July 1, 2025

छत्रपति शिवाजी महाराज: डॉo कमल केo प्यासा

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डॉo कमल केo प्यासा
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासा

मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवा जी महाराज को मेवाड़ के सिसौदिया वंश से जोड़ा जाता है,कहीं कहीं इनका संबंध राष्ट्रकूटों से भी बताया जाता है। ये मराठे अपनी रण नीति के लिए विशेष रूप से जाने जाते थे अर्थात छापामार युद्ध (गोरिल्ला युद्ध )में ये लोग अपनी विशेष पहचान रखते थे। इसीलिए मुगल शासक भी इनसे डरे रहते थे । मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी का जन्म 19 फरवरी,1630 को पूना के निकट शिवनेरी दुर्ग में ,(कुर्मी कुल के परिवार की) माता श्रीमती जीजा बाई व सामंत पिता शाह जी राजे के यहां हुआ था।

शाह जी राजे बीजापुर के सुल्तान के यहां बड़े ही प्रभावशाली नेताओं में से एक थे।जन्म के पश्चात शिवा जी की समस्त शिक्षा दीक्षा माता जीजा बाई व दादा कोण देव के संरक्षण में ही हुई थी। माता जीजा बाई जो कि बड़े ही धर्म कर्म व पूजा पाठ में विश्वाश रखती थी ,ने बालक शिवाजी को समस्त रामायण व महाभारत के नायकों की अच्छी अच्छी शिक्षाएं दे कर कर्तव्य परायण व कर्मठ योद्धा होने के गुण भर दिए थे।वहीं दादा कोण देव ने बच्चे शिवा को सभी तरह के युद्ध के तौर तरीकों के साथ ही साथ ,धर्म ,संस्कृति और राजनीति की शिक्षा से अच्छी तरह अवगत करा दिया था। इसी तरह से गुरु राम देव ने भी उसे कुशल प्रशासक ,जन सेवक व देश प्रेम के गुणों से अवगत करवाया था।वैसे तो शिवाजी अपने बचपन में ही खेल खेल में लुक्का छिपी का युद्ध व एक दूसरे के किलों को जीतने के खेल खूब खेला करता था और उसमें अव्वल भी रहता था।

शिवाजी अपने बचपन की खेलों के साथ ही साथ ज्यों ज्यों बड़ा होता गया ,त्यों त्यों उसके ये समस्त खेल वास्तविक रूप में भी दिखाई देने लगे थे। 14 मई, 1640 को शिवाजी का विवाह साईं बाई से लाल महल पूना में कर दिया गया था।वर्ष 1646 में शिवाजी द्वारा पहले रोहीदेश्वर दुर्ग,पूना के समीप का तोरण दुर्ग और फिर धीरे धीरे राजगढ़ दुर्ग,चाकन दुर्ग और कौंडवा पर उसने अधिकार कर लिया गया था ।वर्ष 1647 तक शिवाजी का अधिकार चाकन से नीरा तक हो गया था ।दक्षिण में कोंकण सहित कई एक दुर्गों पर अधिकार करने के पश्चात ताला,मोस्याला और रायटी दुर्ग भी जीत लिए गए थे। उसके ये समस्त खेल व बढ़ती प्रसिद्धि बीजापुर सुल्तान, के लिए एक चुनौती बनती जा रही थी,जिसके लिए शासक आदिल शाह उसे हमेशा के लिए ही खत्म करने के बारे सोचने लगा था।

लेकिन जब आदिल शाह अपनी चाल में असफल रहा तो उसने शिवाजी के पिता शाह राजे से ही ,शिवाजी को नियंत्रण में रखने का आदेश दे डाला। लेकिन आदिल शाह को, जब बात बनती नहीं दिखी तो उसने राजे शाह को ही गिरफ्तार कर लिया।जिस पर शिवाजी ने आवेश में छापेमारी करके ,अपने पिता को मुक्त करवा लिया।जिस पर आदिल शाह ने शिवाजी को जिंदा या मुर्दा अवस्था में लाने के लिए अपने सेनापति अफजल खान को भेज दिया ।अफज़ल खान ने शिवाजी को दोस्त के रूप में अपने से मिलने का ,निमंत्रण भेज कर बुला लिया।फिर मिलने का नाटक करते हुवे अफ़ज़ल खान ने शिवाजी पर प्रहार कर दिया,लेकिन शिवाजी तो पहले से ही सावधान था, उसने उल्टे अफजल खान पर ही बघनख से प्रहार करके(10 नवंबर ,1659 को) उसे मार डाला,जिससे उसके सभी साथी भाग खड़े हुवे थे।

उधर मुगल बादशाह औरंगजेब तक भी, शिवाजी की बढ़ती लशक्ति के समाचार पहुंच गए थे,जिस पर उसने अपने दक्षिण के सूबेदार को शिवाजी पर चढ़ाई के आदेश दे दिए,लेकिन दक्षिण के सूबेदार को मुंह की खानी पड़ी थी,क्योंकि उसका एक बेटा उस चढ़ाई में मारा गया और वह खुद भी उंगलियों के कट जाने से बुरी तरह जख्मी हो गया था।इसके पश्चात औरंगजेब ने अपने एक विशेष सेनापति, राजा जय सिंह को अपने एक लाख सैनिकों के साथ अगले अभियान पर भेज दिया। जिसके लिए राजा जय सिंह ने बीजापुर के सुल्तान से संधि करके पुरंदर के किले को जीतने की योजना बना डाली और पहले पहल (24 अप्रैल,1665 को) ब्रज गढ़ पर अधिकार कर लिया गया ।पुरंदर के किले के लिए ही शिवाजी का वीर सेनानायक मुरारजी बाजी भी मारा गया । अंततः किले को जाते देख कर शिवाजी को संधि करनी पड़ गई, जो कि 22 जून ,1665 में की गई थी।

9 मई,1666 को जिस समय शिवाजी अपने पुत्र संभा व 4000 सैनिकों के साथ औरंगजेब से मिलने आगरा पहुंचे तो वहां शिवाजी की कोई भी पूछ मांग नहीं की गई ,जिस पर भरे दरबार में शिवाजी ने औरंगजेब को विश्वासघाती कह कर संबोधित किया ।बदले में औरंगजेब ने दोनों बाप बेटे को (शिवाजी व संभा) गिरफ्तार करके जयपुर भवन में कैद कर दिया था।शिवाजी भी भला कहां कम था,वह शीघ्र ही 13 अगस्त,1666 को फलों के टोकरे में बैठ कर 22 सितंबर ,1666 को ठीक ठाक रायगढ़ पहुंच गया । शाहजहां की मृत्यु के पश्चात जब औरंगजेब का ध्यान अपने मुगल साम्राज्य की ओर हो गया तो उस समय शिवाजी ने बिना किसी डर के कोंकण पर अधिकार कर लिया और दमन के पुर्तगालियों से ,कर लेना शुरू कर दिया साथ ही साथ कल्याण व भवंडी पर भी अधिकार करके नौसैनिक अड्डे पर भी अधिकार स्थापित कर लिया , इस तरह से शिवाजी 40 दुर्गों का मालिक बन गया था।

वर्ष 1664 की जनवरी 6 से 10 तक के अंतराल में व दूसरी बार 1670 को उसके द्वारा सूरत पर धावा बोल कर भारी धन व संपति इकट्ठी कर ली थी।वर्ष 1667 में औरंगजेब से कर लेने का अधिकार प्राप्त करने के पश्चात, वर्ष 1668 में शांति संधि भी शिवाजी द्वारा कर ली गई थी।आगे वर्ष 1674 में राजगढ़ में ही शिवाजी का छतपति की उपाधि के साथ राज्याभिषेक किया गया और उसकी तूती चहूं और बोलने लगी थी।पर ये किसे पता था कि इतना बड़ा वीर योद्धा कुछ ही दिनों का मेहमान रह गया है,,,, लम्बी बीमारी के पश्चात 3 अप्रैल 1680 को ,छत्रपति शिवाजी महाराज इस संसार से विदा हो गया।कहते हैं कि उसकी मृत्यु के पीछे उसके ही कुछ मंत्रियों व पत्नी का हाथ था कहां तक सच है ,कहा नहीं जा सकता।

शिवाजी महाराज जहां गोरिल्ला युद्ध करने में दक्ष थे,वहीं उन्होंने पुरानी दरबारी व्यवस्था लागू करके सभी दरबारियों व आम लोगों को हर प्रकार की सुविधाओं को देकर खुश रखा था। राजकाज के कार्यों के लिए मराठी व संस्कृत भाषा को लागू कर दिया गया था।प्रशासनिक सुविधाओं के साथ ही साथ चोरी ,ठगी व अत्याचारों को रोकने के लिए दंड व्यवस्था कठोर कर दी गई थी,तभी तो सभी अत्याचारी, तुर्क,यवन व उनके सभी हिमायती शिवाजी से डर कर ही रहते थे। वह एक कुशल प्रशासक ,रणनीतिकार ,वीर योद्धा के साथ ही साथ सभी धर्मों के संरक्षक और उनका बराबर ही मान सम्मान भी करते थे।

वह मंदिरों मस्जिदों के लिए बराबर ही आर्थिक सहायता किया करते थे।उनकी नजर में हर कोई बराबर की ही हैसियत रखता था ,इसी लिए उनके लिए जात पात व ऊंच नीच का कोई प्रश्न ही नहीं था। शिवाजी ने ही अपने सलाह मशवरे के लिए मंत्री परिषद का भी गठन कर रखा था। वह जागीर प्रथा,जमींदारी प्रथा व वंशानुगत चलने वाली प्रथाओं के विरुद्ध थे। हां किलों के निर्माण व उनके रख रखाव में विशेष ध्यान देते थे।यदि शिवाजी की सेना की बात की जाए तो उनकी सेना में 30 से 40 घुड़ सवार,एक लाख पदाती,1260 हाथी व तोपखाना भी था ।

शिवाजी के अधिकार में आने वाले राज्य की सीमा में पूर्व उत्तर में बागलना को छूती थी।दक्षिण में नासिक और पूना जिले से होती हुई सतारा व कोहलापुर के अधिकांश भाग को छूती थी। पश्चिम में कर्नाटक बाद में शामिल हो गया था। तभी तो शिवाजी महाराज के जन्म दिन को मनाने की शुरुआत बाल गंगाधर तिलक द्वारा शुरू की गई थी ,फलस्वरूप तभी से उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायक के रूप में याद किया जाता है।

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