हिमालय साहित्य संस्कृति मंच और ओजस सेंटर फार आर्ट एंड लीडरशिप डैवलपमेंट द्वारा राष्ट्रीय पुस्तक मेला शिमला के अवसर पर गेयटी सभागार में ‘हिन्दी साहित्य और अनुवाद हिमाचल का हिंदी लेखन के विशेष संदर्भ में’ विषय पर प्रो. उषा बंदे के सानिध्य में और प्रो. मीनाक्षी एफ.पाल की अध्यक्षता में एक साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षा प्रो. मीनाक्षी एफ पाल ने कहा कि “अनुवाद मेरा व्यवसाय नहीं, जो कविता, कहानी मन को प्रिय लगती है, उसी का अनुवाद कर पाती हूं। उपन्यास का अनुवाद करना अत्यंत कठिन है। इसके लिए अधिक समय और श्रम की जरूरत रहती है। हिमाचल के लोकप्रिय कथाकार एस आर हरनोट की कहानी मेरे मन को छूती हैं, इसलिए मुझे कोई और नहीं दिखता। अनुवादक को अनुवाद में अपनी सृजनशीलता, संवेदनाओं को ऊपर से थोपने की कोशिश से बचना चाहिए। अनुवादक को मूल से भटकना नहीं होता। जब तक कविता, कहानी, उपन्यास की विषयवस्तु, कथानक, चरित्र चित्रण में घुसना नहीं होता, तब तक अच्छा अनुवाद नहीं बन पाता। क्योंकि हर अनुवादक को शब्दों की आत्मा को पकड़ना पड़ता है। इसके लिए मूल को पढ़ना और आत्मसात् करना जरूरी है। उसमें डूबना, समझना, लेखकीय संवेदनाओं को बारीकी से अनुभव करना जरूरी है, तभी मूल लेखक के अनुसार अनुवाद हो सकता है।”
उन्होंने आगे कहा, “वस्तुत: लेखन तथा अनुवाद के लिए एक अनुभवी और कठोर संपादक की जरूरत रहती है, जो उस रचना को तराशता है। अगर मूल के कुछ तथ्य गलत प्रतीत होने वाले या अटपटे भी हैं तो अनुवादक को उसे बदलने का प्रयास नहीं करना चाहिए। क्योंकि वह अनुवादक है, लेखक नहीं। भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद कार्य हो रहा है और अनुवाद के माध्यम से बहुत अच्छी पुस्तकें पढ़ने को मिल रही हैं। इसलिए अनुवाद भाषा की दीवारों को तोड़ता है भले ही विचार कोई भी हो, उसे सम्मान मिलना चाहिए उसे स्वीकारना या स्वीकार न करना अपने विवेक पर निर्भर करता है। जो लेखक, प्रकाशक और अनुवादक किसी भी भाषा एवं विधा में अच्छा कार्य कर रहे हैं, उनका जरूर सम्मान होना चाहिए।”
हिंदी साहित्य और अनुवाद पर आधारित इस संगोष्ठी में प्रोफेसर उषा बंदे ने कहा कि, “अनुवादक को अनुवाद के लिए चुनी जाने वाली दोनों भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए। एक, जिसमें मूल पुस्तक है और दूसरा, जिस भाषा में पुस्तक का अनुवाद किया जाना है। अनुवाद के लिए केवल शब्दजाल का सहारा न लेकर मूल लिखित की संप्रेषणीयता को महत्व दिया जाना चाहिए। अनुवाद के लिए हिमाचल में ऐसे शब्दकोषों की जरूरत है जिनके माध्यम से हिमाचल की संस्कृति को जाना समझा जा सके। भारतीय भाषाओं में समानता है, अतः अनुवाद सरल है। विदेशी भाषाओं के शब्दों और संस्कृति में भिन्नता होने के कारण अनुवाद में कठिनता रहती है।”
कार्यक्रम के संयोजक एवं हिमालय मंच के अध्यक्ष एस.आर. हरनोट ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में साहित्य की सभी विधाओं में हिंदी में उत्कृष्ट साहित्य लिखा जा रहा है, और कुछ चुनिंदा पुस्तकों के अनुवाद भी प्रकाशित हो रहे हैं। कार्यक्रम के समन्वयक पंकज दर्शी ने संगोष्ठी के प्रारंभ में अपने द्वारा किए गए अनुवाद कार्य के बारे में बताया।
परिचर्चा में प्रतिभागी अधिकांश लेखकों ने बुकर सम्मान से पुरस्कृत पुस्तक रेत समाधि के मूल हिंदी संस्करण की अपेक्षा अंग्रेजी अनुवाद को बेहतर बताया है। संवाद एवं परिचर्चा में गंगा राम राजी, डा. देवेन्द्र कुमार गुप्ता, डा कर्म सिंह, त्रिलोक मेहरा, हितेन्द्र शर्मा, मुरारी शर्मा, कृष्ण चंद्र महादेविया, संदीप शर्मा, पवन चौहान, ओमप्रकाश शर्मा, दीप्ति सारस्वत, कल्पना गांंगटा आदि उपस्थित विद्वानों ने हिमाचल प्रदेश के हिंदी साहित्य के संदर्भ में अपने विचार प्रकट किए।
मंच संचालन जगदीश बाली ने किया। कार्यक्रम बेहद सफल रहा, कुछ विद्वानों का मत था कि अंग्रेजी आदि विदेशी भाषाओं में हिंदी के साहित्य का अनुवाद करने की बजाय मराठी, मलयालम, तमिल, तेलुगू आदि दक्षिण भारतीय भाषाओं को अधिमान दिया जाना चाहिए।
Respected Prof. Usha Bande
Happy to see all pics and read the views expressed on translation. Appreciable endeavours. Felt elated to see your sweet smile which took me back to my student hood. Thank you for sharing.
Regards
Seema Pathak