शत्रु नाशक देवी बगलामुखी को, देवी माता पार्वती का ही उग्र रूप बताया जाता है। इनके बारे में पौराणिक कथा के अनुसार जानकारी मिलती है कि सतयुग में सृष्टि पर आए भारी तूफान के कारण सभी प्राणियों को प्रलय का सामना करना पड़ा था तो त्राहि त्राहि मच गई थी, उस समय भगवान विष्णु पृथ्वी की आपदा के निवारण के लिए है आगे आए थे और देवी पार्वती को प्रसन्न करने के लिए सौराष्ट्र क्षेत्र के हरिद्रा सरोवर के निकट उन्होंने घोर तपस्या भी की थी।
भगवान विष्णु द्वारा की गई तपस्या से प्रसन्न होकर देवी, बगलामुखी के रूप में हरिद्रा सरोवर से प्रकट हुई थीं और उसी ने समस्त ब्रह्मांड के विनाश को रोक कर प्राणियों की रक्षा की थी। कहते हैं लंका पति रावण भी शत्रुओं के विनाश के लिए देवी बगलामुखी की ही पूजा किया करता था। इसी तरह से पांडव भी अपने अज्ञात वास के समय अपनी रक्षा हेतु आराध्य देवी बगलामुखी की ही पूजा किया करते थे। बताया जाता है कि बगला शब्द की उत्पति “वल्या” से बताई जाती है, जिसका अर्थ लगाम होता है। कुछ भी हो देवी बगलामुखी के वैसे भी 108 नाम बताए जाते हैं।जो देवी की शक्तियों का परिचय देते हैं।
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार पता चलता है कि मदन राक्षस जिसे काम देव का रूप भी बताया जाता है को देव ब्रह्मा द्वारा वाक सिद्धि का वरदान प्राप्त था, जिसके परिणाम स्वरूप वह जो कहता वह सच हो जाता था, इसी सिद्धि का वह दुरुपयोग मानव जाति पर करते हुए, उन्हें परेशान करता रहता था। मानव समाज के दुख को समझते हुए सभी देवी देवताओं ने, इसके लिए देवी बगलामुखी से छुटकारे के लिए आराधना की। परिणाम स्वरूप देवी बगलामुखी ने राक्षस मदन की जिह्वा ही पकड़ ली और उसकी वाक शक्ति को ही अपने वश में कर लिया। राक्षस मदन ने अपनी गलती को मान कर देवी से क्षमा याचना करते हुए माफ़ी माँग ली लेकिन मरते मरते वह देवी से कहने लगा कि मेरी पूजा भी आपके साथ होनी चाहिए। देवी बगलामुखी ने ये वरदान उसे मरने पर दे ही दिया। क्योंकि राक्षस मदन देवी की दयालुता और भक्ति से भली भांति परिचित था। उसे यह भी मालूम था कि देवी बगलामुखी की पूजा से शत्रुओं का नाश ही होता है और यदि साथ में उसकी पूजा होगी तो उसके शत्रुओं का भी नाश होगा।
देवी बगलामुखी के पास वाणी शक्ति के साथ ही साथ शत्रुनाश शक्ति, सुरक्षात्मक शक्ति, विजय दिलाना, तंत्र साधना, स्तब्ध करने की शक्ति व भैरव रूप में महाकाल की शक्ति भी रखती हैं। अर्थात बगलामुखी देवी किसी कार्य को बिगाड़ भी सकती हैं, विघ्न डाल सकती हैं और उसे रोक भी सकती हैं। यदि किसी के कार्य को करना चाहे तो उसे सुधार कर सकती हैं, रास्ता निकाल सकती हैं और अपने तर्कों के आधार पर सब कुछ कर सकती हैं।
देवी बगलामुखी का लिबास वस्त्र आदि सभी कुछ पीला होने के कारण ही इन्हें पीतांबरी भी कहा जाता है। इसलिए प्रसाद भी पीला, फूल पीले, हार, श्रृंगार, आभूषण आदि सभी पीले ही रहते हैं। देवी की पूजा करने वाला व पुजारी के कपड़े आदि भी पीले ही होते हैं। क्योंकि अनाज, पृथ्वी, सूर्य, सोना व अग्नि आदि सभी पीले ही रंग से जुड़े होते हैं, इसलिए देवी बगलामुखी पीले रंग को ही पसंद करती हैं।
देवी बगलामुखी की पूजा के लिए सबसे पहले ब्रह्ममुहुर्त में स्नान करने के पश्चात स्वच्छ पीले वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल की अच्छी तरह से साफ सफाई करके अपने लिए पीला आसन लगाएं आगे लकड़ी के पटड़े पर पीला कपड़ा बिछा कर, उस पर देवी बगलामुखी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। पीले फूलों से श्रृंगार करें। पीले फल, फूल, पीली माला, हल्दी, धूप, बाती आदि रख कर देवी के मंत्र, आरती के पश्चात देवी बगलामुखी का चालीसा पाठ करें व बाद में श्रद्धानुसार दान करें।