पत्थरों के इस शहर में,
मिट्टी गारा धूल फांकते फांकते
भूख इतनी बड़ी,
हरियाली गुल हो गई,
जंगल के जंगल निगल गया आदमी
पत्थरों के कारोबार में,
पत्थरों को तोड़ते फोड़ते
कहीं तराशते पूजते ,
खुद पत्थर हो गया आदमी
पत्थरों की चिकनाहट,
रंग चमक दमक के आगे
आस्था लग्न में सिर झुकाए (बेटे के इंतजार में)
पत्थराई आंखों से ताकता (देखता) ,
ही रहा गया बेबस आदमी