नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर ने शिमला से जारी एक बयान में कहा कि हिमाचल प्रदेश की वर्तमान सुक्खू सरकार के वित्तीय कुप्रबंधन ने राज्य को गंभीर संकट की ओर धकेल दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार की नाकामी इस हद तक पहुंच चुकी है कि माननीय उच्च न्यायालय को यह टिप्पणी करनी पड़ी कि प्रदेश में आर्थिक आपातकाल लगाने पर विचार क्यों न किया जाए। जयराम ठाकुर ने इसे सरकार के लिए एक आईना करार दिया और कहा कि यह टिप्पणी राज्य सरकार की नीतिगत विफलताओं को उजागर करती है।
उन्होंने आरोप लगाया कि सुक्खू सरकार केवल अपने निकटवर्ती मित्रों और खास लोगों के हितों को साधने में लगी है, जबकि जनहित की बात आते ही यह सरकार बगले झांकने लगती है। हाल के वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है जब न्यायालय को इतनी कठोर टिप्पणी करनी पड़ी हो। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि पहले भी दिल्ली स्थित हिमाचल भवन की नीलामी जैसे आदेश सरकार की नाकामी के कारण ही आए थे।
ठेकेदारों के भुगतान को लेकर भी जयराम ठाकुर ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने कहा कि सरकार के संरक्षण में सुविधा शुल्क लेकर भुगतान की प्रथा चल रही है, जिससे ठेकेदार संघों में व्यापक असंतोष है। प्रदेश भर में ठेकेदारों ने हड़ताल, धरना प्रदर्शन, और यहां तक कि आत्महत्या की धमकियों के माध्यम से अपनी पीड़ा जताई, लेकिन सरकार ने सभी शिकायतों को नकार दिया। न्यायालय में पेश तथ्यों के आधार पर सरकार को जवाब देना पड़ा, जहां उसका झूठ उजागर हो गया।
इसके अलावा, जयराम ठाकुर ने कहा कि 2023 की आपदा राहत के लिए केंद्र सरकार द्वारा भेजी गई 5150 करोड़ रुपये की राशि और 93,000 प्रधानमंत्री आवासों की मंजूरी के बावजूद राज्य सरकार प्रभावितों तक पूरी राहत नहीं पहुंचा पाई है। उन्होंने आरोप लगाया कि “व्यवस्था परिवर्तन” का दावा करने वाली यह सरकार आपदा प्रभावितों से किए गए अपने वादों पर भी खरा नहीं उतर सकी है।
नेता प्रतिपक्ष ने अंत में कहा कि मौजूदा सरकार हर मोर्चे पर विफल साबित हुई है और उसकी नीति व नियत दोनों पर सवाल खड़े हो चुके हैं। न्यायालय की टिप्पणी ने सरकार की हकीकत को उजागर कर दिया है।
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