महा पुरुष कहीं का भी क्यों न हो लेकिन उसकी खूबियों का कोई अंत नहीं होता ,बल्कि खुद ब खुद दृष्टि गोचर होने लगती हैं ओर तो ओर उनकी ये समस्त विशेषताएं अन्य क्षेत्रों में भी दिखाई देने लगती हैं। फिर चाहे वे मानसिक हों ,आध्यात्मिक हो या फिर कला कौशल से ही संबंधित क्यों न हों। इन्हीं खूबियों या विशेषताओं के आधार पर ही इनकी गिनती अपने आप ही महापुरुषों में होती देखी जाती है।
आज जिस व्यक्तित्व की जयंती मनाई जा रही है,उस महा पुरुष को गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के नाम से जाना जाता है और उनकी चर्चा आज विश्व भर में है। बालक रविंद्र नाथ का जन्म कोलकत्ता के जोड़ा सांका ठाकुर बाड़ी में 7 मई 1861 को माता शारदा देवी व पिता देवेंद्र नाथ के यहां हुवा था।माता शारदा की मृत्यु बालक के जन्म के कुछ दिन बाद ही हो गई थी। इस लिए बालक रविंद्र नाथ की देखभाल घर के सेवकों व उनकी बड़ी भाभी की देख रेख में ही हुई थी।
रविंद्र नाथ के चार भाई और एक बहिन थी,जिनमें से दो भाईयों की मृत्यु हो गई थी।बड़े भाई द्विजेंद्र नाथ कवि व दार्शनिक थे,दूसरा भाई ज्योतिंद्र नाथ संगीतकार व नाटककार था ,तीसरा भाई सतेंद्र नाथ सिविल सर्विसेज में था तथा बहिन स्वर्ण कुमारी उपन्यासकार थी।इस तरह परिवार के सभी सदस्य कला ,संगीत और साहित्य से किसी न किसी रूप में जुड़े थे। वैसे भी गुरु रवींद्र नाथ के पिता देवेंद्र नाथ का संपर्क संगीत से जुड़े बड़े बड़े कलाकारों से विशेष रूप से था।घर में कई एक बंगाली व पश्चिमी शास्त्रीय संगीत का प्रदर्शन व रंगमंच का प्रचलन चला रहता था।इन्हीं के साथ ही साथ कई एक द्रुपद संगीतकार भी आमंत्रित रहते थे।
इस प्रकार घर का समस्त माहौल ही संगीतमय के साथ ही साथ साहित्यिक रूप लिए था। यही प्रभाव बालक रविंद्र पर भी पड़ा था और दूसरों सब पर भी असर पड़ना स्वाभाविक ही था। रविंद्र नाथ की प्रारंभिक शिक्षा उस समय के प्रसिद्ध विद्यालय सेंट जेवियर स्कूल में हुई थी,8वर्ष की आयु में ही रविंद्र ने कविता लिख कर सबको चकित कर दिया था। 16 वर्ष की आयु में इनकी पहली लघु कथा प्रकाशित हुई थी। कानून की शिक्षा प्राप्त करने के लिए रविंद्र बाद में लंदन चले गए थे और फिर जल्दी ही 1870 ई 0 वापिस कोलकत्ता आ गए थे। इसी तरह 11 वर्ष की आयु में रविंद्र नाथ उपनयन संस्कार के पश्चात अपने पिता के साथ भारत भ्रमण के लिए निकल पड़े थे।
भ्रमण के दौरान ही रवींद्र नाथ ने बहुत कुछ अध्ययन भी किया,जिनमें जीविनियां,इतिहास,खगोल विज्ञान,आधुनिक विज्ञान व संस्कृत के साथ ही साथ कवि कालिदास की कविताओं का भी गहनता से अध्ययन करना, अमृतसर में एक माह तक रह कर स्वर्ण मंदिर में रोजाना गुरु वाणी को सुनना व गुरु की वाणी के रैहस्य को समझ कर वापिस कोलकता पहुंचना शामिल था।अपने इस समस्त भ्रमण का वृतांत 1912 में प्रकाशित पुस्तक मेरी यादों में बड़े ही सुंदर ढंग से रविंद्र जी ने किया है। इनका का विवाह 1मार्च 1874 ई0 मृणालिनी देवी से हुआ था ,और इनके पांच बच्चे हुवे थे लेकिन उनमें से दो नही रहे थे।
1880 ई0 तक रविंद्र नाथ की कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी थीं,जिनमें हर विधा पर कुछ न कुछ जरूर पढ़ने को मिल जाता है,लिखी गई पुस्तकों की विधा में शामिल हैं,निबंध,उपन्यास,लघु कथाएं,यात्रा वृतांत,नाटक ,गीत व कविताएं आदि। 1890 ई0 में कई इनकी कुछ लघु कहानियां प्रकाशित हुई थीं ,जिनमें से कुछ एक की सत्य जीत राय ने सफल फिल्में भी बनाईंथीं।आगे चल कर 1901ई0 में रवींद्र नाथ जी द्वारा पश्चिमी बंगाल में शांतिनिकेतन की भी स्थापना की गई ,जो की 1921 ई0 में विश्व भारती विश्विद्यालय में बदल गई थी। 1912ई0 के बाद ही रवींद्र नाथ टैगोर भारत से बाहर भ्रमण के लिए निकल पड़े थेऔर अपने समस्त कार्य का प्रचार प्रसार करते हुवे यूरोप,अमेरिका व कई अन्य देशों के भ्रमण में, देश की स्वतंत्रता के लिए भी प्रचार करते हुवे लोगों को जागृत करते रहे थे।
2000 से कहीं अधिक गीतों की रचना करने के पश्चात 1913 ई0 में गीजांजलि के लिए रविंद्र नाथ जी को पहली बार नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 1915 ई0 में इन्हें इनके कार्यों को देख कर सरकार द्वारा नाइटहुड की पदवी से सम्मानित किया गया ,लेकिन 1919 ई0 जब जलियां वाला बाग की घटना हुई तो रविंद्र नाथ ने उस पदवी को वापिस कर दिया था।आगे चल कर 1920 ई0 में जब गुरु रविंद्र नाथ जी 60 वर्ष के थे तो उस समय उन्होंने चित्रकारी करनी शुरू कर दी थी।इस प्रकार रविंद्र नाथ टैगोर एक साहित्यकार ,दार्शनिक,कवि,लेखक,चित्रकार,नाटककार,गीतकार ही नहीं थे बल्कि रविंद्र जी तो हर फन में माहिर थे।
उन्होंने भारती राष्ट्र गान जन गण मन ही नहीं बल्कि बंगला देश के राष्ट्र गान की भी रचना की है, अर्थात आमर सो नार बांग्ला राष्ट्र गान आज भी बंगला देश का राष्ट्र गान के रूप में बड़े ही फखर के साथ गया जाता है।गुरु रविंद्र नाथ टैगोर (ठाकुर) द्वारा लिखित कुछ प्रसिद्ध रचनाएं इस प्रकार से आज भी गिनाई जा सकती हैं ,जो कि इस प्रकार से हैं, गीतांजलि, पूरबी प्रवाहिन, शिशु भोला नाथ,महुआ,वनवाणी, परि श्रेषा, पुनश्र्च, वीथिका शेष लेखा,चौखर बाली, कणिका, नै वेध मायेर खेला,क्षणिका व गीति माला।