इतने से सम्बोधन
आप ने, मेरे स्तर और कद में
अंतर कर दिया।
मेरे अधिकार और
फर्ज के दायरों को,
दायरों में बांध,
मुझे खुद से
जुदा कर दिया !
इतने से सम्बोधन
आप ने
इतने से इतना और
बड़ा कर दिया !
धर्म मर्यादों के
बंधनों में जकड़,
फासला इतना कर,
रिश्ता ही बदल दिया !
इतने से सम्बोधन
आप ने।
अरे छोड़ो तोड़ो
तुम भी ये,
आप आप के गठबंधन
इन्हें तूं तूं की गांठों में पिरो
मनकों जैसे,
मुक्त खुले में,
भंवरों की मानिद
उड़ने दो बस उड़ने दो !
तेरी तूं तूं में जो तूं है
उसे मुझे भी
देखने दो ,परखने दो
और मुक्त स्वछंद रहने दो
छोड़ संबोधन आप आप का
तूं तूं में ही फिर
आप से बस ,एक तूं होने दो