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दो दिवस पहले विश्व पर्यावरण दिवस के दिन शिमला के गेयटी केनफ्रेंस हाल में मेरे आदरणीय गुरु श्रीमती विद्यानिधि जी की कहानी पुस्तक “बदला मौसम बदल गए हम” का आदरणीय विद्वान जनों द्वारा विमोचन किया गया । कहते हैं कि मंजिल की राहों में कांटे न हो ऐसा कभी हो ही नहीं सकता। राहें चाहे फूलों से भरी ही क्यों न हो कांटे अपने होने का अहसास करा ही देते हैं। किसी चीज़ की शुआत करना सरल या कठिन हो सकता है परन्तु उससे उसके आखिरी अंजाम तक पहुंचाने का सफर सदा कठोर परिश्रम से भरा रहता है।
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एक बात अवश्य कहना चाहूंगा कि जो व्यक्ति किस्से कहानियों या किताबों में याद किया जाने लगे वे कभी नहीं मरता बल्कि हमेशा के लिए अमर हो जाता है। आज मैं भी एक भावनात्मक रूप से उनसे जुड़ गया हुं। यह मेरे लिए एक बहुत बड़े सौभाग्य की बात है। आज मैं यहां तक आया हु तो ये केवल मेरे पूज्या गुरु श्रीमती विद्यानिधि छाबड़ा जी के कारण ही हूं । मुझे आपने आज नाम दिया है इसके लिए मैं जीवन पर्यंत तक इनका धन्यवादी रहुगा ।
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