
टूरिज़्म या टेरोरिज़्म
क्यों बदल रही है सबकी सोच,
ज़माना बदला तो मकसद भी है कुछ और।
घूमने की आड़ में मचाते हैं शोर,
अशांति फैलाना ही है इनका जोर।
बाइकों पर झंडे, रफ्तार बेहिसाब,
ट्रैफिक नियमों की उड़ाते हैं किताब।
रोकने पर दिखाते हैं रौब-दबदबा,
बात-बात पर करते हैं झगड़ा-फसाद।
कुछ अवांछित तत्व बिगाड़ रहे नाम,
पर्वतों की शांति को कर रहे बदनाम।
थोड़ी सी बात पर खोते हैं होश,
निकालते हैं हथियार, दिखाते हैं जोश।
भाईचारे की नींव हिल रही है आज,
वादियों का सुकून हो रहा है बर्बाद।
मुफ़्त में बदनाम कर रहे हैं कौम,
सदियों की सांझी विरासत पर कर रहे वार।
गुरुओं की शिक्षा भूलते क्यों जा रहे?
सार्वजनिक संपत्ति तोड़ते क्यों जा रहे?
पहले खुद के गिरेबान में झांको ज़रा,
नेता बनने की होड़ में खो रहे हैं दिशा।