सारा पंडाल दर्शकों से या यूँ कह लीजिए भक्तजनों से खचाखच भरा हुआ था | स्वामी जी श्वेत वस्त्र धारण कर, माथे पर चंदन-रोली सजा जीवन के गूड़ रहस्यों का पर्दाफाश कर रहे थे | श्रोतागण सांसे थाम कर स्वामी जी के उपदेशों को ऐसे ग्रहण कर रहे थे मानो स्वर्ग के द्वार उनके लिए मुफ्त में ही खुल गए हो | अचानक स्वामी जी ने एक अद्भुत सा प्रश्न भक्तों पर उछाल दिया कि रोटी कितने प्रकार की होती है | जब भक्तों की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो हँसते हुए बोले, “रोटी चार प्रकार की होती है पहली रोटी होती है माता के हाथ की, जिसका लोक-परलोक में कोई मुकाबला नहीं है |
इसको ग्रहण करने से न केवल उदरपूर्ति होती है अपितु मन भी तृप्त हो जाता है | दूसरी रोटी होती है पत्नी के हाथ की, जिसमें मां जैसा अपनत्व तो नहीं मिलता मगर फिर भी एक समर्पित पत्नी अपने पति को अच्छे से अच्छा खिलाना चाहती है | तीसरी प्रकार की रोटी होती है बहु के हाथ की, जो सबके भाग्य में नहीं होती | अच्छी बहु मिल जाए तो खाना मिल सकता है नहीं तो ईश्वर की मर्जी| मगर फिर भी बहु के लिए पहले अपना पति है, बच्चे हैं और बाद में आप हैं |
चौथी प्रकार की रोटी वह होती है जो नौकरानी की हाथ की बनी हो| याद रखना इस रोटी से न तो मन की तृप्ति होती है और न ही पेट भरता है | स्नेह आदर का अंश तो लेश मात्र भी नहीं होता | स्वामी ने समझाया कि ईश्वर न करें आपको चौथी रोटी खानी पड़े, इससे पहले ही आप अपनी पत्नी या बहु से खूब बनाकर रखें ताकि चौथी प्रकार की रोटी की आवश्यकता ही न पड़े| स्वामी जी की बातों में शत-प्रतिशत सच्चाई थी | पूरा पंडाल तालियों से गूंज उठा| सभी लोग उनके ज्ञान के कायल हो गए थे |
तभी एक नवयुवती को न जाने क्या सूझी और अपने स्थान से उठकर खड़ी हो गई और स्वामी जी से पूछने लगी, “बाबा जी आपने जो यह रोटी के प्रकार बताई हैं मुझे लगता है यह पुरुष के लिए बताई हैं आपने यह तो स्पष्ट नहीं किया कि औरतों के लिए रोटी कितनी प्रकार की होती है ?” उपदेशक युवा लड़की के इस सीधे प्रश्न से एकविरागी तो सकपका गए मगर अगले ही क्षण संभल गए और कड़क आवाज में बोले, “रोटी, रोटी होती है और यह सब के लिए बराबर होती है |
भूख मर्द और औरत में कोई भेद नहीं करती|” वहां बैठे हुए भक्तों के आश्चर्य की सीमा नहीं रही, जब नवयुवती ने पूरे जोश व आत्मविश्वास से बोली, “नहीं स्वामी जी पुरुष की रोटी में और औरत की रोटी में फर्क होता है | आपने माँ के हाथ की रोटी को सबसे उत्तम श्रेणी में रखा है | पुरुष को तो यह रोटी तब तक मिल सकती है जब तक माँ बुड़ी या अक्षम नहीं हो जाए मगर औरत को यह रोटी तब तक नसीब है जब तक उसका विवाह नहीं होता |” वह कुछ रुकी और फिर मुस्कुराते हुए बोली, “आपने पत्नी के हाथ की रोटी को दूसरे प्रकार की रोटी बताया है |
औरत के भाग्य में तो यह रोटी लिखी ही नहीं होती विवाह उपरांत तो उसे सारा जीवन पति, बच्चों और घर के अन्य सदस्यों के लिए रोटी बनानी पड़ती है| कम से कम भारतवर्ष में तो पुरुष अपनी बीवी के लिए रोटी नहीं बनाते |” स्वामी जी कुछ न कह सके जबकि भक्तगण सांसे थाम कर स्वामी जी की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे थे | युवती थोड़ी देर के लिए रुकी फिर दृढ़ता पूर्वक मगर विनम्रता से बोली, “तीसरी प्रकार की रोटी यानी बहु के हाथ की रोटी किसी किस्मत वाली महिला को ही मिलती है |
अगर सचमुच ठीक-ठाक होता तो हमारे देश में वृद्धाश्रमों की आवश्यकता ना पड़ती | चौथी प्रकार की रोटी अर्थात नौकरानी के हाथ की रोटी भी केवल पुरुषों को ही नसीब होती है, क्योंकि रोटी बनाने के लिए नौकर तब ही घर पर आता है जब घर में खाना बनाने वाली कोई महिला न रहे |” इतना सुनते ही स्वामी जी निरुत्तर होकर उस युवती का चेहरा देखने लगे और पंडाल में बैठी हुई जनता ताबड़तोड़ तालियां बजाने लगी…..