डॉ कमल के प्यासा, जीरकपुर (मोहाली) पंजाब
“सर जी आप मुझे कहते, मैं ले जाता हूं, आप रहने दें।”
उसने मेरे हाथ से वह ट्रॉली बैग छुड़ा लिया और दूसरे हाथ से मुझे पकड़ कर सड़क पार करने लगा।सड़क पार करा कर, उसने मुझे कार की खिड़की की ओर कर दिया और खुद आगे भीड़ में दूसरी तरफ निकल गया। मेरी नजरें उसी पर टिकी थीं और वह देखते ही देखते न जाने किधर निकल गया!
मैं मन ही मन सोचे चला जा रहा था, ‘न जाने कौन था ये, कहीं मेरे बैग को लेकर चंपत तो नहीं हो गया?’ सोचते-सोचते मैं कैब में बैठ गया।
“क्या बात है जी, किधर देख रहे हो, बड़े परेशान दिख रहे हो?” कैब में बैठी पत्नी ने मुझ से पूछा।
जब उसने कैब की अगली सीट पर बैग रखा तो मेरा शक व दुविधा सब दूर हो गए। और मैं अपनी पत्नी को बताते हुवे कहने लगा, “नहीं, नहीं मैं तो चालक को देख रहा था।” सच में मुझे यह भी नहीं पता था कि कैब चालक वही है। अब की बार बेटी ने मैट्रो से ही कैब (हमारे पहुंचते ही) बुक करवा दी थी। कैब वाला ही तो लेने आया था। पत्नी कैब नंबर देख कर इत्मीनान से पहले ही बैठ गई थी और उधर मैं ट्रॉली बैग ला रहा था।
कैब ड्राइवर ने यू टर्न लेकर हमें शीघ्र ही शॉर्टकट रास्ते से माया गार्डन पहुंचा दिया था। बेटी ने पैसे बता रखे थे, इसलिए मैंने उससे फिर पूछ लिया, “कितने हुवे, 120/- न?”
“जी सर।” उसने बड़े ही अदब से जवाब दिया।
मैने पर्स निकला उसमें 500-500 के नोट व एक 100 का नोट था। 100 के नोट को निकाल कर मैं पत्नी से पूछने लगा, “तुम्हारे पास छुटे 20 रुपए हैं?”
“नहीं, मेरे पास तो छुटे नहीं हैं!”
“कोई बात नहीं सर, यही ठीक हैं, कभी कभी हो जाता है ऐसा, हमारे पास भी छुटे कि दिक्कत आ जाती है।” वह मुस्कुराते हुवे कह रहा था।
“नहीं, नहीं देखता हूं।” कहते हुवे मैंने अपनी पेंट की पिछली पॉकेट में हाथ डाला तो मेरे हाथ लिपटा 20 का नोट मिल गया। “लो मिल गए।”और मैंने उसे वह लिपटा नोट पकड़ा दिया।
“सर ये तो दो हैं!” एक नोट को लौटते हुवे वह कहने लगा।
“रख लो कोई बात नहीं।”
“नहीं, नहीं सर जब आपने मुझे पूरे दे दिए तो फिर ये क्यों?” और फिर वह मुस्कुराहट के साथ हाथ हिलते हुवे निकल गया।
अब मैं फिर उस ऑटो चालक के संबंध में सोचने लगा था, जिसने सुबह ही मेरे से 40/- रुपए की जगह 50/- ऐंठ लिए थे।