जीवन के हर छोर से
हर मोड़ से
हर दौड़ में
भाग रहा है
आदमी !
हर बात में
किसी भी हालत में
मात पे मात दिए जा रहा है
खुद आदमी को
आदमी !
जीवन के हर छोर से
हर मोड़ से
हर दौड़ में
भाग रहा है
आदमी !
भूख नहीं
भूखा भी नहीं
भर पेट है ,लेकिन
फिर भी मुंह की
मुंह से छीने जा रहा है
आदमी !
जीवन के हर छोर से
हर मोड़ से
हर दौड़ में
भाग रहा है
आदमी !
इधर से तो
कुछ उधर से
सब कुछ निगल के
फिर भी लार टपक रहा है
आदमी !
जीवन के हर छोर से
हर मोड़ से
हर दौड़ में
भाग रहा है
आदमी !