देव गणेश की सुंदर गोल मटोल भोली भाली व आकर्षक छवि सब को मोह लेती है और इन्हीं की सुंदर छवि के अनुसार इनको कई एक नामों से भी पुकारा जाता(स्कंद,ब्रह्मवैवर्त व नारद पुराण )है,जैसे गणेश,गणपति, सिद्धि विनायक, लंबोदर,गौरी नंदन ,गजानन,महाकाय,एक दंत,मोदक दाता ,पार्वती नंदन,गणाधिपति ,विघ्नेश , विघ्नेश्वेर,वकरतुंड,मंगल मूर्ति ,ईशान पुत्र व शंकर सुबन आदि। अनेकों नामों व भोली भाली सूरत को देखते हुवे ही तो सभी शुभ कार्यों के आयोजनों व पूजा पाठ में इनकी आराधना सबसे पहले की जाती है,लेकिन इस पूर्व आराधना की भी अपनी कई एक पौराणिक कथाएं हैं। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी का प्रदूरभाव होने के कारण ही इस दिन को गणेश चतुर्थी के रूप में समस्त देश में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।
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इस त्योहार को मानने के संबंध में भी कई एक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक प्रचलित कथा के (शिव पुराण) अनुसार कहते हैं कि जब माता पार्वती घर पर अकेली थीं और उन्होंने ने प्रात स्नान करना था तो उन्होंने अपने शरीर की मैल से एक बालक को बना कर उसे द्वार पर पैहरे पर बैठा दिया और खुद स्नान करने चली गई । पीछे से भगवान शिव जब अंदर आने लगे तों उस बालक ने भगवान शिव को अंदर नहीं जाने दिया। भगवान शिव ने क्रोधित होकर उस बच्चे का सिर त्रिशूल से काट कर अलग कर दिया और अंदर पार्वती के पास पहुंच गए। जब पार्वती ने उनसे अंदर आने की जानकारी ली तो भगवान शिव ने बच्चे को मारने की बात कह डाली।जिस पर पार्वती रोने लगी और रूठ बैठी।
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भगवान शिव ने उसे मनाने की बहुत कोशिश की ,लेकिन वह नहीं मानी । तब भगवान शिव ने भगवान विष्णु से कह कर किसी ऐसे पराणी(बच्चे) का सिर लाने को कहा जिसकी मां पीठ कर के सो रही हो। भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को आदेश दिया और उसने एक हथनी के बच्चे के सिर को काट कर ले लाया ,जिसकी मां हथनी पीठ करके सो रही थी। भगवान शिव ने उस सिर को गणेश के धड़ से लगा कर उस में जान डाल दी।उसी दिन से देव गणेश का यह त्योहार बड़े ही धूमधाम से गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाने लगा और इनकी पूजा सर्व प्रथम सभी शुभ कार्यों में की जाने लगी।
गणेश चतुर्थी का यही त्योहार पहले महाराष्ट्र ,कर्नाटक ,मध्य प्रदेश ,उत्तर प्रदेश व गुजरात तक ही सीमित था और यहीं पर गणेश पूजन को विशेष महत्व दिया जाता था तथा देव गणेश को मंगलकारी रूप में पूजा जाता था ,जब कि दक्षिण में इसे कला शिरीमणि देखा जाता रहा है। सातवाहन ,राष्ट्रकूट व चालूक्यों शासकों ने भी गणेश पूजन में महत्व पूर्ण योगदान दिया था।बाद में छत्रपति शिवाजी व पेशवाओं ने भी इसमें अपना योगदान दिया था और गणेश चतुर्थी को विशेष रूप से मनाते हुवे ब्राह्मणों व गरीबों को दान भी देते थे और सांस्कृतिक कार्यकर्मों का आयोजन भी करते थे। अब तो इस त्योहार को समस्त देश में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाने लगा है।
17 वीं शताब्दी में जब अग्रेजों ने देश पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था तो उन्होंने हिंदू तीज त्योहारों को मनाने पर प्रतिबंध लगा दिया था,ताकि उनके विरुद्ध कोई खड़ा न हो सके,लेकिन छत्रपति शिवा जी ने लोगों को एकजुट करने के लिए गणेश चतुर्थी के त्योहार को घर से बाहर निकल कर मनाने को कहा और इस प्रकार से लोग इक्कठे होने लगे थेऔर देश की स्वतंत्रता के बारे भी सोचने लगे थे। मुगलकाल में जिस समय सनातन संस्कृति खतरे में पड़ गई ,मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ा जाने लगा तो 1893 ई0 में महाराष्ट्र से लोकमान्य बालगंगाधर तिलक द्वारा स्वतंत्रता की लहर को सुदृढ़ करने और लोगों को एकजुट करने के लिए गणेश चतुर्थी को मानने के लिए विशेष आवाज उठाई थी फलस्वरूप कई एक क्रांतिकारी ,लेखक व युवक इस गणेश चतुर्थी के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े थे ,जिनमें कुछ के नाम इस प्रकार से गिनाए जा सकते हैं:
वीर सावरकर,नेता जी सुभाष चन्द्र बोस,मौलिक चंद्र शर्मा,मदन मोहन मालवीय,सरोजनी नायडू,बैरिस्टर जयकार,बैरिस्टर चक्रवर्ती ,रंगलार प्रांजय व दादा साहब खपड़े आदि आदि। गणेश चतुर्थी का यह त्योहार दस दिन तक चलता है,पहले दिन देव गणेश के स्थापना की जाती है। इसके पश्चात प्रतिदिन देव गणेश की विधिवत पूजा पाठ करके भोग लगा कर फिर भजन कीर्तन आदि का आयोजन रहता है।मंदिरों में भी लोग आते जाते रहते हैं ,प्रसाद ,दान दक्षिणा देकर,भोग लेकर भजन कीर्तन में शामिल हो जाते हैं या दर्शन करके लोट जाते हैं। दसवें अथवा अंतिम दिन देव गणेश की शोभा यात्रा के साथ जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।देव गणेश जी की स्थापना एक दिन,तीन दिन,पांच दिन,सात दिन या फिर दस दिन के लिए की जाती है। बंबई जैसे महानगरों में तो गणेश चतुर्थी का यह त्योहार देखते ही बनता है ,जहां पर हजारों लाखों की संख्या में श्रद्धालु शोभा यात्रा में शामिल होकर देव गणेश को अगले वर्ष फिर से आने की प्रार्थना के साथ प्रवाहित कर देते हैं।
देव गणेश के इस त्योहार को 10 दिन तक मानने के पीछे भी अपनी ही पौराणिक कथा है,कहते हैं कि एक बार ऋषि व्यास ने देव गणेश से महाभारत को लिखने को कह दिया,फिर क्या था ,देव गणेश ने 10 दिन में ही सारे महाभारत की रचना कर डाली,जिससे उन्हें भारी थकावट के फलस्वरूप ताप चढ़ गया,जिसे बाद में ऋषि व्यास जी ने ही देव गणेश को जल में रख कर ठीक किया था।इसी लिए ही तो 10 दिन के पश्चात देव गणेश जी को जल में प्रवाहित करते हैं। हमारे जितने भी तीज त्योहार व व्रत आते हैं उनका अपना विशेष महत्व रहता है और ये सभी किसी न किसी पौराणिक कथा से जुड़े देखे जा सकते हैं।