अयोध्या में प्रभु श्री राम जी की की प्रतिमा की प्रतिष्ठा के आयोजन के उपलक्ष में देश भर में गीत,संगीत,पूजा पाठ व भजनों का आयोजन जगह जगह पिछले दिनों (कई जगह )हो रहा था। इधर हमारे यहां भी प्रभु राम जी का यह कार्यक्रम सुचारू रूप से इतनी धुंध व ठंड के बावजूद जारी रहा। मूर्ति प्रतिष्ठा वाले दिन अर्थात 22/01/2024को हवन आदि के आयोजन के साथ ही साथ लंगर का आयाजन भी किया गया। पंडाल सजा हुआ था,बैठने के लिए कुर्सियां लगीं थी और ठंड व धुंध होने के कारण चाय व काफी का भी सभी लिए प्रबंध था।
मंच पर लगी बड़ी एल ई डी सक्रीन पर अयोध्या से लाइव कार्यक्रम आ रहा था। कुछ लोग कुर्सियों पर बैठे देख रहे थे व बहुत से लोग मंच के पीछे चल रहे लंगर के लिए पंक्ति में खड़े अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। इसके साथ ही साथ कुछ अगुवे (कार्यकर्ता/आयोजक सदस्य)बीच बीच में आ आ कर अपने चेहतों व वी आई पी को उठा उठा कर पलटे दे रहे थे और पंक्ति में खड़े लोग बेचारे अपनी बारी का इंतजार बड़ी सबर से प्रभु श्री राम जी के ,राम नाम के साथ करते रहे।
उधर पास ही एक दूसरा कायकर्ता,जिसके पास मिट्टी के दियों की बोरी पड़ी थी ,से अपनी जान पहचान की महिलाओं को 5,5 दिए पकड़ा रहा था। किसी किसी को 10,10 दिए भी दे रहा था,शायद वह महिलाएं अपनी साथी महिला के लिए भी ले रहीं थीं। मैं व कुछ अन्य यह सब देख रहे थे। लेकिन उस व्यक्ति ने न मुझे न ही किसी अन्य अपरिचित को दिए देने का प्रयास किया। वहीं खड़ा एक अन्य व्यक्ति भी उस दिए देने वाले को देखा रहा था(शायद प्रतिक्षा में ही था)।
मैंने उसे कहा आप भी ले लो ये तो सब के लिए हैं,उसनेमेरे कहने पर झिजकते झिजकते अपना हाथ दियों के लिए आगे कर दिया ,तो दिए देने वाले ने उसे भी 5 दिए पकड़ा दिए और साथ में खड़ी उसकी पत्नी देखती ही रही। इतने में ही उस दिए बांटने वाले के पास एक बंडल ध्वजों का भी पहुंच गया और उन्हें फिर उसी तरह से अपने परिचितों में किसी को एक किसी को दो दो करके, व किसी को बड़ा व किसी को छोटे वाला देने लगा।
अब की बार मैंने भी अपना हाथ आगे कर दिया तो मुझे भी एक छोटे वाला ध्वज उसने पकड़ा दिया।प्रभु श्री राम जी की सुंदर छवि वाला वह ध्वज बहुत ही सुन्दर था और मैंने उसे नमन के साथ माथे से लगा लिया।इतने में ही एक तेज तरार महिला उस दिए वाले के पास आई और दिए लेकर कहने लगी,अरे भाई तेल की बोतल कहां है वह नहीं दे रहे! उस दिए वाले ने दूसरे कार्यकर्ता की ओर इशारा करके महिला को उसके पास भेज दिया।
वह तेजतरार महिला भी शायद उन्हीं की कोई कुशल कार्यकर्ता ही लग रही थी।महिला उस कार्यकर्ता से कहने लगी, तेल की बोतलें भी तो आईं थीं दे क्यों नहीं रहे! कार्यकर्ता अपने आस पास लंगर की खड़ी भीड़ को देख कर ,उस महिला को कुछ कहते कहते भीड़ से बाहर ले गया और देखते ही देखते, फिर न ही तो वह महिला ही कहीं दिखाई दी और न ही वह कार्यकर्ता! बड़े बड़े आयोजनों में अक्सर ऐसा चलता ही रहता है। ऐसे आयोजनों का आयोजन कोई आसान काम नहीं होता उंगलियां उठती ही हैं । इसी मध्य मुझे उस दोहे की पंक्तियां याद आ गईं राम नाम की लूट है,लूट सके सो लूट। पल में परले आए गी, जब प्राण जाएं गे छूट!