल खत्म हो गये हैं | परन्तु इन बड़े अफसरों को क्या मालूम एक गरीब कैसे जीता है, जाके पांव न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई| मैं तुम्हें इस कार्यालय से चार पांच हजार रूपये अग्रिम तौर पर दिलवा देता हूं तुम्हारा कुछ समय तो निकल ही जायेगा |” रामचरण की आखें सजल हो गईं |
उसे बड़े बाबू किसी ईश्वर से कम नहीं लग रहे थे | वह अपने रोम रोम से उन्हें धन्यवाद देने लगा | बड़े बाबू ने लेखाशाखा के नाम नोटिंग लिखी तथा किसी तरह साहब के हस्ताक्षर करवा कर रामचरण को पांच हजार रूपये की अग्रिम राशि देने का प्रबन्ध कर दिया | रामचरण इस राशि को लेने के लिए लेखाशाखा की ओर चल पड़ा | परन्तु उसे अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उसे सचमुच पैसे मिल जायेंगे और हुआ भी वही | लेखापाल ने पांच हजार रूपये के बदले उसे चेक दे दिया था जो उसके लिए मात्र एक छोटा सा कागज का टुकड़ा था | रामचरण चेक का अर्थ नहीं समझ पाया था इसलिए उसने भोलेपन से लेखापाल से पैसे मांगे |
लेखापाल ने हंसते हुये जबाब दिया , “हे भगवान इस देश का क्या बनेगा ….. अरे भाई तुम्हें चेक दे दिया है अब तुम्हें और क्या चाहिए ? तुम सीधे बैंक चले जाओ, वहां इसे अपने खाते में जमा करवा दो तुम्हें पैसे मिल जायेंगे “ रामचरण चुपचाप खड़ा रहा | लेखापाल ने तनिक खिन्नता से पूछा , “क्या बैंक में तुम्हारा खाता नहीं है ?” रामचरण अब भी चुप था| “अरे भाई क्या तुम बैंक में पैसे-वैसे जमा नहीं करवाते ?” “नहीं साहिब” रामचरण ने किसी तरह हिम्मत बटोर कर कहा | “तो बैंक में एक खाता खुलवा लो फिर बैंक में चेक जमा करवा देना, दो-तीन दिन में पेमेंट हो जायेगी|” मगर साहिब बड़े साहिब ने तो कहा था कि मुझे आज ही पैसे मिल जायेगे|” रामचरण ने बड़े धीमे स्वर में विनम्रता से आग्रह किया |
इस बार लेखापाल ने क्रोध से आँखें चमकाते हुये ऊँचे स्वर में बोला, “अरे उनका तो दिमाग ही खराब है, कल को ऑडिट मैंने करवाना हैं या उन्होंने ? क्या उनको इतना भी नहीं मालूम कि सरकारी भुगतान कैश में नहीं किये जाते ?” लेखापाल बड़ी देर तक बड़बड़ाता रहा लेकिन अब तक रामचरण उस कागज़ के टुकड़े को जेब में डाल कर कमरे से बाहर आ चुका था एक नई उलझन के साथ | अब उसे एक बैंक की खोज करनी थी, खाता खुलवाने के लिए बहुत से फॉर्म भरने थे | एक फोटो खिचवानी थी | एक ऐसे व्यक्ति की खोज करनी थी जो उसे अच्छी तरह जानता हो तथा खाता खुलवाने के लिए उसकी गवाही दे सके | कार्यालय के बाहर नीले आसमान पर सात घोड़ों पर सवार दिव्य नक्षत्र अपने पूरे यौवन पर था पर रामचरण को हर तरफ अँधेरा ही अँधेरा नजर आ रहा था|