लता हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के एक छोटे से गांव में सातवीं कक्षा की छात्रा थी| उसका स्कूल केवल आठवीं कक्षा तक था| एक बार उसे शहर के स्कूल में जाने का मौका मिला, वहां प्रार्थना के समय उसने देखा कि उस स्कूल के बच्चे म्यूजिकल बैंड की मस्त धुनों पर प्रार्थना कर रहे हैं| वापिस आकर उसने यह बात अपने स्कूल के पी.टी.आई. सर (शरीरिक शिक्षक) से की, और पूछा कि उनके स्कूल में बैंड क्यों नहीं है? उन्होंने बताया कि उनके स्कूल के पास इतने पैसे नहीं है कि वह स्वयं का बैंड खरीद सकें| लता निराश हो गई, मगर पी.टी.आई. जी काफी समझदार व्यक्ति थे| उन्होंने बच्चों से कहा कि यदि वे थोड़ी सी मेहनत करने को तैयार हों, तो वे भी स्कूल के लिए बैंड खरीद सकते हैं|
बच्चों से श्रम का आश्वासन पाकर उन्होंने प्रधानाचार्य जी से बात की तथा बच्चों के माता-पिता को भी विश्वास में लिया| अगले ही दिन स्कूल की बेकार भूमि के एक टुकड़े को खेती के लिए तैयार करना प्रारम्भ कर दिया| कुछ ही रोज़ में बच्चों ने पी.टी.आई. सर की मदद से उस भूमि पर कुछ हरी सब्जियां उगानी शुरू कर दी| बच्चों ने खूब मेहनत की, समय-समय पर सब्जियों के पौधों को खाद-पानी दिया, उन्हें धूप-बारिश और आवारा पशुओं से बचाया|
आखिर बच्चों की मेहनत रंग लाई| खूब सब्जियां हुई| उन्हें इन सब्जियों को बेचने में ज़रा सी भी कठिनाई नहीं हुई, बल्कि स्थानीय दुकानदार तथा अभिभावक स्वयं स्कूल आकर सब्जियों की खरीदारी करने लगे| वास्तव में वे सब इस पुण्य कार्य में बच्चों की सहायता करना चाहते थे| वर्ष के अंत तक स्कूल के पास अपना म्यूजिकल बैंड था, जो हर सुबह प्रार्थना के समय जोशीली आवाज़ में बजते हुए सामूहिक श्रम का संदेश देने लगा था|