दौड़
चहूं ओर है,
आगे आने की
नंबर बनाने की
विजय श्री पाने की
नाम चमकाने की
खुद को ऊंचा उठा
दूजे को गिरने की !
दौड़ में
हर कोई चाहता है,
सफलता अपनी
प्रतिद्वंदी को दे पटकनी
खूब उसको पछाड़ने को
ऊंचा उठा खुद को
औरों को दिखा नीचा
अस्तित्व उनका मिटाने को !
दौड़ को
जीतना ही पड़ता है,
किसी भी तौर तरीके से
अड़ंगी अड़ा के
किसी तरह गिरा के
दीन हीन दिखा के
गुणगान तरह तरह के
खुदी के गा गा के
अपने मुंह मियां मिट्ठू
सूरत को दिखा दिखा के !
दौड़ में
चलती है,
चतुराई की मासूमियत
चापलूसी की मधुरता भी
और गहराई की मधुर वाणी,
गांठ के जकड़ लेती हैं ये
सभी जादुई( तिलस्मई)पकड़ से !
दौड़ में
जीतता है,
झूठा और फरेबी
चाटुकारी वाकपाटू भी
कतराता नहीं जो कभी,
पीठ पीछे वार करते
घबराता भी नहीं जो !