डॉ. कमल के. प्यासा
आज हम छाती तान कर और सिर उठा कर बड़े ही गौरवान्वित हो कर अपने आप को स्वतंत्र भारत के नागरिक होने का दम भरते हैं, लेकिन कभी आप ने यह भी सोचा है कि यह आजादी हमें कैसे मिली है! बहुत कुर्बानियां दी हैं हमारे देश के बहादुर नौजवानों ने। कितने ही हंसते हंसते शहीद हो गए, कितनों ने अपनी छाती पर गोलियां खाई और न जाने कितने फांसी पर लटक गए? क्या बीती होगी हमारे उन तमाम शहीदों के घर परिवार वालों पर? बड़ा दुख होता है, और आज हम आजादी का ये जशन उनकी बदौलत ही तो मना रहे हैं।
आज से ठीक 76 वर्ष पूर्व,15 अगस्त 1947 के दिन हमारा देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ था। मुक्त क्या देश के तीन टुकड़े करके और इधर सांप्रदायिक दंगे फसादों में हमें धकेल कर, चालबाज अंग्रेज अंदर ही अंदर खुश हो रहे थे। देश पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश), पश्चिमी पाकिस्तान व भारत में बांट दिया गया था।विस्थापितों के आने जाने से न जाने कितने घर परिवार उजड़ गए, कितने बिछड़ गए और कितने खून खराबे में मारे गए! बस ये कुछ थोड़ी सी जानकारी (विस्थापन व 15 अगस्त की आजादी की) जो मुझे मेरे माता पिता, दादा दादी व नानी नाना से मिली थी बता दी। क्योंकि मैं भी तो उस समय अभी गोदी में ही था। (विस्थापन का दर्द फिर कभी आपके समक्ष प्रस्तुत करूंगा किसी अन्य शीर्षक से)।
हां, इधर अखंड भारत का मानचित्र देखने पर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि कभी हमारा देश भारत इतना विशाल व दूर दूर तक अपनी सीमाएं फैलाए था। इसमें अफगानिस्तान, बंगलादेश, श्रीलंका, बर्मा, थाईलैंड, नेपाल, भूटान, तिब्बत, जावा, सुमात्रा, मालदीव व कंबोडिया आदि शामिल थे। और आज अपने सिकुड़ते हुवे देश के क्षेत्रफल को देख कर हैरानी होती है। इतिहास के पन्नों को पलटने से पता चलता है कि पिछले 2500 वर्षों में देश पर विदेशी हमलों के परिणाम स्वरूप इसका 24 बार विभाजन हो चुका है, जिनमें 1000 ईसवी में महमूद गजवानी का आक्रमण व लूट, 1191 ई. की मुहम्मद गौरी की लूट, 1400 ई. की मंगोलों (तैमूर का आक्रमण) फिर 1526 ई. में बाबर के आक्रमण के पश्चात यहीं मुगल साम्राज्य की स्थापना करना से लेकर आगे 1700 ई. में यहां अंग्रेजों का आना और अपना साम्राज्य फैलाना शामिल है। इस प्रकार यूनानी विदेशियों व मुगलों के आक्रमण व अंग्रेजों, डचों तथा पुर्तगालियों की लूटपाट से देश को न जाने कितनी बार विभाजन का शिकार होना पड़ा।
बार-बार प्रताड़ित होने के बावजूद भी भारतीयों का मनोबल कभी भी डगमगाया नहीं बल्कि अपनी आजादी के लिए हमेशा लड़ते ही रहे। इन्हीं लड़ाइयों में प्रमुख आ जाती है 1857 ई. की प्रसिद्ध विद्रोह की लड़ाई जो कि मेरठ से शुरू हो कर सारे देश में फ़ैल गई थी। इसके पश्चात किसानों द्वारा कई विद्रोह चलाए गए जिनमें नील विद्रोह 1859 -1860 ई. में बंगाल के किसानों द्वारा चलाया गया था। 13 अप्रैल 1919 ई. को अमृतसर में जलियां वाला कांड होने के पश्चात सारे देश में भारी रोष व विद्रोह की लहर फैल गई।
प्रथम फरवरी 1922 ई. चौरा-चौरी कांड के फलस्वरूप जब पुलिस के एक दरोगा द्वारा क्रांतिकारियों की पिटाई की गई तो, लोग भड़क उठे और उन्होंने पुलिस वालों पर हमला बोल दिया, परिणाम स्वरूप इसमें 260 लोग मारे गए बाद में इसमें 23 पुलिस वालों को भी मार दिया गया था। अमृतसर के जालियां वाला कांड के विरुद्ध 1920 ई. से 1922 ई. तक असहयोग आंदोलन चलाया गया। 1929 ई. में पूर्ण स्वतंत्रता की मांग रखी गई। ऐसे ही फिर 1930 ई. में सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाया गया। 12 मार्च 1930 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में नमक के लिए सत्यग्रह करते हुए डंडी यात्रा शुरू की गई जो की कई दिनों तक चलती रही। आगे 1942 ई. में नेता जी सुभाष चन्द्र बोस द्वारा आजाद हिंद फौज का गठन किया गया और आजादी की गतिविधियां देश से बाहर भी की जाने लगी। 8 अगस्त 1942 ई. को भारत छोड़ो आन्दोलन को तेज कर दिया गया। आखिर सभी के कठिन प्रयासों व अमूल्य बलिदानों ने रंग लाया और 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया। 1950-51 ई. की गणना के अनुसार (खून खराबे के बावजूद) इधर से 72 लाख 26000 मुसलमान पाकिस्तान को तथा उधर से इधर 72 लाख 49000 हिंदू व सिख विस्थापित होकर स्वतंत्र भारत पहुंचे थे। तभी से इस दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में (15 अगस्त को) बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है।
15 अगस्त की पूर्व संध्या को देश के राष्ट्रपति का संदेश देश वासियों के नाम से प्रसारित किया जाता है। अगले दिन अर्थात 15 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री का संदेश देशवासियों के लिए लाल किले से दिया जाता है। प्रधान मंत्री द्वारा ही झंडा फहरा कर, 21 तोपों के साथ सलामी दी जाती है, सांस्कृतिक और रंगारंग कार्यकर्मों के पश्चात राष्ट्र गान होता है। इनके साथ ही साथ जगह-जगह रेडियो टेलीविजन आदि पर देश भक्ति के कार्यक्रम व गीतों का प्रसारण किया जाता है।
देश के सभी राज्यों के मुख्यालयों में मुख्यमंत्रियों द्वारा व शहरों कस्बों में प्रशासनिक अधिकारियों व गणमान्य नागरिकों द्वारा झंडे की जी रसम के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों व परेड आदि का आयोजन किया जाता है। सभी सरकारी संस्थानों में भी झंडे की रसम अदा की जाती है। सभी सरकारी व मुख्य स्थलों को रोशनियों से सजाया जाता है और कहीं कहीं आतिशबाजी की भी खूब झलक देखने को मिल जाती है। भारत हमारा अपना देश है, हम इसी स्वतंत्र देश के नागरिक हैं, तो फिर क्यों न इस दिन को हम खूब जोश से मिल कर मनाएं।