नारी शक्ति सम्मेलन का आयोजन भव्य रूप से संपन्न हुआ, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. किमी सूद ने महिलाओं को समान अवसर देने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि समाज के संतुलित संचालन के लिए पुरुष और महिला की समान भागीदारी अनिवार्य है। जैसे एक पहिए से गाड़ी नहीं चल सकती, वैसे ही समाज भी अकेले किसी एक वर्ग से नहीं चल सकता।
डॉ. सूद ने कहा कि हमारे देश की परंपरा महिलाओं को सम्मान देने की रही है। सीता माता, रानी लक्ष्मीबाई और अहिल्याबाई होल्कर जैसी विभूतियों ने समाज के लिए आदर्श प्रस्तुत किए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आज की महिलाएं अधिकारों के प्रति सजग हो रही हैं, लेकिन अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों को भी नहीं भूलना चाहिए।
उन्होंने कहा, “महिलाओं को अवसर मिलेंगे तो वे निश्चित रूप से अपनी क्षमताओं का सर्वोत्तम प्रदर्शन करेंगी। हालांकि अब कुछ बदलाव दिखने लगे हैं, लेकिन अभी भी बड़ी संख्या में महिलाएं अपने अधिकारों से वंचित हैं।”
इस अवसर पर वक्ता डॉ. सुवर्चा चौहान ने संयुक्त परिवारों के विघटन और युवाओं में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति को महिलाओं के लिए एक बड़ी चुनौती बताया। उन्होंने कहा कि यदि इस दिशा में सामूहिक प्रयास नहीं हुए, तो इसका दुष्परिणाम समस्त समाज को भुगतना पड़ सकता है।
कार्यक्रम में वक्ता कृष्णा चौधरी ने कहा कि महिलाएं त्याग और बलिदान की प्रतिमूर्ति हैं। वह परिवार को संवारने में अपने सपनों तक को पीछे छोड़ देती हैं। उन्होंने आह्वान किया कि महिलाओं को अपने लिए भी समय निकालना चाहिए ताकि उनके अधूरे सपने पूरे हो सकें।
मुख्य वक्ता स्वामी विदेह योगी जी ने कहा कि “गृहस्थ जीवन सबसे बड़ा विज्ञान है” और मानव निर्माण संस्कारों से होता है, न कि केवल शिक्षा से। उन्होंने कहा कि आज की महिला केवल जननी बन रही है, परंतु मां बनना अभी शेष है। मां बनने का तात्पर्य है – बच्चों को केवल जन्म देना नहीं, बल्कि उन्हें संस्कारित और सद्गुणी बनाना।
स्वामी जी ने यह भी कहा कि महिलाओं के बिना समाज का संचालन संभव नहीं है। घर के बुजुर्गों, बच्चों, पशु-पक्षियों और पर्यावरण की देखभाल में महिला की भूमिका केंद्रीय होती है। जननी को “मां” का दर्जा उसके तप और सेवा के कारण मिलता है, जो उसे देवी के समान बनाता है।