November 1, 2024

पिता जी का कड़ाह-प्रेम: रणजोध सिंह

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मैचिंग बटन: प्रो. रणजोध सिंह
रणजोध सिंह

शिवांग ने अपना पुराना पुश्तैनी घर तुड़वा कर आधुनिक शैली के भव्य-भवन में परिवर्तित कर लिया l पुराने घर में वर्षो से संभाल कर रखा हुआ सारा सामान उसने रद्दी-वाले के हवाले कर दिया l वास्तव में शिवांग का अनुभव ही कुछ ऐसा था कि घर में रखी हुई कुछ वस्तुओं का प्रयोग वर्षो से नहीं हुआ था l लेकिन उसके पिता जी शिवांग के इस निर्णय से बहुत दुखी थे क्योंकि उनका यह दृड विश्वास था कि घर में रखी हुई प्रत्येक वस्तु कभी ना कभी काम आ ही जाती है l वैसे भी उन्होंने बहुत प्यार व यत्न से इन वस्तुओं को इकट्ठा किया था तथा प्रत्येक वस्तु के साथ उनका इतना गहरा लगाव था कि वह वस्तु उन्होंने कब ली, कैसे ली और क्यों ली आदि प्रश्नों के बारे में विस्तारपूर्वक बता सकते थे l

परन्तु शिवांग किसी भी अप्रसंगिग वस्तु को नये भवन में स्थान नहीं देना चहाता था l जब वह एक लोहे का बना हुआ बड़ा सा कड़ाहे को कवाड़-वाले को देने लगा तो पिता जी अत्यंत भावुक हो गए और लगभग प्रार्थना की मुद्रा में उस कड़ाहे को कवाड़-वाले के सुपुर्द न करने की याचना करने लगे l शिवांग मन ही मन अपने पिता श्री के इस कड़ाह-प्रेम पर बड़ा दुखी हुआ परन्तु न चाहते हुए भी वह उनके आग्रह को ठुकरा न सका l कुछ दिन तो नये भवन ने उसको आकर्षित किया मगर फिर वह दुनिया कि भागम-भाग में कुछ इस कद्र उलझा कि उसने न तो नये भवन की कोई सुध ली और न ही उसका कोई संवाद पिता जी से हो सका l कुछ दिन बाद उसे जिज्ञासा हुई कि उसके पिता जी कड़ाहे का क्या उपयोग कर रहे हैं? उसने देखा कि उसके पिता जी ने वह कड़ाह भवन के मेन-गेट कि बगल में रख दिया है जो सदैव पानी से भरा रहता है l

उसमे पानी भरने का काम वह स्वयं करते थे l उसने देखा कभी कोई आवारा गाय, कभी कोई वैल, कभी कोई भैंस तो कभी कोई अन्य पशु आते और कड़ाहे का पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते और तृप्त होकर चले जाते l चूंकि गर्मियों के दिन थे इसलिए पक्षियों के लिए भी वह कड़ाह मन पसंद शरण-स्थल बन गया था l कभी वे फुदकते हुए उसके बगीचे के फुलों पर बैठ जाते तो कभी पानी के कड़ाहे में गोता लगाते l

कभी अपनी नन्ही से चोंच पानी में डाल कर अपनी प्यास बुझाते तो कभी आन्ददित हो कर अपनी अपनी बोली में ख़ुशी के गीत गाते l और पास ही पिता जी आराम-कुर्सी पर बैठ इन पशु-पक्षियों को देखकर आत्म विभोर हुए जातेl ये सब देखकर शिवांक ने तुरन्त एक फैंसला लिया l उसने अपने भवन कि चार-दिवारी से सटती हुई पानी की बड़ी से टंकी बनवाई जिसमे पीने का पानी ठण्डा रह सके तथा उसमे पानी का एक नल भी लगवाया जो उसके घर की चार-दिवारी के बाहर खुलता थी l अब पशु-पक्षियों के साथ साथ स्कूल के बच्चे भी उसके घर के पास से गुजरते हुए अपनी प्यास बुझाने लगे l एकाएक उसका इंट-पत्थर का भवन जीता-जागता घर बन गया l

पिता जी का कड़ाह- प्यार (पहाड़ी संस्करण) : जीवन धीमान

शिवांगे अपणा पराणा बजुरगां रा घर तड़वाई ने नंवे तरीके ने बांका घर बनाई लेआl पराणे घरा ची सांला ते संभाली ने रखी रा सारा समान रदी वाले जो देई तयाl सच्ची ची शीवांगा रा तजरवा ही एडा था कि घरा ची रखी रियां कई चीजां कइयां सालां ते किसी कमां नी औदियाँ, पर उसरे पिता जी शिवांगा रे इस फैसले ते बड़े दुखी थे l से सोचां थे कि घरा ची रखी रा समान कदी ना कदी कमा आई जांl तिनें से समान बडे पयारा कने मेहनता ने कठा कितिरा था, हर चीजा ने तीना रा बड़ा भारी प्यार था, कि से चीज कदीं लेई, कियां लेई, कने कां लेई, सभी रे बारे ची सब कुछ दसीं सकां थे l पर शिवांग कमां नी औणे वालीया चीजां जो नवें घरा ची नीं रखणा चां था l

तैली जे से लोहे रिया बडीआ कडाईया जो कवाडीये जो देणे लगया, तैली पिता जी बडे भावुक हुई गे कने बोलणे लगे इहा कडाईया जो कवाडी जो ना दे l शिवांग मनां ची अपणे पिता जी रे इहा कडाईया रे पयारा पर बड़ा दुखी होयाl पर नां चांदे भी तीनां रा कैणा नी मोडी सकया l कुछ दिन तां तीसो नवें घरा रा चाओ रेहा फेरी से दुनियाँ रिआ भागा-दौड़ा ची एडा फसीगया कि ना नवें घरा रा कोई खयाल ना ही पिता जी ने कोई गल-बात l कुछ दिनां बाद तिसो लगया कि पिता जी ईहा कडाईया रा क्या करी करां? तिने देख्या कि पिता जी ने से कडाई घरा रे मेन गेटा रे कोणे रखीरी, से हमेशा पाणी ने भरी री रहीँ l तिहा ची से पाणी अपू ही भरा था l तिने देख्या कदी कोई आवारा गा, कदी कोई बलद , कदी कोई मैस तां कदी कोई होर माल (पशु) औंये कने कडाईया रा पाणी पी कने रजी ने चली जाएँ l

उस टैम गर्मियां रे दिन थे, पक्षियाँ री भी से कडाई मन पसंद जगहा बणी गेई री थीl कदी से उचलां तिसरे बागा रे फूलां पर बैठा थे, तां कदी कडाईया ची डूबकी लगां थे, कदी अपणी छोटी चूंजा जो पाणी ची पाईने अपणी धरया भुजाँ थे, तां कदी खुश हुई ने अपणीया बोलीया ची खुशिया रे गाणे गां थे l कने सौगी पिता जी रामा-कुरसी पर बैठी ने ईना पशु- पक्शीयां जो देखी ने खुश हुई जां थे l ये सब देखी ने शिवांगे एकदम एक फैसला लेया l तिने अपणे घरा रीया चार-दीवारीया ने सौगी पाणी री बड़ी टांकी बनवाई जिस ची पीणे रा पाणी ठंडा रेही सको, कने तिसची पाणी रा एक नलका भी लगवाया, से तिसरे घरा री चार-द्वारीया रे बार खुलां था l हुण पशु-पक्षीयां सौगी स्कूला रे बच्चे भी तिसरे घरा बाहरा ते लंगां थे, से भी अपणी धरया बझवाणे लगेl एकदम तिसरा इटां-प्थरां रा मकान जीता-जागता घर बणी गया l

पिता जी का कड़ाह-प्रेम: रणजोध सिंह

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