“कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) केवल जानकारी देती है, जबकि निर्णय के लिए आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता (SI) की आवश्यकता होती है,” यह कहना है भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (IIAS), शिमला में आयोजित व्याख्यान श्रृंखला के दूसरे सत्र में बोलते हुए प्रो. मदन मोहन गोयल का। वे तीन विश्वविद्यालयों के पूर्व कुलपति, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर, तथा नीडोनॉमिक्स स्कूल ऑफ थॉट के प्रवर्तक हैं।
“शैक्षणिक नेतृत्व को यदि समाज के लिए कल्याणकारी दिशा तय करनी है, तो उसमें आत्मचिंतन, नैतिकता और आत्मबोध की गहराई होनी चाहिए,” प्रो. गोयल ने कहा। उनका मानना है कि नीडो-गवर्नेंस के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए AI नहीं, बल्कि SI अधिक उपयोगी है।
इस व्याख्यान सत्र की अध्यक्षता प्रो. जे.के. राय ने की, जिन्होंने प्रो. गोयल के विचारों को गीता-प्रेरित ‘स्वधर्म’ आधारित नवाचार बताया। उन्होंने इसे शिक्षण और प्रबंधन के लिए एक ऊँचा और व्यवहारिक मॉडल करार दिया।
सत्र में सचिव श्री एम.सी. नेगी, एआरओ श्री प्रेम चंद, टैगोर फेलो, राष्ट्रीय फेलो, आईयूसी एसोसिएट्स तथा संस्थान के अन्य विद्वान शामिल हुए, जिससे शैक्षणिक भागीदारी की सक्रियता झलकी।
प्रो. गोयल ने कहा कि शिक्षा में तकनीकी दक्षता के साथ-साथ मूल्यों, विवेक और आत्मिक चेतना का समावेश अत्यावश्यक है। उन्होंने स्पष्ट किया कि AI को केवल सहायक की भूमिका में रखा जाना चाहिए, निर्णयकर्ता की नहीं।
उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए स्पष्ट सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और नीडो-गवर्नेंस आधारित मॉडल की आवश्यकता पर बल दिया।
अंत में उन्होंने शिक्षकों और प्रशासकों से निडर, साहसी, पारदर्शी और नैतिक नेतृत्व अपनाने की अपील की, और कहा कि “सहयोग, आत्मबोध और सत्य के मार्ग से ही प्रभावशाली शैक्षणिक नेतृत्व विकसित हो सकता है।”