शिमला में सस्टेनेबिलिटी संगोष्ठी की शुरुआत

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भारतीय उन्नत अध्ययन संस्थान (IIAS), राष्ट्रपति निवास, शिमला में आज “Harmonizing Sustainability: Navigating Circular Economy for Sustainable Growth” विषय पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन हुआ। यह कार्यक्रम संस्थान और सौराष्ट्र विश्वविद्यालय, राजकोट (गुजरात) के व्यवसाय प्रबंधन विभाग के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रो. हिमांशु कुमार चतुर्वेदी, निदेशक, IIAS, शिमला ने की। प्रो. के.एस. चंद्रशेखर, कुलपति, क्लस्टर विश्वविद्यालय जम्मू ने मुख्य वक्ता के रूप में अपनी प्रस्तुति दी, जिसमें उन्होंने आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण को संतुलित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। लव वर्मा, IAS (सेवानिवृत्त), भारत सरकार के पूर्व सचिव, मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे और भारत में सर्कुलर अर्थव्यवस्था नीति के विकास पर विचार साझा किए।

प्रोग्राम का विषय परिचय प्रो. संजय जे. भायानी, डीन एवं प्रोफेसर, व्यवसाय प्रबंधन विभाग, सौराष्ट्र विश्वविद्यालय ने दिया, उन्होंने बताया कि सर्कुलर अर्थव्यवस्था संसाधनों के कुशल उपयोग, अपशिष्ट न्यूनतम करना और प्रकृति के पुनरुत्थान को बढ़ावा देने की प्रणाली है।

अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में प्रो. हिमांशु कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि आज सस्टेनेबिलिटी आधुनिक सभ्यता की नींव बन चुकी है, और दीर्घकालीन आर्थिक मजबूती केवल तभी संभव है जब विकास और पर्यावरण के बीच सामंजस्य बना रहे।

पहले दिन में तीन तकनीकी सत्र हुए, जिनमें देशभर के विद्वानों ने शोधपत्र प्रस्तुत किए।

  • प्रो. जयेंद्रसिंह जडव (गुजरात विश्वविद्यालय) ने “भारत में क्लाइमेट फाइनेंस का परिदृश्य” विषय पर बात की

  • प्रो. प्रिये‍श सी.ए. (केरल) ने “जल संकट और कृषि सस्टेनेबिलिटी” पर अपने विचार पेश किए

  • अन्य सत्रों में कॉरपोरेट सस्टेनेबिलिटी, MSME प्रत्याशा, और पर्यावरण जागरुकता पर प्रो. आश्विन कुमार सोलंकी, प्रो. एस.एस. सोढ़ा, डॉ. अमित मिश्रा, प्रो. एस.आर. जयश्री, और डॉ. रिंकी दहिया जैसे विद्वानों ने चर्चा की।

संगोष्ठी का उद्देश्य रिडक्शन, रीयूज़ और रीसाइक्लिंग आधारित सर्कुलर अर्थव्यवस्था मॉडल के ज़रिए सतत आर्थिक विकास के नए सूत्र विकसित करना है। आने वाले दो दिनों में शेष तकनीकी सत्र और समापन सत्र में संसाधन दक्षता, MSME सशक्तिकरण और कॉरपोरेट सस्टेनेबिलिटी पर विस्तृत विचार-विमर्श होगा, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ, शिक्षाविद् और नीति निर्माता सहभागी रहेंगे।

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