ज़ैद – एक शुरुआत लेखक अंशुल खर्रा — इस उपन्यास की कहानी ज़ैद के आस-पास ही दौड़ती हुई नजर आती है। कहानी की शुरूआत कुछ फिल्मी अंदाज से शुरू होती है जैसे की ज़ैद के पास कुछ शक्तियां है जिसका इस्तेमाल करके वो जितने भी दुखी लोग है उनको उनकी परेशानियों से दूर कर देता है किसी सुरक्षित जगह भेज कर।
ज़ैद का परिवार उसकी इसी आदतों के कारण उसको खुद से दूर कर देता है जिसके बाद उसकी मुलाकात आलिम और जुनैदा से होती है। ज़ैद की तरह ही जुनैदा भी आलिम के रहमो करम पर पल रही थी आलिम के सारे जुल्म सहने के बाद भी। जुनैदा की तरह ज़ैद को भी दर्द सहने की आदत हो गई थी। उधर ज़ैद के मां-बाप ज़ैद को भूल नहीं पा रहे थे। ज़ैद को लेकर उनके झगड़े बढ़ने लगे और वो अब एक दूसरे के जान के दुश्मन साबित हुए। उधर ज़ैद एक अलग दुनिया में अपना सुकून ढूंढने लगा जहाँ उसकी मुलाकात आमिर से होती है जो महज़ कुछ 6 साल का था जो अपना गुजारा गुड़ियाँ साफ करके करता। ये सब देख कर ज़ैद बहुत उदास हुआ और वो आमिर की मदद करना चाहता था जिसके लिए वो अपने हिस्से का काम छोड़कर उस मालिक को बोलता है कि ये काम आमिर को दे दो।
आलिम ने पैसों के लिए जुनैदा की हालत बहुत ही खराब कर दी, जिसका बदला लेने के लिए ज़ैद अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करता है और वही से एक इस कहानी में एक और कहानी की शुरूआत होती है। ज़ैद यह एकदम फिल्मी हीरो की तरह आगे आकर जुनैदा के लिए पूरी बस्ती को जलाकर राख कर देता है जहा से लोग ज़ैद को एक काले साए के रूप में देखने लगते है उसका नाम सुनते ही लोगो की रूह कांप जाती है। जब भी ज़ैद गुस्से में होता है उसकी आंखों से सफेद रोशनी निकलने लगती है आसमान काला हो जाता है, जमीन पर कुत्ते दौड़ने लगे है और आसमान में चील, बाज उड़ने लगते है जैसे उन्हें पता हो कि अब कुछ होने वाला है और उन्हें आज पेट भरके खाने को मिलेगा।
यहां ज़ैद की मुलाकात नजूमी, हादिर, कासिम आदि से हुई जो इसका साथ हर हाल में देते है चाहे वो लड़ाई सुल्तान के खिलाफ हो या कुसुम के परिवार के खिलाफ; जिस से वो प्यार करता था। कहते है दुश्मनी की वजह चाहे जो भी हो परिणाम उसका हमेशा हमारे अपने ही चुकाते है कुछ ऐसा ही यहां भी हुआ।
कहानी में ज़ैद के पात्र को बेहद ही आकर्षक पात्र के रूप में दर्शाया गया है। साथ ही उससे जुड़े लोग भी कुछ इसी प्रकार के दर्शाए गए है। हालाकि लेखक ने सुल्तान और कुसुम के घरवालों के चरित्रों को भी उतना ही अच्छा पेश करने की कोशिश की है। कुसुम का किरदार बहुत ही कम समय के लिए आता है लेकिन हमारे मन में कई सवाल छोड़ जाता है, अंत में ज़ैद को भी बच्चा खोने का दर्द समझ आ जाता है कि आमिर के माँ पर क्या बितती होगी जब उसने अपना बचा खोया होगा।
कहानी की शुरूआत तो बहुत ही अच्छे तरीके से होती है लेकिन अंत कहानी का आपको सोचने पर मजबूर कर देगा की आखिर वो शक्तियां जो ज़ैद इस्तेमाल करता था कौन सी थी और आलिम को कैसे भविष्य के बारे में पता चल जाता था, ये भी सोचने वाली बात थी।
उपन्यास है तो एक ही लेकिन कई हिस्सों में चलता है लेकिन सारे हिस्से एक दूसरे से किसी न किसी रूप में जुड़े होते है और यही खासियत हैं लेखक की कि वो अलग-अलग लिखते हुए भी सभी कहानियों को बखूबी आपस में जोड़ रखते है जिसे पढ़ते हुए कभी मन ऊबता नही और अब आगे क्या होने वाला है ये जानने की इच्छा अंत तक बरकार रहती है। अगर किसी को मिस्ट्री किताबें पढ़ने का शौक हो तो वो ये किताब बिना किसी झिझक के पढ़ सकता है।