सप्तम महाविद्या देवी धूमावती की शुभ जयंती

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डॉ. कमल के. प्यासा

डॉ. कमल के. प्यासा, मण्डी, हिमाचल प्रदेश

इस वर्ष देवी धूमावती (धूवां देवी), जो कि देवी माता पार्वती का अवतार मानी जाती हैं का जयंती पर्व 14 जून शुक्रवार के दिन मनाया जा रहा है। क्योंकि देवी मां की  अवतरण तिथि ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को पड़ती है।

पौराणिक मान्यताओं  के अनुसार सती माता देवी पार्वती जब अपने पति भगवान शिव के अपमान (अपने पिता दक्ष प्रजापति द्वारा उसके पति भगवान शिव को यज्ञ का निमंत्रण न भेजने पर) को सहन नहीं कर पाई और उसने अपने आप को हवन कुंड में जला कर भस्म कर लिया, जिससे उसके शरीर से धूवें का गुबार निकला जो की धूवें के रूप में शक्ति का भौतिक रूप था और देवी धूमावती या धूंवा देवी के नाम से जानी जाने लगी। इसी प्रकार एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार बताया जाता है कि एक बार भगवान शिव अपनी अर्धांगनी देवी पार्वती से साथ हिमालय क्षेत्र का भ्रमण कर रहे थे तो रास्ते में देवी पार्वती को भूख सताने लगी और उसने भगवान शिव से खाने की मांग की। जिस पर भगवान शिव ने पार्वती को कुछ देर प्रतिक्षा करने को कहा, लेकिन पार्वती अपनी भूख नहीं दबा पाई और उसने भगवान शिव को ही निगल लिया।

भगवान शिव अंतर्यामी सब कुछ जानते थे और उन्होंने पार्वती से अपने को बाहर निकालने को कहा, तो पार्वती ने जल्दी से उन्हें उगल दिया, जिसके साथ धूवें का गुबार भी निकला और इस पर भगवान शिव ने पार्वती को शाप देते हुए कह दिया कि जा तूं ऐसे ही विधवा रूप में रहेगी।तभी तो देवी धूमावती को सफेद कपड़ों में खुले बालों के साथ भयानक रूप में, पक्षी वाहन कौवे के साथ दिखाया गया होता है। 

दस महाविद्याओं में धूमावती सातवें क्रम पर आती हैं। इनका पूजन गुप्त नवरार्त्रों में, विशेष रूप से तंत्र मंत्र की साधना व सिद्धियों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। वैसे शास्त्र रुद्रामल तंत्र के अनुसार दसों महाविद्यायें भगवान शिव की शक्तियां ही बताई गई है। पंचरात्र के अनुसार देवी धूमावती के शरीर से ही उग्र चंडिका, उग्र तारा व सभी भयंकर प्रवृति वाली देवियां प्रगट हुई थीं। पदम पुराण के अनुसार इन्हें माता लक्ष्मी की बड़ी बहन कहा गया है।

देवी धूमावती (इनका) का निवास स्थान पीपल वृक्ष तथा (इनकी) आवाज को इतना भयानक बताते हुए कहा गया है कि एक हजार गिदड़ों के चिल्लाने से पैदा होने वाली आवाज इनकी आवाज के बराबर होती है, जिससे डर पैदा होना स्वाभाविक ही है।तभी तो इन्हें क्रोध व भूख की देवी भी कहा गया है। कहीं कहीं देवी को दरिद्रता, अलक्ष्मी और ज्येष्ठा के नाम से भी जाना जाता है। तभी तो देवी धूमावती का अधिपत्य आलस्य, गरीबी, दुःख, दर्द और कुरूपता पर भी रहता है। जिनका  निवारण  इनकी पूजा पाठ से ही किया जाता है। भूख की देवी होने के कारण ही मां धूमावती दैत्यों का खात्मा करके उन्हें अपने भोजन के रूप में ग्रहण भी करती हैं।

देवी के अवतरण वाले दिन पूजा पाठ के साथ ही साथ व्रत भी रखा जाता है। गुप्त नवरात्रि में सबसे पहले ब्रह्म मूहर्त में स्नान करके काले वस्त्र धारण किए जाते हैं। पूजा के लिए लकड़ी के पटड़े को अच्छी तरह से साफ करके, गंगाजल के छिड़काव के साथ सलेटी कपड़े से ढांप कर उस पर देवी मां का चित्र/मूर्ति/यंत्र को स्थापित किया जाता है।

इसके पश्चात सरसों के दिए को जलाया जाता है, लोबान से धूप जला कर भभूत से देवी माता को तिलक लगाया जाता है और दो प्रकार के फूल चढ़ाए जाते हैं। भोग के लिए उड़द दाल की खिचड़ी चढ़ाई जाती है जो बाद में सभी में बांट कर चितकबरी गाय को भी खिलाई जाती है। मंत्र जाप में *ओम धूम धूम धूमावती देव्ये स्वाहा।* मंत्र का उच्चारण 108 बार किया जाता है। बाद में कवच पाठ व सारी साधना 11 दिन तक चलती रहती है, हवन का आयोजन भी रहता है और हवन की सामग्री में काली मिर्च, काले तिल व घी मिलाया जाता है।

इस तरह देवी धूमावती के पूजा पाठ व हवन आदि के आयोजन से सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति के साथ ही साथ दुश्मन पर विजय, दुख दर्द का नाश, संतान सुख व सभी तरह के रोगों से छुटकारा भी मिल जाता है।

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