प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासा 108 / 6 समखेतर . मण्डी 175001 हिमाचल प्रदेश
प्रेषक : डॉ. कमल के . प्यासा

यात्रा पैदल हो, हवाई हो, जल या स्थल की हो, लेकिन इसकी उत्सुकता तो रहती ही है | यही उत्सुकता हर व्यक्ति की अपनी – अपनी रूचि पर निर्भर करती है | क्योंकि हर व्यक्ति की अपनी – अपनी मानसकिता होती है | इसलिए पसन्द का अलग होना स्वाभाविक ही है | पसन्द धार्मिक (अध्यात्मिक), ऐतिहासिक, पुरातात्विक, साहसिक, प्राकृतिक या फिर कला के विषय से जुड़ी भी हो सकती है | मन की इच्छा कैसी भी क्यों न हो, लेकिन इन सबी बातों के साथ ही साथ यात्रा के लिए बाहर जाने की उत्सुकता तो सभी में रहती है |

यही उत्सुकता ओर भी बढ़ जाती है यदि यात्रा पहली बार या थोड़ी हटकर या रोमांचक हो तो ….! ऐसी ही यात्रा के लिए हमारा आठ साथियों का दल (जिसमें दो महिलायें तथा छह पुरुष थे) अंडमान निकोबार के लिए मण्डी से 4 फरवरी 2020 को दोपहर एक बजे टैक्सी द्वारा रवाना हुआ | इस यात्रा का आयोजन “मण्डी साक्षरता एवं जन विकास समिति द्वारा (संस्थापक सदस्यों के अंडमान निकोबार के अध्ययन के लिए) किया गया था |

असंख्य द्वीपों का एक मात्र राज्य – अंडेमान निकोबार

फरवरी मॉस की ठंड के कारण सभी ने गर्म कपड़े पहन रखे थे | हम सभी खुशी – खुशी बातों में मस्त सांय चार बजे के करीब स्वारघाट पंहुच गए और हमारी टैक्सी हिलटाप रेस्टोरेंट के आगे लग गई | हिलटाप पर हलका फुलका चाय पान  करने के पश्चात हमारा आगे का सफ़र शुरू हो गया और टैक्सी चंडीगढ़ होते हुए जिरकपुर के माल डिकथालोन के आगे जा रुकी | वहां से सबने अपनी आवश्यकानुसार चप्पल, टोपी, हैट, हाफ पेंट व चश्में आदि की खरीद की फिर वहीं सामने वाले ढ़ाबे पर अपने साथ लाई कचौरियों का डिनर व चायपान किया गया | ठीक 8.30 बजे रात्रि को हमारी टैक्सी दिल्ली की ओर दौड़ने लगी |

अगली सुबह अर्थात 05-02-2020 को 3.30 पर हम अन्तर्राष्ट्रीय इन्द्रागांधी हवाई अड्डा, नई दिल्ली पहुँच गए थे | हवाई यात्रा के सफ़र का यह अवसर हम सभी के लिए लगभग प्रथम ही था | हमारे एक मित्र तो ऐसा भी कह रहे थे कि वह समुन्द्र भी पहली बार देखंगे …!! हवाई अड्डे में कहाँ …. कैसे … और किधर – किधर सामान आदि का निरीक्षण होना है …, किसी को कोई जानकारी नहीं थी | खैर मण्डी के ही एक जान पहचान के (हवाए अड्डे के कर्मचारी) श्री मुंशी राम की मदद से सब कुछ आसानी से हो गया |

सभी को चायपान करवाने के पश्चात व हमारे जाने की सारी व्यवस्था को करवा कर मुंशी राम ने हमें विश्राम स्थल पर बैठाकर विदा ली, क्योंकि विमान को तो ठीक सुबह 5.30 पर उड़ान भरनी थी | विश्राम स्थल पर बैठे अन्य सहयात्रियों से आपसी बातचीत से पता चला कि हमारे सामने बैठे दोनों पति – पत्नी भी हिमाचल चंबा के हैं | वह भी पोर्ट ब्लेयर ही जा रहे थे | इस तरह अपने हिमाचल वासियों से मिलकर सभी को खुशी हुई और काफी देर तक उनसे बातें होती रही समय का कुछ पता ही नहीं चला | सुबह के 5.25 बज चुके थे और पोर्ट ब्लेयर जाने वाला विमान लग गया था |

हम सभी अपना – अपना परिचय पत्र और टिकट दिखाकर विमान में प्रवेश कर अपनी – अपनी सीट पर बैठ गए | फिर सभी विमान में बैठे – बैठे अपने – अपने मोबाईल फोन  से फोटो लेने में व्यस्थ हो गए | ठीक 5.30 बजे विमान हवाई पट्टी पर दौड़ते हुए, हलके से झटके के साथ उड़ान भरकर आसमान से बातें करने लगा | हमारा विमान बादलों के ऊपर उड़े जा रहा था | अन्दर से बादल; बर्फ से ढके पहाड़ों की तरह दिख रहे थे | हमारे लिए यह सब एक नया और सुखद अनुभव था | विमान बड़े ही आराम से उड़े जा रहा था, बस थोड़ी सी आवाज; वाटर – कूलर की मोटर की आवाज जैसी ही अनुभव को रही थी | इसके अतिरिक्त शेष सभी कुछ सामान्य ही था |

नाश्ते का सामय हो चला था और तभी परिचारिकाओं ने अपनी छोटी सी ट्राली से यात्रियों को नाश्ता पकड़ाना शुरू कर दिया | सीट के आगे लगे टेबल को खोलकर अन्दर बैठे – बैठे नाश्ता करने का मजा ही अपना था, साथ ही फिर चाय भी आ गई और समय का पता ही नहीं चला | ठीक 9 बजे भारत के पूर्वोतर से 1200 किलोमीटर दूर हमारा विमान वीर सावरकर हवाई अड्डे अर्थात अंडेमान की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में उतर चुका था | जिसकी जानकारी हमें उतरने से पूर्व ही दे दी गई थी |

विमान से बाहर निकल हम सभी अपने – अपने सामान की प्रतीक्षा कन्वेयर बैल्ट के समीप खड़े होकर करने लगे | गर्म कपड़े अर्थात स्वेटर जैकट आदि सभी ने उतार कर कन्धों पर डाल लिए थे | क्योंकि उधर तो गर्मी के कारण ए. सी. व पंखे चल रहे थे | 9.30 बजे हम सभी हवाई अड्डे से बाहर निकल आए | बाहर सूर्य होटल वाले (जहां हमारे ठहराने की व्यस्था थी) प्रतीक्षा कर रहे थे और थोड़ी ही देरी में हम सभी टैक्सी द्वारा फुंगी रोड़ स्थित सूर्य होटल पहुँच गए |

फिर कुछ देर सुसताने के बाद बारी – बारी से नहा धोकर तैयार हो गए | भोजन करने का समय हो गया था, तभी भोजन कक्ष में पहुँचाने का सन्देश भी आ गया | खाना भोजन कक्ष में लग चुका था | “वाह – वाह क्या बात है …. “ सभी हैरानी से एक दूसरे की ओर देख कर कह रहे थे | क्योंकि खाने में तो बिलकुल जैसा हम खाते आये हैं वैसा ही दाल, चावल, सब्जी व चपाती आदि ही रखी हुई थी जिन्हें देखकर सबको संतुष्टी हो गई थी |

भोजन करने के पश्चात बिना समय गंवाए हम सभी ठीक 2.30 बजे टैक्सी द्वारा अंटलांटा प्वांईट स्थित ऐतिहासिक सैल्यूलर जेल देखने पहुँच गए | उधर प्रवेश द्वार के आगे ही काफी लम्बी पंक्ति में लोग खड़े थे | हम भी पंक्ति में लगकर देखते ही देखते अन्दर प्रवेश हो गए | सैल्यूलर जेल वही ऐतिहासिक जेल है जहां क्रांतिकारियों को रखा जाता था | मण्डी के क्रांतिकारी भाई हिरदा राम को भी इसी जेल में अन्य क्रांतिकारियों के साथ रखा गया था | जेल में लगी संगमरमर की पट्टिका में क्रांतिकारियों के साथ उनका नाम देखकर हमने अपने आपको गौरवान्वित अनुभव किया | इस ऐतिहासिक इमारत के प्रवेश द्वार के दोनों ओर संग्राहलय बना है |

जिसमे पुराने दस्तावेज, क्रांतिकारियों को दिए गए आदेशों व संदेशों के पत्र, उनके चित्र, जेल के निर्माण का इतिहास, आदि सभी जानकारियाँ संग्रहालय में देखी और पढ़ी गई | संग्रहालय के आगे अन्दर की ओर खुला परिसर देखने को मिलता है | परिसर के दांई  ओर दर्शक मंच है, जहां पर कुर्सियां लगी देखी जा सकती हैं | मंच पर लगी इन्हीं कुर्सियों पर बैठकर दर्शक शाम को ध्वनी व प्रकाश कार्यक्रम देखते हैं | परिसर के बाँई ओर शहीदों और क्रांतिकारियों की याद में बना स्मृति स्थल है जहां पर ज्योति प्रज्वलित रहती है | ज्योति प्रज्वलन की शुरुआत शहीदों के सम्मान में 9 अगस्त 2004 से भारत सरकार के आदेशों पर की गई है |

खुले परिसर में थोड़ा आगे चलने पर दांई ओर (क्षितिज रेखा में बनी सैल्यूलर जेल की एक इमारत के आगे) एक चबूतरा बना है, जिस पर उस समय कैदियों को फांसी पर चढ़ाया जाता था | कहते हैं कि इसी चबूतरे पर तीन – तीन कैदियों को इकठ्ठे ही फांसी पर लटका दिया जाता था | चबूतरे के आगे क्षितिज रेखा में सैल्यूलर जेल की एक इमारत बनी है तथा दूसरी बाँई ओर सीधी रेखा पर खडी है | दोनों इमारतें आपस में जुड़ी हुई हैं तथा दोनों में तीन – तीन तल हैं | हर इमारत के एक तल पर लगभग 48 से 50 कमरे गिने गय, लेकिन तीनों तलों के 148 कमरे हो जाते हैं |

यदि दोनों इमारतों के कुल कमरों की संख्या को जोड़ा जाए तो ये कुल मिलाकर 294 बनते हैं | एल आकार में खडी दोनों इमारतों के प्रत्येक कमरे का आकार 10×9 फुट का देखा गया | हर कमरे के बाहर मजबूत लोहे की सलाखों का द्वार तथा इसी द्वार के बाँई ओर छोटा सा डेढ़ फुट गुना आठ इंच का खुला स्थान (शायद भोजन व पानी आदि देने के लिए) भी बना देखा गया | हर कमरे की पीछे वाली दीवार में ऊपर की ओर एक छोटा सा रोशनदान भी बना हुआ देखा गया | सभी कमरों के आगे लम्बा सा 5 फूट चौड़ा बरामदा बना है | न जाने इन कमरों में हमारे क्रांतिकारी कैसे रहे होंगे …..!! ??

इन्हीं कमरों के अन्तिम छोर पर देश के महान क्रांतिकारी वीर सावरकर का भी कमरा था, जिसमें उनकी तस्वीर रखी हुई थी | हमारे मण्डी के क्रांतिकारी भाई हिरदा राम जी का कक्ष भी वहीं पास में देखा गया | सैल्यूलर नामक इस जेल का निर्माण कार्य 25 सितम्बर, 1893 को अंटलांटा प्वाईंट नामक इसी स्थान पर हुआ था | ऐसा बताया जाता है कि पहले इस जेल के 698 कमरे थे | दुसरे विश्व युद्ध से जेल का कुछ हिस्सा ढह गया था और अब यही 294 के करीब ही कमरे रह गए हैं |

जेल के समस्त परिसर को देखने के पश्चात हम सभी बाहर पार्क के समीप आकर नारियल पानी का आनन्द लेकर वापिस टैक्सी में बैठ गए | हमारा अगला दर्शनीय स्थल था कार्बाईन कोल बीच | पोर्ट ब्लेयर के नजदीक होने के कारण ही हम शीघ्र ही उधर पहुँच गए | यह बीच साहसिक खेलों के आयोजन, सूर्योदय व सूर्य अस्त के लिए विशेष रूप से जाना जाता है | यहीं पर पैरा सेलिंग व जेट स्की आदि साहसिक खेलों को देख कर हम सभी चकित रह गए |

हम भी वहीं समुन्द्र के बीच की लहरों के साथ कुछ देर आनन्द लेने के बाद, साथ वाली छोटी सी मार्किट में चाट व चायपान करके वापिस होटल पहुँच गए | रात्रि 8.30 बजे पर सैल्यूलर जेल में होने वाले ध्वनी व प्रकाश कार्यक्रम को देखने के लिए फिर चल पड़े | ध्वनी व प्रकाश कार्यक्रम के माध्यम से हमें क्रांतिकारियों के बलिदान की एतिहासिक जानकारी के साथ ही साथ पोर्ट ब्लेयर की समस्त पृष्ठ भूमि का पता चल गया | यह सारा कार्यक्रम बड़ा ही रुचिकर व हैरानी पैदा करने वाला था | रात्रि 9.30 पर कार्यक्रम की समाप्ति के बाद वापिस आकर अगले दिन का कार्यक्रम बनाने लग गए |

दूसरा दिन: – 06-02-2020 को नाश्ता लेने के पश्चात भ्रमण के लिए तैयार होकर टैक्सी द्वारा अबरडीन जैटी से नजदीक द्वीप रौस आई लैण्ड (नेता जी सुभाष चंद्र बोस द्वीप), पहूँचने के लिए बैठ गए | आप कहेंगे ये जैटी क्या होता है …..? हाँ यह शब्द जैटी हमारे लिए भी नया था और बार – बार सुनाने में आ रहा था | इस सम्बन्ध में जानने पर पता चला कि ऐसा पक्का स्थल जहां से मोटर बोट, फैरी व जहाज आदि चले या ठहरे उस स्थान को जैटी कहा जाता है | टैक्सी अबरडीन जैटी पहूंचकर रुक गई | टिकट लेकर हम सभी मोटर बोट पर बैठ गए और बैठते ही हमें जीवन रक्षक जैकट पहना दी गई और मोटर बोट चल पड़ी |

लगभग आधे घंटे में ही हम समीप वाले रौस आई लैण्ड पर उतर गए | कभी इसी छोटे से द्वीप से अंग्रेजों की हकुमत चलती थी | अंग्रेजों के पश्चात 1942 से 1945 तक यहाँ जापानियों का अधिकार भी रहा था | द्वितीय विश्व युद्ध के बंकर इस द्वीप पर आज भी देखे जा सकते हैं | प्राचीन इमारतें, इमारतों के खंडहर, चर्च, स्कूल व मुख्यायुक्त का निवास आदि आज भी सभी अपनी मजबूती की गवाही देते देखे जा सकते हैं | दो अढाई किलोमीटर में फैले इस द्वीप को ऊपर तक देखने के लिए हमने थ्री व्हीलर कर लिया था | सड़क मार्ग से ऊपर तक घूम कर व रास्ते में कई इमारतों की मजबूती और उनकी बनावट को देखकर हम चकित रह गए थे, क्योंकि कई खाली पड़ी सुन्दर इमारतें रहने योग्य होते हुए भी खाली की खाली पड़ी थी |

रौस लैण्ड नामक इस द्वीप पर मोर व बारह सिंघें हिरण भी देखे गए | जब घूमने के पश्चात वापसी पर हम वहां नारियल पानी पीने लगे तो हिरण हमारे आगे पीछे घूमने लगे थे | इस तरह समुद्र के मध्य में प्राकृतिक हर भरे जंगल में मोरों व हिरणों को देखकर बड़ा ही मनोरम व रोमांचक आभास हो रहा था | सैल्यूलर जेल की तरह ही इस द्वीप पर भी ध्वनी व प्रकाश कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है | अबरडीन जैटी से नेता जी सुभाष चंद्र बोस द्वीप की दूरी लगभग डेढ़ से दो किलोमीटर ही है |

अबरडीन जैटी से हमारी टैक्सी मनारघाट जाने के लिए दूसरी जैटी की ओर चल दी | टैक्सी से उतर कर जल्दी ही हम मनारघाट को जाने वाली फैरी में बैठ गए | फैरी में हमारे साथ ही साथ कई एक स्कूटर व हमारी टैक्सी को भी चढ़ा दिया गया | कुछ ही देर की समुंद्री यात्रा के पश्चात हम मनारघाट जैटी पर उतर गए | पूर्व निर्धारित कार्यक्रमानुसार ही उधर हमें श्रीमती रुबीना सिद्धीकी (पूर्व अध्यक्ष राईट फार आल संस्था, पोर्ट ब्लेयर) बताये गए स्थान पर मिल गई | उन्होंने हमें मनारघाट के क्षेत्र का परिचय करवाते – करवाते बताया कि मानरघाट ही पोर्ट ब्लेयर की प्रसिद्ध व विकासशील पंचायत है |

इसके बाद रुबीना जी ने हम सभी का परिचय मनारघाट पंचायत प्रधान ओ० बशीर से करवा दिया | पंचायत प्रधान बशीर ने अपनी पंचायत द्वारा चलाए जा रहे सभी कार्यक्रमों की जानकारी विस्तार से दी तथा हमें उन स्थलों पर ले जा कर कार्यों का निरीक्षण भी करवाया | इस तरह हम सभी को मनारघाट के बालवाड़ी केंद्र, प्राथमिक स्वाथ्य केंद्र, पंचायत युवा केंद्र, पंचायत द्वारा संचालित सब्जी मण्डी, मनारघाट सांस्कृतिक और कला मंच व पंचायत भण्डार गृह आदि का भ्रमण करवाने के पश्चात प्रधान हमें अपने कार्यालय ले गए |

वहां उन्होंने विस्तार से पंचायत की जानकारी देते हुए बताया कि पंचायत की आय लाखों में है | आय का सारा पैसा पंचायत के विकास पर ही खर्च किया जाता है | वहीं पर हम सभी को चायपान करवाने के पश्चात मोटर बोट से वन क्षेत्र की यात्रा करवाते हुए, जंगली जानवारों तथा मगरमच्छों से सावधान रहने की भी सलाह उनके द्वारा दे गई, इस प्रकार हमारी दूसरे दिन की यात्रा मनारघाट के विकास के साथ ही साथ वहां की कला और संस्कृति के  विविध पक्षों को जानने ले लिए भी अहम् कही जा सकती है |

तीसरा दिन: 07-02-2020 का कार्यक्रम हैवलाक द्वीप (स्वराज द्वीप) की यात्रा  का था | नाश्ते को पैक करवा लेने के पश्चात सुबह 6 बजे ही हम टैक्सी द्वारा जैटी पहुँच गए | जैटी से छोटे जहाज का सफ़र हैवलाक के लिए शुरू हो गया, सफ़र लम्बा था क्योंकि हैवलाक के लिए दो से अढाई घंटे का समय लग ही जाता है | सुबह 9 बजे के करीब जहाज में बैठे – बैठे ही नाश्ता कर लिया | एक स्थान पर बैठे जब थक गए तो कुछ पल जहाज के डैक पर इधर – उधर ऊपर तक घूम लिए, फिर दूर तक फैले समुद्र के नजारों व फोटो लेने के पश्चात वापिस नीचे आ गए | ठीक 10 बजे के करीब हम हैवलाक पहुँच गए |

यहाँ से फिर अपने थोड़े बहूत सामान को राधानगर स्वीट ड्रीम होटल में रखने के पश्चात उसी टैक्सी द्वारा ही सीधे राधानगर बीच पहुँच गए | हैवलाक का राधानगर बीच अति सुन्दर बीचों में से एक है | बीच पर लोगों की भारी भीड़ थी | वहीं बीच से पहले सुन्दर छोटी सी मार्किट भी देखी गई | मार्किट में चायपान व नारियल की दुकानों के साथ ही साथ रेडीमेट वस्त्रों, सुमंद्री शंख सीपियों व श्रृंगार की दुकानें भी खूब सजी हुई थी | लगभग दो घंटों तक बीच की लहरों से खेलने व नहाने के पश्चात 5 बजे के करीब; लौटती बार मार्किट में चायपान करके वापिस अपने होटल स्वीट ड्रीम पहुँच गये | थोड़ा विश्राम करने के बाद रात्रि को बाहर वाले ढ़ाबे पर भोजन लेने के उपरांत टहलते हुए वापिस अपने – अपने कमरों में पहुँच गए | इस तरह रात्रि ठहराव राधानगर के होटल स्वीट ड्रीम में ही किया गया |

चौथा दिन: –  08-02-2020 को स्वीट ड्रीम में नाश्ता करने के बाद 10 बजे के करीब राधानगर से काला पत्थर बीच की ओर हमारी टैक्सी बढ़ रही थी | बातों ही बातों पता ही नहीं चला और हम 10.45 पर काला पत्थर नामक छोटे से बीच पर जा पहुंचे | सड़क के एक तरफ छोटी सी मार्किट और दूसरी ओर उसके सामने ही छोटे से बीच के समुन्द्र की लहरों उठ रही थी; उन लहरों  के साथ मस्ती करने के पश्चात हम दूसरे बीच की ओर चल पड़े, टैक्सी ने हमें एलीफैंटा बीच के लिए हैवलाक जैटी के समीप उतार दिया | जैटी से मोटर बोट द्वारा 11.30 बजे चल कर हम 12 बजे के करीब एलीफैंटा पहुँच गए | अति सुन्दर व प्रसिद्ध बीच होने के फलस्वरूप ही एलीफैंटा बीच के एक ओर भारी संख्या में मोटर बोट खड़ी देखी गई |

लोगों का भारी हजूम भी समुन्द्र की लहरों व जल साहसिक खेलों का आनन्द लेते हुए वहीं देखा गया | वहीं बीच में पैरा सेलिंग, स्नारलिंग, जेट स्की व सी वाक जैसी गतिविधियों को करते हुए लोगों को देखा गया | हम में से मीरा शर्मा द्वारा जेट स्की, मेरे व आर ठाकुर द्वारा स्नारलिंग गतिविधि का खूब आनंद लिया गया | इस तरह एलीफैंटा बीच पर समुन्द्र की लहरों की अठखेलियों के साथ ही साथ जल साहसिक खेलों का आनन्द लेने के पश्चात (बीच के पास वाली मार्किट से फ्रूट चाट का स्वाद लेकर) अपनी उसी बोट द्वारा वापिस ठीक 4 बजे हम हैवलाक जैटी पहुँच गए | वहीं फिर पोर्ट ब्लेयर की ओर चलने वाले जहाज से समुन्द्र की लहरों का आनन्द लेते हुए ठीक 7.45 बजे शाम को पोर्ट ब्लेयर आ गए |

5 वां दिन: –  09-02-2020 को हमारी यात्रा बाराटुंग की चूना पत्थर की गुफाओं को देखने की थी | यह सफ़र लम्बा था, इसलिए हमें सुबह 3 बजे उठाना पड़ा और ठीक 3.30 बजे हम टैक्सी द्वारा निकल पड़े | क्योंकि बाराटुंग के लिए आदिवासी (प्रतिबंधित) क्षेत्र से होकर जाना पड़ता है, आगे जिरका टांग की चैक पोस्ट से गाड़ियों के निकालने का समय सुबह छह, नौ बजे व दोपहर बारह बजे तक का ही है | बारह बजे के पश्चात किसी भी गाड़ी को आने जाने नहीं दिया जाता | हमारी गाड़ी जो सुबह 3.30 बजे चली थी 4.45 बजे जिरका टांग चैक पोस्ट पर पहुँच गई थी |

यहीं पर हमारी और बाकि सभी पहुंचे पर्यटकों के पहचान पत्रों आदि की जांच पड़ताल की गई | अभी समय था क्योंकि बैरियर के खुलने का समय सुबह छह बजे का था | समय को देखते हुए हम सभी ने यहाँ का विशेष पकवान इडली, बड़े आदि का नाश्ता व चाय अपनी पसन्द के अनुसार कर लिया | आदिवासी क्षेत्र होने के कारण ही आगे जाने के लिए सभी गाड़ियों को यहाँ से एक साथ ही छोड़ा जाता है | कोई भी गाड़ी रास्ते में हॉर्न नहीं बजा सकती, कोई पर्यटक रास्ते में आदिवासी दिख जाने पर उनसे बात नहीं कर सकता न ही गाड़ी को रोक कर उसे कोई खाने पीने की वस्तु दे सकता है |

इतना ही नहीं उनका कोई फोटो भी नहीं लिया जा सकता, क्योंकि यह सारा प्रतिबन्ध सरकार द्वारा लगाया गया है | इन सभी बातों का अनुसरण करवाने के लिए, हमने रास्ते में जगह – जगह गार्डों को कार्यरत देखा | नियुक्त गार्ड जहाँ आदिवासियों पर नजर रखते हैं वहीं वह इस बात का भी ध्यान रखते है कि किसी पर्यटक पर हिंसक होकर प्रहार न कर दें | क्योंकि बैरियर के आगे का सारा क्षेत्र घने जंगलों से घिरा आदिवासियों का ही क्षेत्र है | ये आदिवासी नंगे रहते हैं और हिंसक प्रवृति के होते हैं | जंगली जानवरों व मछली आदि का मांस कच्चा ही खा जाते हैं | शिकार करने के लिए ये धनुष बाण का प्रयोग करते हैं |

आदिवासी भी अलग – अलग जनजातियों से सम्बन्ध रखते हैं, इस क्षेत्र के आदिवासी जारवा  जनजाति के हैं | क्षेत्र की इस आदिम संस्कृति को बचाने व पर्यटकों को इनके आक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए ही (प्रशासन ने पुलिस द्वारा) इन्हें सरंक्षण दे रखा है, व इस समस्त क्षेत्र को जारवा संरक्षण वन क्षेत्र घोषित किया गया है | यह सारा क्षेत्र लगभग 50 किलोमीटर के करीब बनता है और इधर किसी भी प्रकार की आबादी नहीं है, इन्हीं आदिवासियों को यहाँ का मूल निवासी बताया जाता है |

जिरका टांग चैक पोस्ट से सुबह 6 बजे चल कर मिडल ईस्ट जैटी पर हम ठीक 7.40 बजे पहुँच गए | मिडल ईस्ट से छोटे जहाज द्वारा हम लाईम रॉक गुफाओं को देखने के लिए चल पड़े और आगे बारा टुंग उतर गए | बारा टुंग से आगे मोटर बोट द्वारा 9 – 10 कोलोमीटर की दूरी तय कर हमारी बोट एक किनारे पर मैनग्रूव पेड़ों के नीचे  जा रुकी | किनारे की भूमि दलदली होने के कारण हम लकड़ी व बांस से बने पुल को लांघ कर आगे 2 से अढाई किलोमीटर गुफाओं तक का रास्ता पैदल ही तय करने को था | कुछ आगे चलने पर एक छोटे से गाँव के समीप नींबू पानी पीने का आनन्द लेने के बाद फिर चल पड़े |

लगभग एक से डेढ़ किलोमीटर की दूरी चलने के बाद गन्तव्य स्थल (चूना पत्थर की गुफाओं) तक हम पहुँच ही गए | गुफाओं में जाने आने वालों की भीड़ के मध्य कुछ मीटर चलने के पश्चात आगे अन्धेरा दिखने लगा | मोबाईल की टार्च से चूना पत्थर (पानी के टपकने से बनी) की गुफा की कला कृतियां देखते ही बनती थी … !! अपनी – अपनी सोच व विचारों के अनुसार बनी वह कृतियाँ नजर आ रही थी, कहीं भगवान शिव, गणेश जी, देवी माता, त्रिशूल, शंख तो कहीं कमल फूल की सुन्दर आकृति दिखाई दे रही थी | चूने पत्थर का रंग भी लाल, भूरा, सफ़ेद और केसरिया अलग – अलग रंगों में दिखाई दे रहा था | क्या हम इन सभी कला कृतियों व भिन्न – भिन्न चूने के रंगों को प्रकृति की ही असभूत कृति नहीं कह सकते … ?? कुछ भी क्यों न कहा जाए लेकिन चूना पत्थर की अदभूत कला कृतियों और उनके रंगों को देखने व सारे   सफ़र को करने के बाद रात्रि 8 बजे सभी ठीक ठाक पोर्ट ब्लेयर वापिस पहुँच गए |

अंतिम दिन: – 05-02-2020 से 09-02-2020 तक लगातार अंडेमान के विभिन्न द्वीपों, क्षेत्रों व सुन्दर बीचों की सनुहरी यादों को अपनी डायरी के पन्नों में पिरोते हुए भी; ऐसा आभास हो रहा था कि अभी तो बहूत कुछ ऐतिहासिक तथ्य देखने, सुनाने को रह गए हैं | जिनके बिना यह यात्रा वृतान्त कुछ अधूरा ही प्रतीत हो रहा था | अतः अगले दिन इस कार्य को भी पूरा कर लिया गया |

अंडेमान व निकोबार दो अलग – अलग द्वीपों के समूह हैं | दोनों  द्वीपों के समूहों (अंडेमान व निकोबार) को मिलाकर एक केंद्र शासित राज्य अंडेमान निकोबार बना है | यदि इन सभी छोटे बड़े द्वीपों की संख्या देखी जाए तो वह 572 बनती है, लेकिन आबादी केवल 37 द्वीपों में ही है और आने जाने की सुविधा भी इसी लिए इन्हीं द्वीपों में है | सुविधा होने के बावजूद भी केवल 10 – 12 द्वीप ही देखने योग्य हैं | आम लोगों व पर्यटकों का आना जाना केवल अंडेमान के द्वीपों तक ही सीमित है |

निकोबार के लिए हर कोई व्यक्ति नहीं जा सकता | उधर जाने के लिए प्रशासन से विशेष अनुमति लेनी पड़ती है | निकोबार की अंडेमान से दूरी लगभग 560 किलोमीटर बताई जाती है | इस तरह दोनों द्वीपों के समूह को ही (अंडेमान निकोबार) एक केंद्र शासित राज्य बनाया गया है और  राज्य की राजधानी पोर्ट ब्लेयर ही है | यहाँ  की मुख्य भाषा हिन्दी ही है, लेकिन इसके साथ – साथ बंगाली, तमिल, तेलगू व अन्य भाषाएँ भी कुछ लोग बोलते हैं | यहाँ के लोग परिश्रमी व ईमानदार हैं | पैदावार में यहाँ अधिकतर नारियल, सुपारी, जयफल  व अन्य मसालों के साथ ही साथ आम, पपीता, कटहल, गेहूं, चावल व अन्य सब्जियां भी उगाई जाती हैं |

यहाँ के समस्त द्वीपों के नाम अंग्रेजों के नामों से ही जाने जाते हैं, क्योंकि अंग्रेजों ने ही यहाँ के मूल आदिवासियों को ख़त्म करके अपनी बस्तियां स्थापित की थी | लेकिन अब द्वीपों व स्थानों के नाम बदले जा रहे हैं | पोर्ट ब्लेयर जो कि अंडेमान निकोबार का एक मात्र शहर है, शेष सभी  द्वीपों का परिवेश गाँवों जैसा ही है | यहाँ देखने योग्य स्थलों में सैल्यूलर जेल, मत्स्य संग्रहालय, राम कृष्ण मठ, राम कृष्ण आश्रम, महात्मा गांधी पार्क, वनस्पति व जीव जन्तु संग्रहालय, आदिवासी संग्रहालय व अनेकों सुन्दर – सुन्दर बीच हैं, जिनमें प्रमुख है: – कार्बाइन कोल बीच, चाथम बीच, वंडूर बीच, व चिड़िया बीच आदि – आदि |

समुन्द्र व द्वीपों के इस केंद्र शासित प्रदेश की हरियाली, भान्त – भान्त के समुंद्री जीवों, आदिवासियों की नई – नई जानकारियाँ व प्राकृतिक सुन्दरता बाहर से आने वाले पर्यटकों को मोह लेते हैं और बार – बार यहाँ आने के लिए प्रोत्साहित करते हैं |  

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