चेहरे से परदे जरूर हटाऊंगा: डॉक्टर जय अनजान
हम रहे हमेशा सादगी में,इंसानियत रहा हमारा गहना,कभी इतराए नहीं अपने कर्मो से,हमेशा सीखा है हमने प्रेम में बहना।तुम कहते हो कि मैं कुछ...
पिता : डॉक्टर जय महलवाल द्वारा रचित एक कविता
मां अगर घर की ईंट है,तो पिता समझो पूरा मकान है।मां अगर संस्कार देने वाली है,तो पिता गुणों की खान है।मां अगर अगर करती...