त्रिलोकपति रावण (खण्ड-1) सुशील स्वतंत्र द्वारा लिखित एक पौराणिक असुर गाथा श्रृंखला का पहला उपन्यास है, जो संवाद-शैली में लिखा गया है । इस उपन्यास में कुल पचासअध्याय है । यह उपन्यास अपने पाठकों को पौराणिक तथ्यों तथा रावण के चरित्र से अवगत कराता है।यह अपने तरीके का एक अभूतपूर्व उपन्यास है । रावण पर तो अनेक उपन्यास लिखे गए हैं लेकिन यह कुछ हटकर है । इस उपन्यास में पौराणिक रावण के साथ-साथ एक अन्य रावण से भी सामना होता है, जो राम और उनके जीवन को पूर्ण करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सदियों से हमारा यही मानना रहा है कि लंकापति रावण एक खलनायक था, जिसका वध करके श्रीराम ने असत्य पर सत्य की जीत हासिल की थी । आज सुशील स्वतंत्र द्वारा लिखित इस उपन्यास त्रिलोकपति रावण के नए अनोखे रूप को पढ़कर ऐसा लगा जैसे हम सदियों से ठगे जा रहे थे और एकाएक हमारी बंद आँखें खुल गई।
लेखक ने रावण जैसे चरित्र में कभी नायक तो कभी दानव की ऐसी अद्भुत छवि को प्रदर्शित कीया है जो इस कृति को एक महान अभिनव साहित्यिक कृति बनाती है। यह संवादशैली का पठनीय उपन्यास है, जिसमें संवादों में सुंदर तारतम्य रखते हुए स्थान और दृश्यात्मक सौंदर्य का विशेष ध्यान रखा गया है । लेखक ने एक-एक संवाद बहुत ही सूझबूझ के साथ लिखे हैं । अपने इस उपन्यास के जरिए लेखक ने अन्य पौराणिक गाथाओं की तरह सिर्फ रावण को खलनायक साबित नहीं किया बल्कि यह भी बताने का बखूबी प्रयास किया है कि रावण अनेक विलक्षण गुणों का स्वामी भी था। वह अत्यंत वीर एवं पराक्रमी योद्धा था। उसमें एक महान राजा के सारे गुण थे । निश्चित ही उपन्यास रावण के चरित्र की अनेक परतों को खोलता है, जिसे पढ़ कर कोई भी पाठक प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेगा।
उपन्यास के लेखक ने अपनी कृति में रावण के चरित्र के साथ न्याय करने के लिए कुछ और पात्रों को भी शामिल किया है, जिनमें कैकसी, मंदोदरी, विश्रवा, विभीषण, कुंभकरण, सूर्पनखा, कुबेर, विष्णु जी, शिव जी, पार्वती जी, इंद्रदेव, नारद मुनि, नंदी, शुक्राचार्य, अभयासुर, बिम्बा आदि प्रमुख हैं। इन सभी पात्रों का भी लेखक ने बहुत ही सुंदर एवं सही वर्णन प्रस्तुत किया है। इन पात्रों के बिना रावण के चरित्र को समझना संभव भी नहीं होता। इन पात्रों के साथ-साथ लेखक ने पौराणिक कथा अनुसार प्रमुख स्थानों का भी अपने संवाद में वर्णन किया है जो इस उपन्यास के संवादों को और भी प्रामाणिक, सुंदर एवं सहज बनाते हैं, जिनमें लंका, कैलाश पर्वत, पाली दर्रा, सुमेरु पर्वत, पाताल लोक, देवलोक, धरती लोक, इंद्रलोक, यमलोक एवं नागलोक प्रमुख हैं । इन सबका रोचक वर्णन लेखक ने किया है।
इस पौराणिक उपन्यास को पढ़ते-पढ़ते ऐसा अनुभव होता है कि हम सदियों पीछे उसे युग में पहुँच गए हैं, जिस समय का यह आख्यान है। लेखक ने बहुत बारीकी से एवं गहन अध्ययन करने के पश्चात इस उपन्यास को अपने पाठकों के लिए प्रस्तुत किया है, जिसके एक-एक शब्द में यह बात स्वयं मुखरित होती है। उपन्यास की विशेषता यह है कि इसकी भाषा-शैली बहुत ही सुंदर, सरल एवं सहज है, जो सामान्य पाठकों के लिए सुगम्य है । शायद इसीलिए उपन्यास बेस्ट सेलर भी हुआ । निश्चित ही लेखक बधाई के पात्र हैं, जिन्होंने इतने गंभीर एवं एक नेगेटिव चरित्र पर आधारित इतनी सुंदर कृति की रचना की एवं रावण के वैभव और उसके दानवत्व की मर्यादा को खंडित किए बिना उसके चरित्र के साथ पूरा-पूरा न्याय किया है। कहा जा सकता है कि लेखक ने उपन्यास त्रिलोकपति रावण को लिखकर पौराणिक कथाओं की दुनिया को और अधिक समृद्ध किया है एवं नई पीढ़ी को पौराणिक गाथाओं की ओर खींचने का सफल प्रयास किया है। मेरी दृष्टि में यह उपन्यास साहित्य-जगत का एक अद्भुत कार्य कहा जा सकता है।
पहले पृष्ठ से लेकर आखिरी पृष्ठ तक लेखक ने कथा को रोचक एवं निरंतर गतिशील बनाए रखा जिसमें स्थिरता और चपलता, गर्व व अहंकार, सौंदर्य व वस्तुस्थिति की प्रस्तुति बहुत स्पष्ट एवं सरस बन पड़ी है। पुराणों में, मिथकों में रुचि रखने वाले साहित्यानुरागी पाठकों को यह उपन्यास ज़रूर पढ़ना चाहिए ताकि वे युगों – युगों से स्थापित एक विवादास्पद चरित्र के विभिन्न आयामों से परिचित हो सकें। अंततः निश्चित तौर पर यह उपन्यास अपनी कीर्ति चारों और फैलाएगा एवं अपने पाठकों द्वारा खूब पढ़ा एवं सराहा जाएगा और साहित्य की दुनिया में मील का पत्थर भी साबित होगा । लेखक रावण जैसे चरित्र की इतनी सुंदर व्याख्या करने के लिए बधाई के पात्र है। इसके द्वितीय खंड की प्रतीक्षा है।