भाषा एवं संस्कृति विभाग, हिमाचल प्रदेश द्वारा प्रकाशित द्विमासिक साहित्यिक पत्रिका ‘विपाशा’ वर्ष 1985 से निरंतर प्रकाशित हो रही है। विगत चार दशकों में इस पत्रिका ने न केवल प्रदेश में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर अपनी एक विशिष्ट पहचान स्थापित की है।
पत्रिका को राष्ट्रव्यापी स्वरूप प्रदान करने के उद्देश्य से देश के जाने-माने एवं प्रतिष्ठित रचनाकारों की रचनाओं के साथ-साथ प्रदेश के वरिष्ठ तथा उदीयमान साहित्यकारों की रचनाओं को भी प्रकाशित किया जाता है। विपाशा में ‘देशांतर’ एवं ‘भाषांतर’ जैसे महत्वपूर्ण स्तंभों के माध्यम से भारतीय एवं विदेशी भाषाओं की चयनित रचनाओं के अनुवाद प्रस्तुत किए जाते हैं।
पत्रिका का मुख्य उद्देश्य प्रदेश के सृजनात्मक साहित्य, संस्कृति एवं कलाओं को बढ़ावा देना है। इसी दृष्टि से कथा साहित्य, कविता, व्यंग्य के साथ-साथ शोध लेख, समीक्षाएं तथा आलोचनात्मक आलेखों को नियमित रूप से स्थान दिया जाता है। लोकवार्ता, लोक संस्कृति, देव संस्कृति, कला एवं पुरातत्व से संबंधित लेख और शोधपत्र भी विपाशा के स्थायी फीचर हैं।
देश और प्रदेश के साहित्य को एक साथ प्रस्तुत करने के कारण विपाशा देशभर में जानी-पहचानी पत्रिका बन चुकी है। वर्षों से सरकारी एवं गैर-सरकारी पत्रिकाओं के बीच इसकी एक सशक्त साख बनी हुई है और साहित्यिक जगत में इसका विशेष सम्मान है।
प्रदेश के साहित्यकारों को सशक्त मंच प्रदान करना भी पत्रिका का प्रमुख उद्देश्य रहा है। स्थापित और नवोदित रचनाकारों की रचनाओं के साथ प्रदेश से बाहर के चर्चित लेखकों की सहभागिता से विपाशा का दायरा राष्ट्रीय स्तर तक विस्तृत हुआ है। इससे प्रदेश के साहित्य को बाहर के पाठकों तक और देश के साहित्य को प्रदेश में पहुंचाने का सशक्त साहित्यिक आदान-प्रदान संभव हो पाया है।
विपाशा एक सरकारी पत्रिका है, जिससे कोई भी व्यक्ति जुड़ सकता है। अधिक से अधिक पाठकों तक पत्रिका पहुंचाना विभाग का निरंतर प्रयास रहता है। इच्छुक पाठक निर्धारित शुल्क जमा कर पत्रिका की सदस्यता ले सकते हैं। इसके लिए विभाग के कार्यकारी उप-संपादक (संपर्क नं. 0177-2626614-15) अथवा क्षेत्रीय कार्यालयों में जिला भाषा अधिकारियों से संपर्क कर, सीधे घर बैठे पत्रिका प्राप्त की जा सकती है।
भाषा एवं संस्कृति विभाग प्रदेश एवं अन्य राज्यों के सभी साहित्य प्रेमियों से अनुरोध करता है कि विपाशा जैसी साहित्यिक पत्रिकाओं को अधिक से अधिक समर्थन दें, ताकि हिन्दी साहित्य का व्यापक प्रचार-प्रसार हो सके। ऐसे प्रयासों से साहित्यकारों को अपनी रचनाएं जनसामान्य तक पहुंचाने का सरल एवं सशक्त माध्यम प्राप्त होगा, साथ ही प्रदेश की समृद्ध संस्कृति को दूर-दराज के क्षेत्रों से जोड़ने में भी सहायता मिलेगी। विभाग इस सहयोग के लिए समस्त पाठक वर्ग का आभारी रहेगा।


