डॉ. कमल के. प्यासा
हर वर्ष वैशाख माह की पूर्णिमा को बुद्ध जयंती का त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन महात्मा बुद्ध के जन्म दिन के साथ ही साथ उनके ज्ञान प्राप्ति व महापरिनिर्वाण का दिन भी रहता है। वैसे महात्मा बुद्ध जो कि बौद्ध धर्म के संस्थापक थे, को पौराणिक कथाओं व साहित्य के अनुसार भगवान विष्णु के नौवें अवतार के रूप में भी बताया जाता हैं।
महात्मा बुद्ध का जन्म 563 ई. पूर्व, कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन व माता रानी माया देवी के यहां, लुंबिनी नामक गांव में हुआ था। इनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था। सिद्धार्थ बचपन से राजपाठ व ऐशो आराम तथा सुख सुविधाओं में रहे थे। एक दिन जब अपने सारथी के साथ भ्रमण को निकले तो रास्ते में सिद्धार्थ को एक वृद्ध रोगी, फिर एक मृत व्यक्ति की अर्थी और एक संन्यासी को देख उनके बारे में बहुत कुछ जानकारी अपने सारथी से लेकर कर अंदर ही अंदर दुख अनुभव करने लगे। वह सोचने लगे कि यह संसार तो दुखों का घर है, इनसे कैसे छुटकारा पाया जा सकता है? इन्हीं विचारों में खोए सिद्धार्थ वैराग्य के बारे में सोचने लगे। इन्हीं विचारों के चलते 29 वर्ष की आयु में अपनी पत्नी को सोते छोड़ कर सिद्धार्थ ज्ञान की खोज में निकल गए। इधर उधर भटकने के पश्चात 6 वर्ष तक एक पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ कर घोर तपस्या करते रहे और उसी वृक्ष के नीचे ही उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई।
ज्ञान प्राप्ति के पश्चात ही सिद्धार्थ, बुद्ध नाम से प्रसिद्ध हो गए और उन्होंने सत्य और अहिंसा का प्रचार करते हुए कहा कि केवल पशुओं का मांस खाना ही पाप नहीं होता, बल्कि क्रोध करना, व्यभिचार, छल कपट, ईर्ष्या व किसी की निंदा करना भी महापाप होता है, जिनसे हमें बचना चाहिए।
हिंदू मान्यताओं व पौराणिक साहित्य के अनुसार महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार बताया गया है और पौराणिक कथा अनुसार ही बताया जाता है कि जब स्वर्ग लोक में दैत्यों के अत्याचार बढ़ गए और उन्होंने देव लोक पर अधिकार कर लिया तो देवता लोग डर से इधर उधर भागने लगे। दैत्य भी अपना अधिकार पक्की तरह से जमाना चाहते थे, और किसी भी प्रकार की ढील नहीं रखना चाहते थे, इसलिए अपना अधिकार पक्का बनाए रखने के लिए दैत्य इंद्र लोक में इंद्र देवता से सलाह लेने चले गए और अपने देव लोक पर अधिकार को बनाए रखने के उपाय पूछने लगे। देव इंद्र दैत्यों की बातों में आ गए और उन्हें यज्ञ और वेद के अनुसार आचरण करने को कह दिया। इस पर तंग होकर सभी देवता मदद के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंच गए और अपनी व्यथा उन्हें कह सुनाई।
देवताओं की व्यथा सुन कर भगवान विष्णु खुद बुद्ध रूप में अवतरित होकर व एक हाथ में मर्जनी लेकर अपना रास्ता साफ करते हुए दैत्यों के पास जा पहुंचे और उन्हें यज्ञ न करने की सलाह देते हुए कहने लगे कि यज्ञ की आग व धुएं से कई एक जीव जंतु मर जाते हैं, देखो मैं खुद भी तो मर्जनी से रास्ता साफ करके (ताकि पैरों के नीचे कोई जीव आकर न मारे) आपके यहां तक पहुंचा हूं। दैत्यों ने भगवान विष्णु की बात मान ली और यज्ञ करना बंद कर दिया। यज्ञ के बंद हो जाने से दैत्यों की शक्ति दिन प्रतिदिन घटने लगी, और देवताओं ने फिर से स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। इस तरह से भगवान विष्णु ने दैत्यों की हिंसात्मक प्रवृति को समाप्त करके फिर से शांति स्थापित करके देवताओं को राहत प्रदान कर दी थी। इसीलिए तब से भगवान विष्णु की महात्मा बुद्ध के रूप में उपासना की जाने लगी।
इस दिन प्रातः उठ कर किसी पवित्र तीर्थ स्थल, पवित्र नदी, सरोवर, झील या झरने में स्नान करके सूर्य को अर्घ्य दे कर काले तिलों को जल में प्रवाहित करना व दान करना शुभ बताया गया है। सत्यनारायण की कथा करना व रात्रि के समय चंद्रमा की पूजा करना व चंद्रमा को दूध, चीनी व चावल के साथ अर्घ्य देना भी शुभ माना जाता है। क्योंकि इस वर्ष बुध पूर्णिमा के दिन ही सर्वार्थ सिद्धि योग, शुक्रादत्योग, राजभंग्योग और गजलक्ष्मी योग भी बनते हैं। इसी लिए सुख संपति के लिए देवी महालक्ष्मी की पूजा कोडियों के साथ की जाती है।
आज विश्व भर में बुद्ध जयंती को मनाया जाता है, क्योंकि महात्मा बुद्ध ने (अपने बुद्ध) धर्म की शिक्षाएं समस्त विश्व तक किसी न किसी तरह से पहुंचाई थीं और इन शिक्षाओं में महात्मा बुद्ध कहते हैं कि जो तुम्हारे पास है उसी में खुशी का अनुभव करो और जो तुम्हारे पास नहीं उसकी इच्छा मत रखो। संसार दुखों का घर है और इन समस्त दुखों का कारण हमारी इच्छाएं रहती हैं। इच्छाओं पर नियंत्रण रखने के लिए हमें अष्ट मार्ग को अपनाना चाहिए। महात्मा बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं में ज्ञान, नैतिक चरित्र और एकाग्रता के विकास पर भी बल देने को कहा था। तभी तो उनकी शिक्षाओं को आज विश्व भर के लोगों द्वारा सराहा जाता है।