August 1, 2025

चुनाव का महाकुंभ : उमा ठाकुर

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चुनाव का महाकुंभ हर उस मतदाता को एक मौका देता है जो अपने मताधिकार का उपयोग कर लोकतंत्र की मजबूती को सुनिश्चित बनाता है। इस बात में कोई संदेह नहीे कि यह मतदाता को अपने प्रतिनिधि के दायित्वों की पूर्ति की समीक्षा और अपेक्षाओं का आधार भी उपलब्ध करवाता है। प्रजातंत्र में मतदाता को मिला यह अधिकार मतदाताओं को सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को चुस्त दुरूरत बनाने का एक स्वर्णिम अवसर प्रदान करता है। जिस प्रकार धार्मिक दृष्टि से दान का महत्व माना है, उसी प्रकार मतदान महत्व समझकर आम जनता निडर, निष्पक्ष, ईमानदार, देश भक्ति से ओत-प्रोत कर्तव्यनिष्ठ प्रत्याशी का चुनाव कर सकती है। वर्ष 1952 में देश के पहले आम चुनाव के समय मतदाताओं की संख्या 17.06 करोड़ थी, जबकि वर्ष 2014 में मतदाताओं की कुल संख्या 81.4 करोड़ हो गई।

युवा शक्ति समाज का आईना है। युवा सोच और युवा जोश समाज की धारा बदल सकते है, लेकिन युवा वर्ग का मतदान के प्रति अधिक रुझान न दिखाना कई प्रश्नचिन्ह लगाता हैं। व्यवस्था के प्रति आक्रोश नौकरी न मिलने की हताशा और स्वरोजगार के नाम ठगा सा महसूस करना इसके कुछ मुख्य कारण माने जा सकते हैं। युवा को दोष देने ेसे पहले हम सभी को उन्हें मतदान का महत्व समझाना होगा और उनके मन में उठ रहें सवालों का समाधान ढूंढना होगा। वोट न डालना किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। मेरे एक वोट न डालने से क्या फर्क पड़ जाएगा, ऐसी सोच को हमें बदलना होगा। प्रजातंत्र में मिले इस वोट के अधिकार का हमें जरूर प्रयोग करना चाहिए । फेसबुक गुगल, व्हाटस एैप की दुनिया से एक दिन के लिए बाहर निकल युवा वर्ग को वोट डालकर कर युवाशक्ति को देश के निर्माण के लिए प्रयोग चाहिए । दूसरी ओर अगर हम महिलाओं की बात करें तो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में चुनाव में उनकी 49 प्रतिशत भागीदारी हैै,तो फिर क्या कारण हो सकता है कि प्रत्येक चुनाव में पुरूषों के मुकाबले महिलाओं की मतदान प्रतिशतता कम होती है। क्या यह उनकी मानसिकता का दोष है, शिक्षा की कमी है या फिर वह अपने अधिकारों के प्रति सजग नहीं है। शायद ऐसा बिलकुल नहीं है। मेरा मानना है कि आज की नारी समाज के निर्माण में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर रही है और हर क्षेत्र के पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ रही हैैं।

महिलाओं को सामाजिक व्यवस्था से ज्यादा कुछ चाहिए, बस चाहिए तो सिर्फ परिवार की बुनियादी सुविधाएं, सुरक्षा, वैचारिक सुरक्षा और सम्मानपूर्ण जीवन। यदि जीवन की मूलभूत सुविधाएं उन्हें मिल जाएं तो वे जरूर मतदान केंद्र पर जाकर अपने मत का प्रयोग करेंगी। मतदान के प्रति युवा, महिलाओं और समाज के आम लोगों को जागरूकता शिविर, संगोष्ठी व सेमिनार का आयोजन किया जाता है। प्रिंट, इलेक्टॉनिक और सोशल मीडिया भी चुनाव अभियान में अहम भूमिका निभा रहे हैं। मतदान के लिए कानून बनाने की बात की आती है। यदि कोई व्यक्ति मतदान नहीं करता तो उसे मूलभूत सुविधाएं भी नहीं दी जानी चाहिएं और आने वाले चुनाव में उस मत का प्रयोग न करने दिया जाए, जैसे सुझाव दिए जाते हैं, ये सभी सुझाव काफी हद तक ठीक है। मेरा यह मानना है कि मतदान के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि ऐसी नीति बने जो आम नागरिक की मूलभूत सुविधाओं को पूरा करे, ताकि वह बेझिझक मतदान कर सके। जो व्यक्ति मत का उपयोग नहीं करता, उसे बाद में किसी चौराहे पर सरकार को नीतियों पर दोषरोपण करने का भी कोई हक नहीं। प्रजातंत्र में मतदान के अधिकार के महत्व को हम सभी को समझना चाहिए, और अपने बहुमूल्य मत का प्रयोग कर समाज व राष्ट्र के निर्माण में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी, तभी देश का चहुंमुखी विकास होगा।

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