धंसाव

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रोमिता शर्मा

रोमिता शर्मा 

 

मासूम व अबोध बालक टिक्कू बचपन से ही घर के ठीक सामने सीना ताने पहाड़ को देखता आया था । सुबह-सुबह जब नीदं खुलती तो पहाड़ के पीछे से आती सूर्य की किरणें को देखकर टिक्कू मां से सवाल पूछता था । मां सूरज क्या पहाडी़ के पीछे घोंसले में रहता है?

प्राईमरी की पढ़ाई के साथ-साथ टीकू शाम को जंगल जाकर पशु भी चरा लाता था । जब भी मन करे तो गर्मियों के दिन पोखर के पानी में डुबकी लगाने चला जाता । गर्मियों में जंगल में बैर, अंजीर, रसभरी और काफल न जाने कितने जंगली फल मिल जाते । पतों की टोकरी बनाकर उनमें संग्रह करने का एक जुनुन हुआ करता था । टिक्कू के संगी साथी भी इस प्रतियोगिता में उसका साथ देते । एक अच्छी खासी प्रतिस्पर्धा अक्सर हो जाती थी । बच्चों में फूल कंदमूल इक्कठा करने की । संध्या होते-होते घर पंहुच कर दादी हो-हल्ला करती रहती ।

बेटा धूप-बती कर लो, हाथ पैर धो लो । पूजा अर्चना करते समय शंख जरुर बजा देना । इस समय बुरी आत्माएं घूमती है, गांव के आसपास सब लोग जब शंख बजाए तो डर के दूर भाग जाती हैं । मां ने बहु को कहा जल्दी करो बेटे को हाथ धोने का पानी दे दो । पैर धोएगा तो सारी थकान व खिझ उतर जाएगी । इतने तक टिक्कू अपना काम कर चुका होता । बस शंख की आवाज सुनते ही दादी एक दम चुप्पी साध लेती।

टिक्कू बाहर आकर पूछता दादी यह भूत-प्रेत क्या जंगल से आते है तो दादी कहती हां बेटा, देख, तू तो वो बड़े नालू से आगे मत जाना ना कभी पशुओं को जाने देना। नालू का पानी हमारी कारा है । वहां से आगे बुरी आत्माओं का घर है । हंसी में बात को उड़ाता और टिक्कू निकल जाता । अब मिडल की पढ़ाई के कारण टिक्कू थोड़ा भी समय नहीं निकाल पाता । संध्या आरती के बाद फिर पढ़ने बैठ जाता ।

एक दिन टिकू के स्कूल में कोई समारोह था । तो विधायक महोदय पधारे थे । बात ही बात में उन्होने गांव तक सड़क निकालने की घोषणा कर दी । गांव के पंचों में खुशी की लहर दौड़ गई । एक दिन सिर्फ एक बार सर्वे हुआ और सड़क तय हो गई ।

टिक्कू अपने घर का अकेला चिराग था । दादा तो कभी देखे नहीं थे । उसने मात्र तीन साल की उम्र में ही पिता को भी पत्थर की खुदाई में खो दिया था । उनकी घासनी की नपाई होने के बाद प्रधान जी बोले थे देखो चाची आपकी जमीन का 40,000 मिलेगा आपको और टिक्कू की पढ़ाई आसानी से पूरी हो जाएगी । बेचारी औरते क्या कहती और टिक्कू को अभी इतनी समझ नहीं थी कि कहे तो क्या और चुप रहे तो कैसे । बस फिर क्या था ।

एक दिन सवेरे ही बड़ा शोर आने लगा । दादी जोर से कहने लगी शायद जलजला आ रहा होगा प्रलय हो गई है । देवता रक्षा करना टिक्कू बाहर आकर देखता है तो एसे विशालकाय मशीन पहाड़ को चीरते दिखी । वह दादी से पूछता है कि आपने तो कहा था कि पहाड़ भगवान की कला है । कोई इसे बिगाड़ेगा तो भगवान बदला नहीं लेगें या अभी भगवान नहीं है।

दादी ने रुआसें भाव से कहा जरुर लेगें बेटा । तुम अपना स्कूल का बस्ता समेट लो और स्कूल जाओ । शाम तक जब टिक्कू लौटता है तो देखता है कि उसका रास्ता बंद हो गया है । अब किधर से जाऊं ? किसी तरह मलबे से निकल कर घर पहुंचा । घर जाकर मां को बताया कि रास्ता बंद हो गया है । कल कैसे स्कूल जाऊंगा ।

रात भर मशीन पहाड़ को चीरती रही । और सुबह तक एक भददी सी आकृति वाला पहाड़ सामने था । सूरज पहाड़ के पीछे से आता नहीं दिखाई दिया बल्कि सामने ही प्रकट हो गया । टिक्कू को पहाड़ का यह धंसाव बहुत बुरा लगा । कुछ ही दिनों में सड़क तैयार हो गई । और स्कूल का नया रास्ता भी यह सड़क रह गई । अगली बरसात में पहाड़ थोड़ा और दरक गया शायद अपना सीना काटने का धाव नहीं भर पाया था पहाड़ । इस धंसाव से तराई में बने खेत भी दब गए । पोखर भी डूब गए । तब खेतों के न रहने पर मां के दिल में भी ना जाने कितनी दरारें पड़ी थी । दादी की आखों में न जाने कितले दरकाव हुए थे ।

आखिर सब कुछ छिन गया था उनसे पढाई पूरी होने पर टिक्कू ने कंपनी की नौकरी पकड़ ली और आज तक सामान्य जिंदगी नहीं जी पाया । उसके मन में अनेक सवाल थे । जिनका कहीं जवाब नहीं था । और न जाने कितने ही सवालों के पहाड़ उसके मन में दरकते रहते होगें । हमेशा सोचता अगर पहाड़ देवता का वास था तो देवता ने अपना सीना चीरना बंद क्यों नहीं करवाया । क्यों नहीं किया कोई चमत्कार ? दादी सच कहा करती थी या फिर जो सामने है वही सच है । अजीब सी कशमकश रहती है टिक्कू के दिल मे और इसी उहापोह में जिंदगी बीती जा रही है ।

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