
समय की छोटी सी इकाई घड़ी,पल,सेकंड से शुरू हो कर घण्टों दिनों महीनों से होती हुई वर्ष तक जा पहुंचती है और देखो न कैसे पलक झपकते की 2024 चला गया 2025 के आगमन के साथ ही।ब्रह्मांड ,मानव व जीव जंतुओं की उत्पति कैसे व कब हुई, बहुत ही प्राचीन लम्बी कहानी है ,जिसके बारे धार्मिक और विज्ञान के अपने अपने मत हैं।समय या काल की गणना के लिए संवत,वर्ष,ईसवी व कैलेंडर का चलन अपने अपने ढंग से सौर चक्कर या चंद्रमा चक्कर से किया गया है।
ग्रिगेरियन कैलेंडर का चलन जो कि दुनियां के अधितर देशों में देखा जा सकता है कि शुरुआत 1582 में पॉप ग्रेगरी Xlll द्वारा की गई थी।जूलियन कैलेंडर की शुरुआत रोमन सम्राट जूलियस सीजर द्वारा 46 ईस्वी पूर्व की गई थी।इस प्रकार से आज के प्रचलित ईस्वी कैलेंडर को ईसा मसीह के जन्म के आधार पर चलाया गया था और यही कैलेंडर ग्रिगेरियन कैलेंडर कहलाता है। नव वर्ष को दुनिया भर में हर वर्ष ,बड़े ही धूमधाम ,उत्साह व जोश से मनाया जाता है और यह परम्परा शुरू से चली आ रही है।नव वर्ष को मनाने की तैयारियां तो सभी जगह कई कई दिन पहले से ही होने लगती हैं।जिसमें साफ सफाई, रंग रोगन के साथ चमचमाती लाइट्स , आतिशबाजी ,गुब्बारों व अन्य सजावटी सामग्री का प्रयोग रहता है और तरह तरह की रंगोली,अल्पना तथा पेंटिंग्स से सजावट की जाती है। गीत संगीत के साथ ही साथ भांत भांत के डांस की थिरकन भी देखने को मिल जाती है।यह माहौल लगभग सभी देशों में देखा जा सकता है।
हिंदू नव वर्ष 2025 ,जो कि विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है यह चैत्र नवरात्रि से शुरू होगा और 30 मार्च से 7 अप्रैल तक चले गा।इसमें 12 मास चैत्र,वैशाख,ज्येष्ठ,आषाढ़, श्रावण,भाद्रपद,आश्विन,कार्तिक,मार्ग शीर्ष,पौष,माघ और फागुन आ जाते हैं।हमारे यहां भारत में नव वर्ष 2_3 तिथियों में मनाया जाता है ।अर्थात मार्च अप्रैल में,मेष संक्रांति या वैशाख संक्रांति(वैसाखी) में।जिसमें तमिल नाडु,केरल व बंगाल आदि आ जाते हैं।इसी तरह से इसे पर्व के रूप में हिमाचल,उत्तराखंड,पंजाब ,जम्मू,पूर्वांचल तथा बिहार मनाया जाता है।कुछ एक सिखों में नव वर्ष नानक शाही कैलेंडर के अनुसार नव वर्ष चैत्र संक्रांति को मनाया जाता है।नव वर्ष की दूसरी तिथि वर्ष प्रतिपदा(चैत्र शुक्ल प्रतिपदा )या चंद्रमा युगादि को कर्नाटक,तेलगाना व आंध्रा में उगादि के रूप में मनाते हैं।
कश्मीर में भी इसी दिन इसे नवरेह के नाम से मनाया जाता है।आगे महाराष्ट्र इसे गुड़ी पड़वा,सिंधी बोली में चैटी चंड तथा मदुरै में चित्रैय गास या चित्रैय त्रिविजा के नाम से मनाया जाता है। तीसरी तिथि इसको मनाने की बलि प्रतिपदा(कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा) में दीपावली के अगले दिन को होतो है।और इस दिन केवल हिसाब किताब ही किया जाता है।फिर अगले दिन नव वर्ष शुरू होता है।मारवाड़ियों,गुजरातियों और जैनियों द्वारा इसे इसी दिन मनाया जाता है। इस तरह देखा जाए तो भारतीय नव वर्ष बसंत की दस्तक,नई फसलों के आगमन व शुभ नक्षत्रों के होने के उपलक्ष में विशेष रूप से मनाया जाता है।
इस्लामी नव वर्ष हिजरी संवत मुहर्रम के नाम से जाना जाता है और यह भी चंद्रमा पर ही आधारित होता है।नव वर्ष के आने व इसके खुशी खुशी मानने की चाहत हर जगह व हर देश में देखी जा सकती है।ये बात अलग है कि सभी जगह खुशी व साजो सज्जा अपने अपने ढंग की रहती है ,जैसे कि चीन में इस दिन कुसुंबी रंग को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है,अग्नि के खेल खेले जाते हैं और काले सफेद रंग से परहेज किया जाता है। जापान में इस अवसर पर घंटियों को बजाना शुभ माना जाता है और ओजोनी सूप पिया जाता है।कोरिया में लोग अपने घरों के दरवाजों पर बुकजोरी( घास फूस की छलनियों) लटकाते हैं ताकि किसी की नजर न लगे और पांच रंगों के कपड़ों को पहनना शुभ समझा जाता है।
थाईलैंड में एक दूसरे पर पानी डालते हैं और पशु ,पक्षियों व मछलियों दाना खिलाना शुभ समझते हैं।म्यांमार में इस पर्व को तीजान के नाम से पुकारते हैं और यहां भी एक दूजे पर पानी का छिड़काव करते हैं। दक्षिणी अमेरिका में घर के पुराने कपड़ों का पुतला बना कर जलाया जाता है,जिससे सभी बुराईयां जल कर खत्म हो जाती हैं। इस तरह देखा जाए तो नव वर्ष खुशियों का त्योहार तो है ही इसके साथ ही साथ इससे विश्व बंधुता का भी बड़ा संदेश मिलता है।नव वर्ष की इस शुभ बेला में आप सभी को परिवार सहित हार्दिक बधाई व यह वर्ष 2025 आप सब के लिए हर तरह की खुशियों के संदेश देता रहे।