मण्डी की राजकुमारी अमृत कौर कन्या (उच्च माध्यमिक) पाठशाला, आज भी उस महान समाज सेविका और क्रांतिकारी की याद अपने में लिए, इस रियासत के साथ ही साथ कई एक पुरानी यादें, उस रानी की ताजा कर देते हैं।
राज कुमारी अमृतकौर पंजाब के कपूरथला रियासत के महाराजा रणधीर सिंह के छोटे बेटे सर हरनाम सिंह अहलूवालिया की इकलौती छोटी बेटी थी। सर हरनाम सिंह जिसने की ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया था और कपूरथला से संयुक्त प्रांत लखनऊ आ गया था। इधर उसके पास अवध राज्य की (संपदा प्रबंधन की) समस्त देख रेख, उसी के ही अधीन थी। उसका विवाह जालंधर के रेवरेंड चार्ल्स गोलक नाथ चैटर्जी की तीसरी बेटी प्रिसिला के साथ वर्ष 1872 में हुई थी। (लेकिन दीवान जर्मनी दास द्वारा राजा हरनाम सिंह की शादी कांगड़ा की कनारी नाम की लड़की से बताई गई है) इस प्रकार राजकुमारी अमृत कौर का जन्म 2 फरवरी, 1887 को लखनऊ में हुआ था। आगे का समस्त लालन पालन आदि ईसाई पारिवारिक तौर तरीके से ही चलता रहा। शिक्षा के लिए अमृत कौर को इंग्लैंड भेज गया था, जहां उसने पहले डोरसेट शेरबॉर्न गर्ल्स स्कूल से शिक्षा ग्रहण की और उसके पश्चात, ग्रैजुएशन व पोस्ट ग्रैजुएशन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की। शिक्षा प्राप्ति के पश्चात राजकुमारी 1918 में भारत आ गईं। इधर वह महात्मा गांधी जी की सादगी, देश प्रेम, स्नेह भाव व सत्य अहिंसा के विचारों से प्रभावित हो कर वह (अमृत कौर) वर्ष 1919 में बंबई पहुंच कर सीधे महात्मा जी के आश्रम जा पहुंची और उनके आदर्शो पर चलते हुए, खादी धारण करके वह सादगी का जीवन व्यतीत करने लगी और इस प्रकार लगातार 16 वर्ष तक महात्मा गांधी जी की सचिव का कार्य करती रहीं। जिस समय 13 अप्रैल को जालियां वाले बाग की घटना घटी तो अमृत कौर को बड़ा ही आघात के साथ दुख हुआ और तभी से उसने कांग्रेस पार्टी में शामिल हो कर क्रांतिकारी गतिविधियों में आगे आने लगीं।
फरवरी 1923 को राजकुमारी अमृत कौर का विवाह मण्डी के राजा जोगिंदर सेन से हो गया। जिसमें दूल्हा, राजा जोगिंदर सेन, कपूरथला स्टेशन से सजे हुए हाथी पर सवार हो कर सीधे लमहल में प्रवेश हुए थे। शाही विवाह में पंजाब के गवर्नर, उनकी पत्नी लेडी मैक्लेगन, कई एक राजे महाराजे, महारानियां व मंत्री भी शामिल हुए थे। शादी के पश्चात इनके यहां एक बेटा व बेटी का जन्म हुआ, जिनका लालन पालन राजसी ठाठ बाठ से किया गया।
वर्ष 1927 में राज कुमारी अमृतकौर द्वारा महिला कांग्रेस की स्थापन की गई। वर्ष 1930 में जिस समय महात्मा गांधी जी के साथ दांडी यात्रा में अग्रणी रूप में शामिल हुई, तो इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। वर्ष 1930 में ही महिला कांग्रेस की सचिव भी रही और फिर 1933 में अध्यक्ष पद पर अपनी सेवाएं देती रहीं। वर्ष 1934 में गांधी आश्रम चली गईं।
इसके साथ ही ब्रिटिश सरकार द्वारा इनकी शिक्षा और कार्य कुशलता को देखते हुए, इन्हें शिक्षा सलाहकार बोर्ड का सदस्य नियुक्त कर दिया गया। वर्ष 1937 में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में, भारत के उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत बन्नू (खैबर पख़्तून प्रांत) में सद्भावना मिशन पर गईं। जिसके लिए इन पर राजद्रोह का अभियोग लगा कर जेल में डाला गया। ऐसे ही वर्ष 1942 में, भारत छोड़ो आंदोलन के समय जब पुलिस द्वारा लाठियां बरसाई गईं तो इन्हें भारी चोटे लगी और इन्हें गिरफ्तार करके शिमला जेल में रखा गया। वर्ष 1945 में यूनेस्को को ओर से भारतीय प्रतिनिधि के रूप में लन्दन में डिप्टी सेक्ट बन कर गईं, फिर वर्ष 1946 में दूसरे आयोजन में पेरिस भी गईं।
15 अगस्त, 1947 में देश के स्वतंत्र हो जाने पर, जिस समय भारतीय रियासतों को भारत गणराज्य में शामिल किया गया तो पंजाब की समस्त पहाड़ी रियासते भी शामिल कर ली गई, जिनमें मण्डी की रियासत भी थी। उस समय मण्डी के शासक राजा जोगिंदर सेन (राजकुमारी अमृत कौर के पति) थे। तब उन्हें भारत के प्रतिनिधि के रूप में राजदूत बना कर ब्राजील भेज दिया गया और राज कुमारी अमृतकौर सामाजिक गतिविधियों में व्यस्त रहने लगीं। 25अक्टूबर, 1951 के प्रथम लोक सभा चुनाव में मण्डी लोकसभा से राजकुमारी अमृत कौर जीत के प्रथम महिला स्वास्थ्य मंत्री नियुक्त हुईं। बाद में इन्हीं की अथाह प्रयत्नों से एम्स की स्थापना की गई, जिसके लिए इनके द्वारा न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, पश्चिमी जर्मनी, स्वीडन व अमेरिका से विशेष सहायता ली गई। वर्ष 1948 – 1949 में ऑल इंडिया कांग्रेस ऑफ सोशल वर्क की ये अध्यक्षा रहीं और ऐसे ही वर्ष 1950 में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली की अध्यक्षा निर्वाचित की गईं। वर्ष 1957 में 19 वीं इंटरनेशनल रेड क्रॉस कॉन्फ्रेंस इन्हीं की अध्यक्षता में नई दिल्ली में आयोजित की गई। ऐसे ही वर्ष 1948 – 1964 तक सेंट जॉन एम्बुलेंस ब्रिगेड की चीफ कमिश्नर व इंडियन काउंसिल ऑफ चाइल्ड वेलफेयर की मुख्य अधिकारी के साथ ऐम्स की अध्यक्षा भी रहीं। वर्ष 1950 – 1964 तक लीग ऑफ रेड क्रॉस सोसाइटी की सहायक अध्यक्षा भी यहीं थीं। इन्हीं के द्वारा नेशनल स्पोर्ट्स वेलफेयर क्लब ऑफ इंडिया की स्थापना भी की गई व इसी क्लब की शुरू में अध्यक्षा भी रहीं थीं। क्योंकि इन्हें टेनिस में विशेष रुचि थी। इन सभी के साथ ही साथ ट्यूबरक्लोसिस एसोसिएशन व कुष्ठ निवारण संघ की अध्यक्षा, गांधी स्मारक निधि, जालियां वाला बाग नेशनल मेमोरियल ट्रस्ट की ट्रस्टी व दिल्ली म्यूजिक सोसायटी की अध्यक्षा भी थीं। इन सभी विभागों से जुड़ी होने व सभी को अपनी योग्यता से ठीक ठाक ढंग से चलने के कारण ही तो इन्हें कई एक शैक्षणिक संस्थानों द्वारा डॉक्टरेट के उपाधियों से सम्मानित भी किया गया, जिनमें दिल्ली विश्विद्यालय, स्मिथ कॉलेज, वेस्टर्न कॉलेज व मेक्मरे कॉलेज आदि आ जाते हैं।
शाकाहारी, सादगी की मूरत, बच्चों व फूलों से विशेष स्नेह रखने वाली तथा महिलाओं की हर तरह से मददगार राजकुमारी अमृत कौर ने महिलाओं के अधिकार, विधवा विवाह, बाल विवाह, पर्दा प्रथा व देव दासी प्रथा के संबंध में बहुत कुछ कहा और लिखा है। उनके द्वारा महिलाओं से संबंधित लिखित साहित्य में शामिल हैं: वुमन इन इंडिया 1935, चैलेंज टू वुमन 1946, टू विमेन 1948 व गांधी एंड विमेन आदि।
राजकुमारी अमृतकौर के बड़प्पन व दरियादिली की मिसाल का वर्णन इतालवी लेखिका संबुय की पुस्तक *इंडिया प्रिंसेस इन वार टाइम पेरिस* से चलता है जिसमें लिखा था , “पेरिस में गेस्टापो द्वारा गिरफ्तार”, क्योंकि राजकुमारी अमृतकौर ने यहूदियों की मदद के लिए अपने आभूषणों को बेच कर, पैसे दिए थे। इसी कारण उसे कुछ मास के लिए कैद हुई थी। पारिवारिक रूप से ईसाई होते हुए भी वह सभी धर्मों का मान सम्मान करती थी, वह बाइबल के साथ ही साथ गीता व रामायण को भी बड़े स्नेह से पढ़ती थी।
उसके भाई व उस द्वारा अपनी शिमला की जायदाद से, खुद का बंगला समाज सेवा के रूप में स्वास्थ्य विभाग की सेवा में दे देना कोई छोटी बात नहीं। इन सभी दृष्टांतों से राज कुमारी अमृतकौर के मानवतावादी व गांधीवादी होने की पुष्टि हो जाती है। वह पहले देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ती रही और स्वतंत्रता के पश्चात देश व समाज सेवा में अपना सब कुछ न्योछावर कर आखिर वह क्रांतिकारी, देश भक्त महिलाओं की मसीहा, 2अक्टूबर के दिन वर्ष 1964 को सबको छोड़ कर सदा सदा के लिए दूर चली गईं। उन्हें महिलाओं, बच्चों, शिक्षा, स्वास्थ्य व समाज के प्रति किए नेक कार्यों के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।