
हमारी सोने की चिड़िया लूटी,
हमें अप्रैल फूल बना गए।
चैत्र से जो वर्ष शुरू होता था,
जनवरी से मनाना सिखा गए॥
अपनी संस्कृति को भूलकर,
कैसे उनके झांसे में आ गए?
देशी महीनों के नाम भुला कर,
जनवरी-दिसंबर में रम गए॥
हम भी पाश्चात्य रंग में रंगे,
भूल गए अपना स्वदेशी।
धन-दौलत के पीछे भागे,
भारत छोड़ बने विदेशी॥
बसंत का वैभव फैला है,
मधुमास ने ली अंगड़ाई।
कलियाँ खिलतीं, कोपलें फूटतीं,
प्रकृति ने सुषमा बरसाई॥
चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा को,
ब्रह्मा ने सृष्टि रचाई।
विष्णु, महेश ने धर्म बचाया,
मानवता की राह दिखाई॥
नवदीप जलें, हर्ष मनाएं,
संस्कृति अपनी सजग बचाएं।
मिल-जुलकर अब स्वदेशी अपनाएं,
नव संवत्सर धूमधाम मनाएं॥
सनातन धर्म की शान बचाएं,
शिक्षा, संस्कारों को आगे बढ़ाएं।
चैत्र से नव वर्ष मनाने का,
आज सभी संग संकल्प उठाएं॥