भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला में राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस पर एक व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस अवसर पर संस्थान के अध्येता प्रोफेसर जितेन्द्र राय ने भारत के अंतरिक्ष मिशन का एक अवलोकन विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया। इस अवसर पर संस्थान के अध्येता, अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित थे।
प्रोफेसर राय ने कहा कि 23 अगस्त 2023 को चंद्रमा की सतह पर चंद्रयान-3 को सफल उतारा जाना भारतीय विज्ञान विशेषकर अंतरिक्ष विज्ञान के लिए एक सफल मिशन और शुभ दिन था। उन्होंने कहा कि भारत के अंतरिक्ष अभियान की कहानी 1962 में डॉ. विक्रम साराभाई के कुशल नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति के गठन से शुरू हुई थी। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि अंतरिक्ष अभियानों के लिए न केवल बुनियादी विज्ञान की स्पष्ट समझ की आवश्यकता होती है, बल्कि एक बहुत ही मजबूत तकनीकी बुनियादी ढांचे की भी आवश्यकता होती है। साथ ही इसके लिए गुरुत्वाकर्षण की भी महती भूमिका होती है। इस प्रकार के प्रक्षेपण के लिए जटिल गणना की आवश्यकता होती है। किसी भी वस्तु के लिए, यदि उसे अन्य खगोलीय पिंडों पर प्रक्षेपित किया जाता है, तो पहली आवश्यकता पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को समझना पड़ता है। लेकिन जब कोई पिंड किसी दूसरे ग्रह के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के प्रभाव में पहुंचता है तो उस ग्रह की गति बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है।
भारत के अंतरिक्ष अभियान के इतिहास, चंद्रयान-3 की सफलता, उसकी विशेषताओं, तकनीकी पहलुओं तथा दूरगामी सुखद परिणामों को रेखांकित करते हुए प्रोफेसर राय ने अपने व्याख्यान के उपरांत उपस्थित अध्येताओं, अधिकारियों तथा कर्मचारियों द्वारा पूछे गए अंतरिक्ष तथा चंद्रयान-3 से जुड़े प्रश्नों के भी संतोषजनक व सारगर्भित उत्तर दिए।
यह व्याख्यान कार्यक्रम संस्थान के सचिव मेहर चन्द नेगी की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में उन्होंने कहा कि चंद्रयान-3 की सफलता देश के लिए गौरव का विषय है और मुख्य वक्ता प्रोफेसर जितेन्द्र राय, उपस्थित अध्येताओं व अन्य सभासदों के प्रति आभार व्यक्त किया।
यह व्याख्यान कार्यक्रम भारत सरकार, शिक्षा मंत्रालय के दिशा -निर्देशों के अनुरूप आयोजित किया गया। कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान के साथ हुआ।