डॉ कमल के प्यासा

एकादशी का व्रत एक आम जाना माना व्रत है।लेकिन आंवला की एकादशी जो फागुन मास के शुक्ल पक्ष में आती है इसका अपना विशेष स्थान है। वैसे तो वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं, यदि अधिमास वाला वर्ष हो तो इनकी संख्या 26 हो जाती है। एकादशी वाले दिन चावल नहीं खाए जाते क्योंकि इसके पीछे भी कई एक तथ्य छिपे हैं।जिनका सीधा संबंध चंद्रमा से रहता है।
चावल इस दिन इस लिए वर्जित किए गए हैं क्योंकि इनमें पानी की मात्रा अधिक रहती है। फिर चावल के सेवन से शरीर में भी पानी की मात्रा अधिक हो जाती है। फलस्वरूप अधिक पानी से चन्द्रमा का प्रभाव भी बढ़ जाता है, जिससे मन विचलित होने से चंचलता पैदा होने लगती है और मानसिक व हृदय रोग का डर बन जाता है।इसके साथ ही साथ चावल को सात्विक भी नहीं माना जाता।
पौराणिक कथाओं से पता चलता है भगवान शिव इसी दिन काशी में पहुंच कर यहां के काशी विश्वनाथ मंदिर में रंग गुलाल के साथ खूब होली खेले थे, तभी से इस एकादशी को रंग भरी एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं। एकादशियों में यही एक एकादशी है जिसमें भगवान विष्णु व आमले के पेड़ के साथ ही साथ देव शिव पार्वती का भी पूजन किया जाता है।इस आमलकी एकादशी में व्रत का भी भारी महत्व बताया जाता है।
कहते हैं कि इस व्रत के करने से सभी तरह के पाप कट जाते हैं, पारिवारिक सुख शांति प्राप्त होती है और एक हजार गायों के दान का फल प्राप्त होता है। पद्म पुराण की कथा के अनुसार बताया जाता है कि किसी समय वैदिश नगर में चैतरथ नामक चंद्रवंशी राजा राज्य करता था।वह बड़ा ही नेक व धार्मिक प्रवृति का विष्णु भक्त शासक था।
उसने अपनी समस्त प्रजा के साथ (एक मंदिर में भगवान विष्णु के) पूजा पाठ व व्रत का आयोजन आमला की एकादशी के दिन कर रखा था, जिसमें एक भूखा शिकारी भी रात भर भजन कीर्तन व जागरण में बैठा रहा। सुबह होने पर सभी अपने अपने घर लौट गए और वह शिकारी भी वैसे ही चला गया।
कुछ दिनों के पश्चात शिकारी की मृत्यु हो गई और उसका अगला जन्म राजा विदूरथ के यहां वसुरथ नामक बालक के रूप में हो गया। आगे चल कर बालक वसुरथ बड़ा ही होनहार, सर्वगुण संपन्न, विष्णु भक्त और प्रतापी राजा बना, जिसके अधीन कई एक गांव भी थे।एक दिन वसुरथ जंगल की ओर शिकार के लिए निकला और रास्ते से भटक जाने व थकावट के कारण वह वहीं एक वृक्ष के नीचे आराम करने लगा और नीद आने पर वहीं सो गया।
तभी उधर कुछ चोर लुटेरे पहुंच गए और उन्होंने राजा को मारने व लूटने के लिए अपनी मारधाड़ शुरू कर दी, लेकिन उनके द्वारा राजा को छूते ही एक भयानक तेज तरार शक्ति रूपी देवी, राजा के शरीर प्रकट हुई और उसने उन सभी लुटेरों को मार गिराया।थोड़ी ही देर के पश्चात जब राजा वसुरथ उठा तो उसने अपने इधर उधर मरे उन लोगों को देख तो हैरान हो गया और सोचने लगा, “आखिर यह सब क्या है!”।
तभी आकाशवाणी से उसे पता चलता है कि उसकी भगवान विष्णु के प्रति आस्था व आमला एकादशी के पुण्य प्रताप के फलस्वरूप ही भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की है।इस तरह राजा वसुरथ भगवान विष्णु का ध्यान करते हुवे वापिस अपने महल लौट जाता है।
पद्म पुराण से ही पता चलता है कि भगवान विष्णु के मुख से ही छोटा सा अंश (चंद्रमा की तरह का ) भूमि पर गिर कर आंवले के पेड़ के रूप में प्रकट हुआ था। इसी लिए आंवले के पेड़,आंवले व भगवान विष्णु की पूजा इस दिन की जाती है।साथ ही साथ भगवान शिव पार्वती की भी पूजा की जाती है।
इस तरह आंवला एकादशी पूजन व व्रत से मोक्ष की प्राप्ति, पारिवारिक सुख शांति व तीर्थों के भ्रमण का फल आदि प्राप्त होते हैं।आंवले के पेड़ को इस लिए भी पवित्र व पूज्य माना जाता है,क्योंकि इसकी जड़ों में भगवान विष्णु,तने में भगवान शिव व शीर्ष में देव ब्रह्मा का वास होता है।
आंवला एकादशी के पूजा पाठ व व्रत के लिए सबसे पहले ब्रह्ममुहुर्त में स्नान करना चाहिए जिसके लिए पानी में सात बूंदें गंगा जल, चुटकी भर तिल व आवंले डालने चाहिए।पूजा के लिए दीपक, पीला चंदन व इसका तिलक, पूजा के लिए पीले फूल, भोग प्रसाद के लिए पंजीरी, फल, पंचामृत, पंचमेवा व तुलसी पते। आंवले की पूजा के लिए धूप, दीप, रोली, फूल व अक्षत आदि जरूरी होते हैं। पूजा के पश्चात आरती की जाती है। गरीबों व ब्राह्मणों के लिए भोजन तथा दान में कलश, वस्त्र व आंवला आदि दिए जाते हैं।