
कुछ अच्छे करम करने पड़ते हैं
कुछ काम आती हैं पूर्व जन्म की नेकियाँ|
जब उसकी नज़र-ए- इनायत होती है
तब घर में आती हैं परियों सी बेटियाँ|
कहते हो तुमको नाज़ है अपने बेटों पर
न बघारों यार ये झूठी शेखियाँ|
जब घर के चिराग ही अंधेरों का सबब बनते हैं
तब काम आती हैं यही भोली सी बेटियाँ|
समझे थे जिसे बुढ़ापे की लाठी
खिला दी उसने वृद्धाश्रम की रोटियाँ|
अखंड विश्वास था जिस वंशज पर, गिराकर चला गया
बुढ़ापे की लाठी बनती हैं नाजुक सी बेटियाँ|
जिस की खातिर कोल्हू का बैल बने रहे उम्र भर
वो खेलता रहा जायदाद को गोटियाँ|
कुल वंशज तो बस गया विदेश जाकर
गले लगाती हैं प्यारी सी बेटियाँ|