
लूट मार, छीना झपटी चोर डकैती, मार धाड़ या खून खराबा आखिर क्यों होते हैं इनके पीछे भूख, पैसे का आभाव, तिरस्कार या फिर लालच अथवा लालसा हो सकती है और इस प्रकार का हिंसात्मक व्यवहार आज से नहीं बल्कि शुरू से ही चला आ रहा है। इसी लालसा के चलते आगे कुछ शक्ति शाली, अगुवे बन कर हिंसात्मक हो जाते हैं और मनमानी करते करते कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। लूट मार की यही प्रकिया छोटे छोटे क्षेत्रों से शुरू हो कर आगे देश की सीमाओं को लांघते हुवे दूसरे देशों को लूटने तक पहुंच जाती है।
ऐसा ही तरीका कमजोर राष्ट्रों पर अपना कर शक्तिशाली राष्ट्र अपने को बलशाली होने का परिचय देते रहे हैं। बहुत से अफ्रीकन व एशियन देश इस त्रासदी के शिकार हो चुके हैं और कुछ तो अभी भी इनकी गुलामी में जकड़े आजादी का इंतजार कर रहे हैं। छोटे से देश तिब्बत का ज्वलंत उदाहरण सबके सामने है। बड़ी मछलियां अक्सर छोटी मछलियों को निगलती रहती हैं, ये तो कुछ प्रकृति की ही देन है। लेकिन यदि सोच समझ रखने वाले ही ऐसा करने लगे गे तो फिर उस दिमाग का क्या लाभ? लेकिन भूखे नंगे, लुच्चे लफंगों के आगे क्या जिनकी अपनी इज्जत नहीं वह दूसरों की क्या करेगा !
इधर हमारे देश भारत के पश्चिम की ओर से बर्बर लड़ाकू जातियों के लुटेरों द्वारा कई बार लूट पाट व हमले किए गए जो कि ईस्वी पूर्व में यूनानी (सिकंदर) से लेकर अरब के ईरानी खलीफों (के 9 आक्रमण) मुहम्मद बिन कासिम फिर तुर्कों में मुहम्मद गौरी घुरिद जनजाति (पृथ्वी राज चौहान ने जिसे कई बार पछाड़ा भी), व महमूद गजनवी ने 17 आक्रमण किए और सोमनाथ मंदिर को तहस नहस कर बहुत कुछ लूट कर ले गया। 13वीं शताब्दी में गुलाम वंश आया और 84 वर्ष तक यहां शासन करता रहा।फिर तुर्किस्तान से खिलजी वंश, तुगलक वंश और मुगल अफगान आए। 1498 में पुर्तगाली, 1674 में फ्रांसीसी और फिर अंग्रेज आने शुरू हो गए।
अंग्रेजों ने भारत के साथ ही साथ कई एक देशों में गद्दर मचा रखा था । आखिर हजारों शहीदों की कुर्बानी के पश्चात 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया, लेकिन गोवा पर पुर्तगालियों का अधिकार वैसा ही बना रहा। गोवा मुक्ति अभियान तो पुर्तगालियों के भारतीय क्षेत्रों पर अधिकार स्थापित करने के शीघ्र बाद ही शुरू हो गया था, जिस समय पुर्तगाली पादरी यहां के लोगों को जबरदस्ती ईसाई धर्म अपनाने को प्रेरित कर रहे थे।यह घटना 15 जुलाई, 1583 ईस्वी की बताई जाती है जिस समय कुछ पादरी जबरदस्ती से लोगों को धर्म परिवर्तन को कह रहे थे, तो गुस्से में आकर लोगों ने 5 पादरियों की ही हत्या कर दी थी।बाद में बदले में गांव के कुछ लोगों को बातचीत के बहाने बुला कर 15 लोगों की हत्या पुर्तगालियों द्वारा कर दी गई ।
जिसके बाद भारी विद्रोह उठ खड़ा हुआ था, जो कि कुंकली विद्रोह के नाम से जाना जाता है।इसी तरह का एक अन्य विद्रोह जो कि वर्ष 1788 ईस्वी में एक ही परिवार द्वारा किया गया था और यह विद्रोह मेटों के नाम से प्रसिद्ध है, इस विद्रोह को भी बुरी तरह से पुर्तगालियों द्वारा कुचल दिया गया था। इसमें 47 लोगों को गिरफ्तार करके, कईयों को फांसी तक दे दी गई थी। एक अन्य अति प्रसिद्ध विद्रोह जो कि सत्तरी क्षेत्र के राणा लोगों द्वारा लगातार 150 वर्षों तक किया जाता रहा था और उसे बार बार कुचल दिया जाता था, लेकिन राणा समुदाय के लोगों की हिम्मत और देश प्रेम की भावना को देख कर पुर्तगाली उनसे बुरी तरह से डर गए थे, जंगली क्षेत्रों में लड़ी जाने वाली राणों की वह लड़ाई गुरिल्ला लड़ाई हुआ करती थी।इस तरह लम्बे समय तक चलने वाला यह विद्रोह राणे विद्रोह से प्रसिद्ध है।
गोवा के स्वतंत्रता सेनानी टी बी कुन्हा (त्रिस्तबा दे ब्रागांझा) ने 1928 में गोवा कांग्रेस का गठन करके अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर अहिंसात्मक सत्याग्रह भी किया तथा अपने उस सारे कार्यक्रम से संबंधित कई एक आलेख व देश प्रेम संबंधित विचार प्रकाशित करवा कर पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से जन जन तक पहुंचाए थे। इस सब के साथ ही साथ इनके एक विशेष पत्रकार मित्र लुईस दे मेंझिस ब्रागांझा, जो कि कई एक समाचार पत्रों से संबंध रखता था, ने भी स्वतंत्रता संग्राम के कार्यों के साथ समय समय पर धर्मनिरपेक्षता व गोवा की आजादी के संबंध में बहुत कुछ लिखता रहता था।
पुर्तगाल में जब नया शासक, अतो निओ द ओलिवेरा सालाजार बना तो उसके कारण कुछ अधिक ही सख्ती बरती जाने लगी थी। वर्ष 1930 में कोलोनियल एक्ट के अंतर्गत आम जनता की रैलियों, बैठकों व सरकार विरोधी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिए गए, यहां तक कि किसी को जय हिंद भी नहीं कहने दिया जाता था हर साधारण बात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। सेंसरशिप कठोर कर दी गई थी, पत्रों व विवाह के निमंत्रण पत्रों की भी कड़ाई से जांच होने लगी थी। इतनी सख्ती होने के बावजूद भी उस समय गोवा की महिलाओं में भारी जागृति आ गई थी। वर्ष 1955 में वीरांगना सुधा ताई के नेतृत्व में मापसा में, महिलाओं की सभा का आयोजन किया गया, जिसमें भाषण के साथ ही साथ तिरंगा भी लहराया गया और जय हिंद के नारे तक भी लगाए गए। जिस पर सुधा ताई को डरा धमका कर गिरफ्तार कर लिया गया था।
लेकिन हौसला अफजाई के लिए सभा में शामिल अनेकों महिलाओं ने अपनी गिरफ्तारी दे कर राष्ट्रीय महिला एकता का सबूत गोवा की पुर्तगाली सरकार को दे कर चकित कर दिया था। वर्ष 1947 में भारत के आजाद हो जाने पर भी दीव, दमन व गोवा में विद्रोह की ज्वाला भड़कती ही रही। फलस्वरूप गोवा, दीव व दमन के प्रवेश पर लगे प्रतिबंध को पुर्तगाली सरकार ने आगे बढ़ा दिया । लेकिन पुर्तगाली सरकार के प्रतिबंधों की परवाह न करते हुवे वर्ष 1946 में डॉ राम मनोहर लोहिया द्वारा 200 लोगों को साथ लेकर वहां सभा का आयोजन किया, विरोध में भाषण भी दिया गया, जिस पर उन्हें गिरफ्तार करके मडगांव जेल में डाल दिया गया। लेकिन जनता व महिलाओं के भारी विरोध के कारण पुर्तगाली सरकार को लोहिया जी को छोड़ना पड़ गया। लेकिन छोड़ते हुवे उनके लिए गोवा आने का 5 वर्ष के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया था।
भारत की स्वतंत्रता के पश्चात प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा पुर्तगाल सरकार से गोवा के लिए कई बार बात और पत्र व्यवहार भी किया लेकिन पुर्तगाल सरकार टस से मस नहीं हुई। इसके पश्चात बात बनते न देख कर भारत सरकार द्वारा 11 जून, 1953 को गोवा की राजधानी लिस्बन में अपना दूतावास बंद कर दिया और फिर से पुर्तगाल पर दबाव डालना शुरू कर दिया । लेकिन पुर्तगाल सरकार ने बदले की भावना से अपने यहां प्रवेश पर बंदिश लगा दी, जिसकी अवहेलना करते हुवे 15 अगस्त, 1955 को हजारों की संख्या में लोगों ने उधर जाने का प्रयास किया । जिस पर उधर से पुलिस द्वारा चलाई गोलीबारी से 30 लोग मारे गए। इतना सब होने पर भी भारत द्वारा कई तरह के प्रयास किए जाते रहे और अंत में भारत सरकार द्वारा 1 नवंबर, 1961 को विजय अभियान के अंतर्गत अपनी तीनों सेनाओं (जल, थल और वायु) को तैयार रहने को कह दिया गया। और दिसंबर माह में अपने गोवा मुक्ति अभियान अर्थात ‘ऑपरेशन विजय’ के अंतर्गत 8 – 9 दिसंबर के दिन गोवा पुर्तगाल को चारों तरफ से तीनों सेनाओं ने घेर कर बमबारी शुरू कर दी गई, परिणाम स्वरूप पुर्तगाल सरकार को भारत के आगे झुकना पड़ा और 19 दिसंबर, 1961 को पुर्तगाल के गवर्नर को भारत सरकार के साथ संधि करके गोवा को स्वतंत्र करना ही पड़ा। इसी दिन 19 दिसंबर को गोवा मुक्ति दिवस के रूप में हर वर्ष मनाया जाता है।गोवा मुक्ति के पश्चात 30 मई, 1987 को इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया था, तभी से 30 मई का दिन, गोवा के पूर्ण राज्य दिवस के रूप में मनाया जाता है।