लेफ्टिनेंट (डॉक्टर) जय महलवाल, राजकीय महाविद्यालय, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश
मैं हिमाचल हूं,
हिमालय का सरताज हूं,
मैं टूटूंगा नहीं,
कितनी भी मुसीबत,
आ जाए मुझ पर,
मैं झुकूंगा नहीं,
मैं हिमाचल हूं………..
आखिर कितना खोखला करोगे मुझे,
कितनी मेरी अंतरात्मा को कटोचोगे,
कितने जख्म दोगे मुझे,
सब सहन करके फिर उठूंगा मैं ,
मैं हिमाचल हूं………
शिमला मनाली को कितना कंक्रीट बनाओगे,
पैसों के चक्कर में खुद को ही नुकसान पहुंचाओगे,
क्यूं कुदरत को बेबस कराते हो,
पर्यावरण का नुकसान कराते हो,
भोली भाली जनता के, आशियानों को क्यों उजड़वाते हो,
मानव तुम अपनी ,
करतूत से क्यों बाज़ नही आते हो,
अपने इस हिमाचल में,
फिर कैसे तुम सभ्य मानव कहलाते हो,,,,
मैं हिमाचल हूं,
हिमालय का सरताज हूं,
सब लोगों के प्यार का मोहताज हूं,
अपनी अनूठी प्राकृतिक छठा के लिए,
जाना जाता बेबाक हूं,
मैं हिमाचल हूं………
मैं झुकूंगा नहीं,
अगर किसी ने मुझको बेवजह कुरेदा,
तो मैं विनाश करने से रुकूंगा नहीं,
मैं हिमाचल हूं,
मैं शिव के सिर का ताज़ हूं,
अगर कोई मेरा सिंहासन डोलेगा,
तो फिर मानव त्राहिमाम त्राहिमाम बोलेगा,
चाहे हो फिर शिमला की शिवबौड़ी,
या मंडी का पंचवक्तावर,
अपने पास से तांडव रचाऊंगा,
पानी से ऐसी गंगा बहाऊंगा,
सारी सृष्टि को साथ ले जाऊंगा,
मैं हिमाचल हूं……….
मैं झुकूंगा नहीं,
मैं रुकूंगा नही,
मैं ठार नही ठानूंगा,
मैं रार नही मानूंगा,
हिम का मैं आंचल हूं,
मैं हिमाचल हूं।