December 26, 2025

शिक्षक दिवस पर विशेष : महान चिंतक सर्वपल्ली डॉ. राधा कृष्णन

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बहुत ही कम ऐसे व्यक्तित्व वाले लोग (विद्वान, शिक्षाविद्, दार्शनिक व सर्व धर्म विचारक) राजनीति में देखने को मिलते हैं, जैसे कि हमारे शिक्षा विद डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी रहे हैं। विश्व इतिहास में कोई बिरली ही ऐसी मिसाल होगी।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का जन्म 5 सितंबर, 1888 को ब्राह्मण परिवार में माता सीताम्मा व पिता सर्वपल्ली विरस्मियाह के यहां तिरूतनी गांव में हुआ था। तिरूतनी गांव चिनेई के जिला चितूर में पड़ता है। उस समय (1960 तक) यह गांव तिरूतनी आंध्रप्रदेश में पड़ता था। डॉ. राधा कृष्णन के चार भाई व एक बहिन थी। इनके नाम के आगे सर्वपल्ली इसलिए लगाया जाता है, क्योंकि इनके पुरखे पीछे सर्वपल्ली क्षेत्र से संबंध रखते थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा 1896 ई. से 1900 ई. तक तिरूतनी के लुर्थन मिशन स्कूल तिरुपति में हुई थी। फिर ई. 1900 से 1904 ई. तक की शिक्षा, बैंगलोर से प्राप्त करने के पश्चात आगे की शिक्षा के लिए वे मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज चले गए। 1902 ई. में मैट्रिक की परीक्षा को अच्छे अंकों में पास करके (छात्रावृति के साथ) आगे की शिक्षा वैसे ही जारी रखी। 8 मई, 1903 ई. को जब बालक राधा कृष्णन की आयु अभी 14 वर्ष की ही थी तो इनकी शादी 10 वर्ष की लड़की सिवाकामू से करवा दी, क्योंकि उस समय छोटी आयु में ही शादी करवा देते थे।

1907 ई.  छात्र राधा कृष्णन स्नातक की परीक्षा (कला संकाय) में प्रथम स्थान प्राप्त करके मनोविज्ञान, इतिहास व गणित विषयों में विशेष योग्यता टिप्पणी के साथ सफल रहे और फिर से छात्रावृति भी प्राप्त की। 1908 ई. डॉ. राधा कृष्णन के यहां बेटी का जन्म हुआ और उसका नाम सुमित्रा रखा गया। 1909 ई. में दर्शनशास्त्र में एम.ए. कर लेने के पश्चात अपनी शिक्षा को आगे जारी रखने के लिए इन्होंने कुछ समय के लिए ट्यूशन पढ़ाने का काम भी किया और फिर इसके शीघ्र बाद 1918 ई. में मैसूर में सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हो गए, बाद में वहीं प्रोफेसर के रूप में कार्य करने लगे। इसके साथ ही साथ भारतीय दर्शन का प्रचार प्रसार अपने भाषणों व लेखों के माध्यम से दूर दूर तक करने लगे। इसी मध्य उन्होंने समस्त वेदों व उपनिषदो का गहनता से अध्ययन करके भारतीय दर्शन का विस्तार से प्रचार प्रसार करते रहे।

विद्वान शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन वर्ष 1931 से 1936 तक आंध्र प्रदेश विश्व विद्यालय के कुलपति के रूप में कार्यरत रहे। फिर 1939 से लेकर 1948 तक बनारस हिंदू विश्व विद्यालय के कुलपति का कार्य देखते रहे। साथ ही साथ 1936 से 1952 तक ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्राध्यापक का कार्य भी करते रहे, इस मध्य वर्ष 1946 में इनकी नियुक्ति यूनेस्को में भारतीय प्रतिनिधि के रूप में हो गई। वर्ष 1947 से 1949 तक डॉ. राधा कृष्णन सविधान निर्माण समिति के सदस्य भी रहे। आगे वर्ष 1949 से 1952 तक भारत के राजदूत के रूप में मास्को (रूस) में कार्यरत रहे। वर्ष 1960 तक डॉ. साहिब ने आंध्र प्रदेश के गवर्नर के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं। वर्ष 1952 से देश के पहले उप राष्ट्रपति के रूप में भी अपनी सेवाएं देते रहे। इसके पश्चात वर्ष 1962 से 1967 तक देश के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन अपने देश की सेवा में समर्पित रहे। इसके साथ ही साथ वर्ष 1953 से 1962 तक दिल्ली विश्वविद्यालय में उपकुलपति का कार्य भी देखते रहे।

डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की कई एक उपलब्धियां रही हैं, जिनमें वर्ष 1954 का भारत रत्न सम्मान भी आ जाता है। दसवीं करने से पूर्व, 12 वर्ष की आयु में जब इन्होंने पवित्र पुस्तक बाइबल के कुछ अंशों को पूरी तरह से कंठस्थ कर लिया तो इनका बड़ा मान सम्मान किया जाने लगा और बाद में इन्हें विशेष रूप से सम्मानित भी किया गया। इसके पश्चात इन्हें कई संस्थानों व विश्व विद्यालयों से मानद डिग्रियां व सम्मान भी दिए गए और दर्शन शास्त्र, भारतीय संस्कृति, धर्म व मनोविज्ञान पर भाषणों के लिए भी आमंत्रित किया जाता रहा। मैनचेस्टर व लंदन में इनको भाषणों के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था।

एक बार जब डॉ. राधाकृष्णन जी से उनके विद्यार्थियों ने, उनके जन्मदिन को मनाने की बात की तो डॉ. साहिब ने कह दिया कि जन्म दिन तो चलते ही रहते हैं तुम आज के दिन को, शिक्षक दिवस के रूप में मना लो अच्छा रहेगा, तभी से डॉ. राधाकृष्णन जी के जन्म दिन को अध्यापक दिवस के रूप में मनाने लगे हैं। डॉ. राधाकृष्णन जी ने 40 वर्ष तक अपनी सेवाएं एक अध्यापक के रूप में विभिन्न शिक्षण संस्थानों में दे कर न जाने कितने ही विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करके उन्हें अपने चिंतन से अवगत करवाया है। उनका कहना था कि विद्यार्थी ही शिक्षा का केंद्र होता है, इसलिए विद्यार्थियों में नैतिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक, सामाजिक व व्यवसायिक आदि मूल्यों का संचरण अवश्य होना चाहिए। उनका यह भी कहना था कि सुख दुख दोनों साथ ही चलते हैं, स्थिति हमेशा एक सी नहीं रहती परिवर्तन चलता रहता है। मृत्यु परम सत्य है, इसके लिए सभी बराबर हैं, क्या अमीर तो क्या गरीब। इंसान को सादगी का जीवन व्यतीत करना चाहिए, संतोष रख कर सभी धर्मों का आदर करना चाहिए। विश्व शांति और मानवतावादी विचारों का अनुसरण करना चाहिए तथा समस्त विश्व में एक जैसी शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए। इसलिए आए बरस शिक्षक दिवस के पावन अवसर पर डॉ. राधा कृष्णन की शिक्षाओं के प्रचार प्रसार के साथ ही साथ शिक्षकों को सम्मानित भी किया जाता है, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन व शिक्षा संबंधित नीतियों तथा शिक्षकों को दी जाने वाली सुविधाओं पर विचार विमर्श भी किया जाता है। यही शिक्षक दिवस विश्व के सभी देशों में अपने अपने हिसाब से अलग अलग दिन को मनाया जाता है। कुछ देशों में सितंबर माह में इसके लिए अपने अलग से दिन रखे हैं, जैसे कि चीन में 10 को, हांगकांग में 12 को, हमारे भारत में 5 को, फिलीपिंस में 27 को व ताईवान में 28 सितंबर को अध्यापक दिवस मनाया जाता है। इसके अतिरिक्त कई देशों में सितंबर से अलग, दूसरे महीनों में भी मनाया जाता है। लेकिन विश्व अध्यापक दिवस 5 अक्टूबर को ही विश्व भर में मनाया जाता है। जब कि हमारे यहां भारत में 5 सितंबर को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिन पर उनकी याद में ही इसे मनाया जाता है। लेकिन वह आज हमारे बीच में नहीं हैं। 17 अप्रैल, 1975 को एक लम्बी बीमारी के कारण, वह इस संसार को छोड़ कर चले गए!

कुछ भी हो, कभी भी हो लेकिन राष्ट्र निर्माता तो एक अध्यापक ही होता है जो तराश तराश कर और जी तोड़ परिश्रम के साथ राष्ट्र के सच्चे नागरिकों को घड़ कर आगे लता है और अपने आप में गर्व अनुभव करता है। इसके लिए अध्यापक दिवस पर मेरा अपने सभी गुरुजनों को कोटि कोटि नमन।

10, गणेश चतुर्थी – डॉ. कमल के. प्यासा

Keekli Bureau
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