
हालही में एक शार्ट फ़िल्म रीलीज़ हुई जिसका नाम चप्पल है चप्पल एक बड़े ही सवेंदनशील मुद्दे पर आधारित है शुरुआत में यही सुनने में आ रहा था परंतु चप्पल फ़िल्म में एक ऐसे दर्द एक ऐसी पीड़ा को उजागर किया गया है जो कि न ही दिखाई देती है और न ही सुनाई देती है कहानी शुरू होती है एक भीख मांगने वाली लड़की ( ईशा ठाकुर )जो कि एक शहर में लगातार घूमे जा रही है और घूम घूम कर भीख मांग रही है कि उसे दुत्कार देते है कोई उसे तरस कहकर एक या दो रुपये का सिक्का दे देता है यह उसकी जिंदगी है दूसरी तरफ तीन मज़दूर लड़के सब्ज़ी मंडी में काम करते दिखाई देते है जो अपने मस्ती मज़ाक में रहते है उन्हें वास्तविकता से कोई लेना देना नहीं शुरुआत में कहानी थोड़ी धीमी चलती है।
लेकिन रफ्तार तब पकड़ती है जब उसे रोज़ की तरह कोई धक्का देता है और यहां उससे टकराती है एक रोज़ ऑफिस जाने वाली लड़की ( सिमरन सुखवाल) जिसके दिल में हर इंसान के प्रति दया भाव है उसे पता चलता है कि वास्तव में जो लड़की ( ईशा ठाकुर) भीख मांगती है उसके पीछे एक अजीब सी ज़िद है वो अपनी माँ से मिलना चाहती है जो कि बहुत साल पहले मर गयी थी और अब उसे लगता है वो भगवान के पास चली गई और भगवान आसमान में रहते हैं और वो जहाज़ के माध्यम से अपनी माँ तक पहुंच सकती है यह मिथ्या उसके मन मे बन चुकी है फिर आफिस जाने वाली लड़की रोज़ उसे मिलती है और कभी खाना और कपड़े देकर से अपनेपन का एहसास कराती है कि इस दुनिया में सभी बुरे नहीं होते एक दिन भीख मांगने वाली लड़की के साथ ब्लात्कार हो जाता है और उसके बाद बड़े ही मार्मिक दृश्यों के साथ कहानी एक अलग मोड़ ले लेती है उसके बाद अंत में जो होता है ।
उसके लिए आपको यह फ़िल्म ज़रूर देखनी चाहिये मशहूर लेखिका काव्य वर्षा ने इस कहानी में बहुत अलग ढंग से जान डाली है उन्होंने इस अनछुए मुद्दे को उजागर किया जिसके बारे में सुना ही होता है कभी देखा नहीं उन्होंने कहानी के माध्यम से साफ दिखाया आम किसी लड़की के साथ ब्लात्कार हो तो पुलिस शिकायत दर्ज करेगी लोग कैंडल मार्च करेंगे इंसाफ तो खैर सबके लिए दूर की बात है पर जब इस तरह इन सड़क पली किसी बच्ची के साथ ऐसा हो जिसका कोई नहीं हो उनके लिए कौन आवाज़ उठायेगा उनके साथ क्या हुआ किसी को पता नहीं चलता यही इस कहानी का विषय है अवार्ड विनिंग निर्देशक एकलव्य सेन ने अपनी उम्दा डायरेक्शन और सिनेमाटोग्राफी से पूरे जसूर शहर की खूबसूरती को दिखाया है और किस तरह किरदारों ने अंत तक फ़िल्म को बांधे रखा वो देखना लाजवाब है फ़िल्म में कुछ गाली प्रसंग सुनने को मिलेंगे लेकिन कहानी के किरदारों के हिसाब से सटीक है पर थोड़ा कम होना चाहिए था एडिटिंग कुछ शॉट्स को कम किया जा सकता था जिससे फ़िल्म की धीमी रफ्तार को थोड़ा बढ़ाया जाता ईशा ठाकुर से लेकर सिमरन सुखवाल, विशाल सेन, विशाल कुमार और सिद्ध ठाकुर ने अपने अभिनय में जान डाली है बहुत ही नेचुरल ढंग से कलाकारों ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है, एक आर्ट फ़िल्म के हिसाब से जो जो फ़िल्म में होना चाहिए वो हर चीज़ आपको स्पष्ट देखने को मिलेगी अब देखना यह है पहले की तरह काव्य वर्षा और एकलव्य सेन कितने अवार्ड्स लाने में कामयाब होते हैं यह तो वक़्त ही बताएगा
This short movie related on my heart and love this congratulations for entire team 😍💞