भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद् (ICHR) नई दिल्ली एवं ठाकुर रामसिंह इतिहास शोध संस्थान नेरी, हमीरपुर हि.प्र. के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित “क्षेत्रीय इतिहास लेखन में शोध प्रविधि हिमाचल प्रदेश के संदर्भ में” विषय पर राष्ट्रीय कार्यशाला का 7, 8 सितम्बर को हिमरश्मि परिसर, विकास नगर शिमला में आयोजित किया गया।
हिमाचल प्रदेश के प्रख्यात पुरातत्ववेत्ता, इतिहासकार, वास्तुकला विशेषज्ञ, डाॅ. ओ.सी. हांडा कार्यक्रम में मुख्य अतिथि रहे। डा. ओ. सी.हाडा ने अपने वक्तव्य में कहा कि व्याख्यान के साथ विमर्श भी होना चाहिए। शंकाओं का समाधान साथ-साथ होना चाहिए बाद के लिए नहीं टाला जाना चाहिए। क्योंकि इतिहास में संशोधन के इंतजार में सदियां बीत जाती है। इसलिए निरंतर अनुसंधान और विश्लेषण आवश्यक है।
लोक साहित्य के अंतर्गत पारंपरिक लोक गीतों, गाथाओं, हारों, वारों, संस्कार गीतों, झेडों को भी इतिहास स्रोत के रूप में गंभीर विवेचना होनी चाहिए। डा. ओ. सी. हाडा ने बताया कि इतिहास परिवर्तनशील है नए साक्ष्य मिलने पर इसमें बदलाव होता है। भारत की ज्ञान परंपरा में मौजूद प्रमाणों के आधार पर इतिहास के तथ्यों की जांच परख की जानी जरूरी है।
हिमालय की प्राचीन एवं पौराणिक जातियों तथा समुदायों के इतिहास, परंपरा और सभ्यताओं का प्रामाणिक एवं वैज्ञानिक आधार पर अध्ययन किया जाना अपेक्षित है। इसलिए इतिहास लेखन में लोक की उपेक्षा नहीं की जा सकती। इस दृष्टि से हिमाचल प्रदेश के इतिहास लेखन में इन सांस्कृतिक सामाजिक परिवर्तनों को भी ध्यान में रखना होगा।
खशों का हिमालय क्षेत्र में प्रभुत्व रहा है। इसलिए हिमाचल के इतिहास में खशों को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। क्योंकि खश एक सिविलाइजेशन रही है जिसके आज भी अवशेष हैं। इसलिए लोक का इतिहास महत्वपूर्ण है। हिमाचल प्रदेश का बृहद् इतिहास परियोजना निदेशक प्रो. नारायण सिंह राव ने कहा कि हिमाचल का इतिहास अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से भी जुड़ा हुआ है जो युगयुगीन इतिहास के संदर्भ में अखंड भारत के इतिहास के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।
परियोजना के निदेशक डाॅ. अंकुश भारद्वाज, डॉ शिव भारद्वाज, डॉ राजकुमार, डॉ राकेश कुमार शर्मा, बारु राम ठाकुर ने परिचर्चा में भाग लेते हुए इतिहास विपयक जिज्ञासाओं को व्यक्त किया तथा विभिन्न ऐतिहासिक प्रसंगों पर जानकारी सांझा की। ठाकुर राम सिंह इतिहास शोध संस्थान नेरी हमीरपुर के निदेशक डा. चेतराम गर्ग ने कहा कि भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं की कथित व्याख्याओं तथा सत्य घटनाओं के विपरीत मूलभूत विमर्श को झुठलाने की कोशिश का संज्ञान लिया जाना चाहिए। क्षेत्रीय इतिहास लेखन में शोध प्रविधि’ के आयोजन का उद्देश्य हिमाचल प्रदेश के इतिहास लेखन की गहन व विस्तृत समझ को विकसित करना समय की मांग है।
डा चेतराम गर्ग ने बताया कि हिमाचल प्रदेश का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना कि इस धरती पर मानवोत्पति। हिमाचल का इतिहास वेदों, महाकाव्यों तथा पुराणों में खोजा जा सकता है। ऋग्वेद में वर्णित नदियों में असिकिनी, परुष्णी, अर्जिकिया, सुतुद्री हिमाचल प्रदेश में बहती हैं। इस क्षेत्र के मूल निवासी- कोल, किरात, किन्नर, नाग, खश, गंधर्व व यक्ष आदि जातियाँ हैं। त्रिगर्त, औदुम्बर, कुल्लुत तथा कुनिन्द गणराज्यों एवं जनपदों से यहाँ का समाज संगठित हुआ।
हिमाचल का इतिहास सिन्धु-सरस्वती सभ्यता, गणराज्यों का उदय, रियासतों का प्रादुर्भाव, सल्तनत और मुगलकाल, ब्रिटिश शासन काल एवं स्वंतत्रता संग्राम का कालखंड तथा वर्तमान हिमाचल का उदय आदि चरणों में विभाजित है। हिमाचल प्रदेश के स्रोतों की जानकारियां प्राचीन साहित्य, प्राचीन काल के सिक्कों, शिलालेखों, साहित्य, विदेशियों के यात्रा वृत्तांत और राजपरिवार की वंशावलियों के अध्ययन से प्राप्त होते हैं। लोक साहित्य व लोक इतिहास मौलिक स्रोतों से भरा पड़ा है। ऐतिहासिक, भौगोलिक, पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से प्रदेश में शोध की अपार संभावनाएं हैं। इसी दृष्टि से हिमाचल प्रदेश का बृहद् इतिहास परयोजना महत्वपूर्ण सामयिक तथा प्रासंगिक है।
किसी भी राष्ट्र के समग्र विकास के लिए समसामयिक वैज्ञानिक, तार्किक और सटीक सूचनाओं पर आधारित इतिहास लेखन की परम आवश्यकता होती है। इतिहास ही हमें अतीत से परिचित करवाता है, वर्तमान को अवलोकन का अवसर देता है तथा भविष्य में हमारी योजनाओं के निमित हमें वैचारिक आधार भी प्रदान करता है। नए साक्ष्यों के लगातार सामने आने और नई क्षेत्रीय पहचान बनाने तथा तुलनात्मक परिप्रेक्ष्य स्थापित करने की आवश्यकता के कारण पिछले कुछ दशकों में लोक इतिहास लेखन की प्रवृति बढ़ी है। क्षेत्रीय इतिहास लगातार राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय इतिहास लेखन की प्रवृत्ति को प्रभावित कर रहा है। इसलिए क्षेत्रीय इतिहास का लेखन एवं इसके लिए प्रयुक्त शोध विधियों पर विचार-विमर्श करना अत्यन्त आवश्यक है। देश के हर प्रान्त व क्षेत्र का अपना इतिहास है और सभी प्रान्तों व क्षेत्रों का इतिहास विविध होने पर भी एक-दूसरे से परस्पर सम्बंधित हैं।
भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद द्वारा स्वीकृत इस परियोजना के हिमाचल के आरंभिक इतिहास के स्रोत लेखन में डा. ओम प्रकाश शर्मा, हिमाचल प्रदेश के राजनैतिक इतिहास के स्रोत छठी शताब्दी से 1814 ई. तक डा. अंकुश भारद्वाज, हिमाचल प्रदेश के राजनैतिक इतिहास के स्रोत 1815 से 2000 ई. तक डा. शिव भारद्वाज हिमाचल प्रदेश का सामाजिक इतिहास डा राकेश कुमार शर्मा एवं बिंदु साहनी, हिमाचल प्रदेश का सांस्कृतिक इतिहास, श्री बारु राम ठाकुर, और हिमाचल का आर्थिक इतिहास के स्रोत का लेखन डा. राजकुमार द्वारा किया जा रहा है। इस शोध परियोजना में डा. नीलम एसोसिएट रिजर्व स्कालर, डा. सरिता वर्मा, डा. ऋषि कुमार भारद्वाज, केहर सिंह , रोहित मांडव सहायक शोधार्थी के तौर पर अनुसंधान कार्य कर रहे हैं।
हिमाचल प्रदेश के संदर्भ में क्षेत्रीय इतिहास लेखन विषय पर केंद्रित अपने वक्तव्य में प्रोफेसर नारायण सिंह राव ने कहा कि भारतीय इतिहास को लिखते समय विदेशी विद्वानों ने भारतीय ज्ञान परंपरा को हीन बताने के उद्देश्य से इतिहास लिखा है जो सत्य तथ्यों के विपरीत है। अतः इतिहास को सत्य एवं प्रामाणिक साक्ष्यों के आधार पर लिखने की जरूरत है। गंगा जमनी तहजीब को प्रचारित करने के लिए भारत के गौरवशाली इतिहास को छिपाया गया है। अब नए अनुसंधानों तथा वैज्ञानिक साक्ष्यों के अनुसार इतिहास लिखने के प्रयास होने लगे हैं जिससे भारत के वास्तविक इतिहास को सामने लाया जा सकेगा।
शोध संस्थान नेरी हमीरपुर द्वारा भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में क्षेत्रीय इतिहास लेखन में शोध प्रविधि : हिमाचल के संदर्भ में आयोजित कार्यशाला में डॉ. शोभा मिश्रा, नेम चंद ठाकुर, विकास बन्याल, डा. मोहन शर्मा , करतार चंद और डॉ. सन्नी अटवाल, डा. कर्म सिंह भी परिचर्चा में उपस्थित रहे। हिमाचल प्रदेश का बृहद् इतिहास में डा. नीलम कुमारी, ऋषि भारद्वाज, रोहित मांडव ने भी परिचर्चा में भाग लिया।